एक नई शुरूआत

अपने बासठ साल के इतिहास में आधे से अधिक समय प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर सैनिक शासन के तहत गुजारने वाले पाकिस्तान में पिछले 7-8 महीनों में काफी महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक घटनाक्रम हुए। जहाँ एक तरफ लंबे अरसे तक निर्वासन झेलने के बाद दो पूर्व प्रधानमंत्रियों, नवाज शरीफ और बेनज़ीर भुट्टो की वतन वापसी हुई, वहीं बेनज़ीर भुट्टो की हत्या से पूरा पाकिस्तान सहम गया। आए दिन सड़को पर हिंसा और चरमपंथियों के आत्मघाती हमले होने लगे, लगा पाक मे सरकार किसी की नहीं, बस यही बात मुझे याद आई कि, पाक पर कोई राज़ नहीं कर सकता, वह तो सिर्फ, अल्लाह, आर्मी और अमेरिका के ही भरोसे चल सकता है। ऐसा इसका इतिहास भी रहा है। लेकिन थोड़ी बहुत सुकून उस वक्त मिलती नज़र आई, जब मुशरर्फ की विदाई के बाद युसूफ रज़ा गिलानी के अगुआई में मियां शरीफ के सहयोग से लोकतांत्रिक सरकार सत्ता में आई। बाद में बेनज़ीर भुट्टो के शौहर साहब यानी आसिफ अली ज़रदारी ने राष्ट्रपति का ओहदा संभाला। बेनज़ीर भुट्टो के शौहर साहब इसलिए की पहले उनकी पहचान इससे भी बदतर थी...मिस्टर टेन परसेंट। जी हां, इसी नाम से जाने जाते थे, जनाब ज़रदारी साहब। ख़ैर अब वक़्त बदला तो पहचान भी बदली। जिससे हमें कोई शिकायत नहीं।
आप सोच रहे होंगे कि लेकिन अभी उनकी चर्चा की वजह क्या? तो जनाब अभी-अभी अपने पीएम से मिल कर आए हैं और सबसे बड़ी बात कि इंडो-पाक वार्ता के बड़े हिमायती हैं। तो सोचा इनकी नज़रे इनायत भी जान लें। भारत आख़िर किस हिसाब से बात करे, ये सबसे बड़ी समस्या है। वजह पाक में सत्ता का कोई एक सेंटर नहीं है और किस पर यकीन किया जाए यह भी संदेह में है। संदेह की वजह भी है। क्या ज़रदारी का थोड़ा भी असर पाक सत्ता प्रतिष्ठानों पर है, क्या हर फैसला वो ख़ुद लेते हैं, सेना या आई.एस.आई का कोई दखल राजनीतिक मामलों में नहीं होता है? अगर ऐसा है तो बेनज़ीर भुट्टो की हत्या के बाद सबसे अधिक फायदा किसे हुआ, भुट्टो की हत्या की साज़िश की जांच का क्या हुआ, क्यों ज़रदारी साहब ने मुख्य-न्यायाधीश इफ्तेख़ार चौधरी के पुनर्बहाली पर इतना आनाकानी करते रहे? जब गिलानी साहब कहते हैं, आईएसआई होम मिनिस्ट्री के तहत काम करेगी तो चौबीस घंटे के भीतर ब्रिटनी स्पियर्स की शादी और डायवोर्स की तरह, क्यों वादा और वादाख़िलाफी उनके बयानों में नज़र आती है? ये सही है कि पाकिस्तान आतंकवाद की अमेरिकन लड़ाई में अमेरिका के साथ है और ख़ुद अंदरूनी जंग से परेशान है। तालिबान पाकिस्तान के भीतर आ चुका है और उसके वजूद के लिए ही ख़तरा बन चुका है। यहां तक कि जरदारी साहब भी इस बात को क़बूल चुके हैं। लेकिन ये तालिबान और आतंकवाद भी तो पाकिस्तान ने ख़ुद खड़ा किया, जब अफ्गानिस्तान में तालिबान ने क़ब्ज़ा जमाया तो सबसे पहले पाक ने ही तालिबान सरकार को मान्यता दी। और जो अमेरिका आज आतंक के खिलाफ खड़ा है ये भी उसी का करा-धरा है जो उसने बोया अब वही काट रहा है। पाकिस्तान तो ख़ुद गृह-युद्ध की चपेट में फंसता जा रहा है। वैसे भी यहां निर्वाचित सरकारों की विदाई ग़ैर-लोकतांत्रिक तरीक़ो से होती रही है और कट्टरपंथियों, आतंकवादियों के लिए गढ़ बनते जा रहे पाकिस्तान को ज़रूरत है पहले अपने घर को साफ करने की ताकि कोई मेहमां आ सके। रही बात इंडो-पाक डायलॉग की तो उस सिलसिले में हमारे पीएम साहब ने फरमा ही दिया कि हमे जनादेश ही इस बात के लिए मिला है। क्योंकि कुछ लोग हैं जो सोचते है, हमारे बारे में कि,
जाहिद-ए-तंग नज़र ने मुझे काफिर जाना।
और काफिर समझता है मुसलमान हूँ मैं।।

2 comments:

  1. bahut theek kaha aapne chandan ji .......pakistan ke jo halat hain,uske barey mein abhi kuch bhi vishwas ke sath nahi kaha ja sakta .kuch pata nahi ki ye mr ten percent bhi kuch kar payenge ya nahi.......vo bhi to kya karein ISI ki sune,taliban se nipte ya phir america ki jee huzuri karein..........unke liye to bus itna hi kah sakte hain ....JO BOYE PED BABOOL KA TO AAM KAHAN SE HOYE...

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  2. बात बस यही नहीं है, पाक के इरादे कुछ और हैं।।।।।जिन्हें वो हमेशा छुपाता आया है,

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