
पहले यह जनाब किसी मीडिया हाउस में काम करते थे. वहां इन्होंने काया पलट कर दिया. सकारात्मक अर्थों में. लेकिन उसूलों के साथ जो खिलवाड़ किया उसका कोई सानी नहीं है. मुझे मालूम है...यहां मुझे बकायदा उदाहरण देना चाहिए. उनके नाम का खुलासा करना चाहिए...पर नहीं कर सकता...यही आजकल ईमानदारी का उसूल हो गया है. और समझ लीजिए कि मैं भी ईमानदार हो गया हूं. आज भी उन जनाब के बारे में मेरी राय वहीं है. अभी भी वह बहुत बड़े ज्ञानी पुरुष हैं. लेकिन उनके ज्ञान का एंगल बदल गया है. पहले भी बदला हुआ था. पर काफी करीब से किसी को देखने के बाद ही किसी के बारे में एक स्थाई राय बन पाती है. अब या तो मेरी राय बदल गई है या उनको समझने में मैंने ही कहीं ग़लती कर दी. इतनी ज़्यादा फिलॉसफी करने के बाद मन करता है. सारी हकीकत आपके सामने बयां कर दूं. करूंगा भी ज़रूर. लेकिन मैं खु़द को परखना चाहता हूं कि मेरा ज़मीर अभी भी ज़िंदा है या नहीं.मैं कितना उसकी वहमपरस्त विचारों का शिकार बन सकता हूं. इसका इम्तिहान आख़िर मैं भी कब तक दे सकता हूं. ज़रा मुझे मोहलत दीजिए मैं अपने अंदर की आवाज़ को दुनिया और मीडिया की मक्कारी से बाहर निकाल सकूं.