बलात्कार, एन्काउंटर और पूर्वोत्तर !

पहले एक लड़की के साथ छेड़छाड़, फिर एक लड़के का एनकाउंटर...ये दोनों वारदात पूर्वोत्तर राज्यों के हैं और दोनों वहां मौज़ूद सेना ने किया है। ये बात ध्यान रखने वाली है कि आख़िर हम किस तरह की सोसायटी में जी रहे हैं। कहते हैं सिविल सोसायटी लेकिन कम-से-कम मुझे तो ये सब बस एक खेल-सा लगता है। आज अगर भारत सबसे ज़्यादा कहीं परेशानियों से जूझ रहा है तो वो है-नक्सलवाद और आतंकवाद के मुद्दों से। जिसके समाधान के लिए वह कभी भी संजीदा नहीं रहा। आज हिंदुस्तान एक ऐसा मुल्क़ है, जहां क़ानून का पालन करने वाले निराश और हताश हैं जबकि क़ानून तोड़ने वाले सरकार पर हावी रहते हैं। पूर्वोत्तर में जो लोग समस्या पैदा करते हैं, उनको प्रशासन या सेना तो कभी पकड़ पाती नहीं, जब दबाव पड़ता है तो वह ऐसे ही बेबस, निर्दोष और बेग़ुनाहों का क़त्लेआम करती रहती है। ये सही है कि इस तरह के मामलों में कुछ निर्दोष लोगों की जान जाती ही हैं, लेकिन इसके नाम पर जो खेल खेला जा रहा है, वो बेहद ही भयानक है। इस तरह से हम प्रॉब्लम सुलझाने के बजाय उसे उलझाते ही जा रहे हैं। हम कभी भी वहां के लोगों का दिल जीतने की कोशिश नहीं करते और चाहते हैं कि ज़बरदस्ती अपने साथ बनाए रखें, उन पर जुल्मोसितम करते रहें। चाहे मामला वहां की महिलाओं के साथ छेड़छाड़, बलात्कार या शोषण का हो या मासूम लोगों को गोलियों का निशाना बनाने का...हम कभी उनकी समस्याओं को उनकी नज़रिए से समझने की कोशिश तक नहीं करते कि आख़िर वो चाहते क्या है, उनकी वाजिब समस्याएं क्या हैं, बल्कि इन सब की जगह उन्हें चुप कराने का बस एक ही तरीक़ा हमें नज़र आता है, उन पर गोलियां बरसाना , ख़ौफ दहशत का माहौल कायम करना। क्या सरकार वहां की समस्या इसलिए सुलझाना नहीं चाहती कि वहां से भारत सरकार को कोई ख़ास राजस्व नहीं मिलता, उल्टे ख़र्च ही करना पड़ता है ? अगर ऐसा है, तो बस ख़ुद और देश के लिए मैं शाहिर लुधियानवी की इन पंक्तियों को ही कह सकता हूं कि.......मुबारक कह नहीं सकता, मेरा दिल कांप जाता है।

9 comments:

  1. bahut hi achchhi jaankari di aapane .......isake liye shukriya

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  2. jaankaari achchi lagi.............

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  3. सही वचन!

    रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
    विश्व-भ्रातृत्व विजयी हो!

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  4. धन्यवाज आप सभी का.............

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  5. एक बार पूर्वोत्तर हो आएं, सच्चाई पता चल जाएगी.

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  6. वहां की हक़क़ीत को समझना सही में एक मुश्किल काम है और ये जरूरी नहीं कि कहीं जाकर ही हम उसकी भावनाओं को समझ सकते हैं, हालत जब उपरी तौर पर ये है तो , ज़मीनी हक़क़ीत क्या होगी समझा जा सकता है।

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  7. purvottar ki sahi tasvir pesh ki aapne

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  8. दोस्त जिस सेना को तुम बदनाम करने पर तुले हो उसी की वजह से चैन से बैठकर ऐसी बकवास कहानियां ब्लॉग पर लिख रहे हो. वरना कभी के किसी नक्सली या जिहादी के हत्थे चढ़ जाते. घर पे बैठकर ऐसी कहानिया गढ़ना आसान है... क्यों ना एक बार पूर्वोत्तर हो आते हो, जैसा कि संजय ने सुजाव दिया है. आजकल ऐसी फैशनेबल चीजे हर सेकुलर-कम्युनिस्ट ब्लोगर लिख रहा है. आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी.

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