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चाणक्य ने एक बार कहा था, पानी में रहकर जिस प्रकार मछलियाँ कब पानी पी जाती हैं, यह पता लगाना कठिन है। उसी प्रकार शासकीय सेवक कब भ्रष्टाचार कर जाता है, यह जानना उससे भी कठिन है. लेकिन मेरे मानना है, नेता कब भ्रष्ट हो जाते हैं और राजनीति के सही मुद्दे को कैसे गोल कर जाते हैं, यह पता लगाना सबसे मुश्किल है. पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं, लगभग सभी पार्टियों ने अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी कर दिया है.लेकिन इनमे सही मायनों में देखा जाये तो कुछेक को छोड़ कर बाकी मुद्दे अप्रासंगिक हैं. मसलन, पिछले दिनों महंगाई अपने चरम पर थी. आज उसमे बहुत कमी आई है, नौबत यहाँ तक है, कि मुद्राअवस्फीति का संकट गहराने लगा है. लेकिन ज़रूरी खाने-पीने की चीज़ों के दामों में गिरावट अभी भी नहीं हुई हैं. यह मुद्दा बिलकुल आम आदमी से जुडा हुआ है, लेकिन बहस में कहीं नहीं है. बहस अगर है तो राम मंदिर बनवाने पर, आखिर आम आदमी को इससे क्या, मंदिर बने या मस्जिद ? क्या फर्क पड़ता है? उसे जब खाने को दो वक्त की रोटी ही नहीं मिलेगी तो राम का भजन कैसे करेगा? वैसे भी कहा गया है,भूखे पेट भजन नहीं होत गोपाला! ये तो महज भावनाओं से खिलवाड़ है. हम इस झांसे में आ भी जाते हैं तो ये हमारी भी खामी है जब मौका आता है सबक सिखाने का तो या तो जात-पात और मजहब के नाम पर वोट देते है नहीं तो चुप -चाप घर में बैठ कर नेताओं को सिर्फ गाली देते हैं!
दूसरा भाग : आजकल हमसभी एक रूझान ये देख रहे हैं कि चुनावों में वोट डालने के प्रति लोगों का रूझान कम हो रहा है. आखिर इसके पीछे वजह क्या हो सकती है. एक तो लोगों का राजनीति से मोहभंग या जनता की उम्मीदों पर नेताओं का खरे न उतरना. साथ में एक ट्रेंड ये भी चल पड़ा है कि जो नेता जनता के बीच से चुन कर नहीं आते वही उनकी दिशा-दशा और भाग्य का फैसला करते हैं. उदहारण के तौर पर, हमारे देश के प्रधानमंत्री को लोगों ने नहीं चुना वो राज्यसभा के सदस्य हैं जिसे जनता नहीं चुनती है. देश के रक्षामंत्री को भी लोगों ने नहीं चुना. इतना ही नहीं, पिछले दिनों जिस महंगाई के पीछे पेट्रोल की कीमत रही, उसका बोझ समूचे देश पर एक जैसा डालने वाले पेट्रोलियम मंत्री भी राज्यसभा के सदस्य हैं,मुंबई २६/११ आतंकवादी हमलों के बाद अपने पद से इस्तीफा देने वाले शिवराज पाटिल लोकसभा का चुनाव हार गए थे.सभी संसदीय दलों में आडवाणी को छोड़ दिया जाये तो हर नेता की इंट्री पिछले दरवाजे से है. मुरलीमनोहर जोशी, अरुण जेतली , सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू सभी राज्य सभा के सदस्य हैं. सीपीएम महासचिव प्रकाश करात ने कभी चुनाव लड़ा नहीं और उनके सहयोगी एबीवर्धन कभी चुनाव जीत नहीं पाए. एटमी डील पर राष्ट्रहित का सवाल खडा करने वाले और लखनऊ से संजय दत्त को चुनाव लड़वाने में असफल रहने वाले अमर सिंह की कभी हिम्मत ही नहीं पड़ी जनता के बीच जाने की!!!!!!!!!!!!!
बेहतरीन प्रयास...विषयवस्तु उम्दा...भाषाई त्रुटियों पर ध्यान दें...भविष्य उज्जवल है...
ReplyDeleteआलोक सिंह "साहिल"