भूख है तो सब्र कर ।


क्या इतने प्रेम और चाव से आप खाना खाते हैं या खा सकते हैं ? हो सकता है नहीं आपका जवाब बिल्कुल हां में ही होगा, कुछ लोगों की अपनी मज़बूरियां हो सकती हैं , जिसकी वजह से वो ना कहें।
दरअसल ये तस्वीर उस जगह की है, जब आप और हम ट्रेन से सफ़र करते हैं तो ट्वायलेट और दूसरी चीज़ों के लिए इस्तेमाल करते हैं। दूसरी चीज़ों से मतलब शौचालयों के लिए। आप और हम वहां खाने की सोच भी नहीं सकते, ज़रा सा साफ़ न रहे तो ट्वायलेट भी जाने से कतराते हैं। लेकिन खाने की बात तो सपने में भी नहीं सोच सकते भूख बर्दाश्त कर लेंगे लेकिन खाएंगे नहीं। अब बताइए क्या आप इतने मज़े से खा सकते हैं। जहां तक मैं अपनी बात करूं तो मैं तो कतई नहीं। लेकिन ये सिर्फ़ बस एक आदमी जो आपको तस्वीर मे दिख रहा है, उसी की कहानी नहीं है, काफी सारे लोग ऐसे ही खाते हैं, कम-से-कम मेरे साथ जो लोग सफर कर रहे थे वो तो खा ही रहे थे। अंतर इतना था कि ये ट्वायलेट रूम मे खा रहा था, बाक़ी उस रूम में रखें खाने को खा रहे थे, अनजाने में मैंने में भी पानी का बॉटल ले लिया, लेकिन जब ट्वायलेट के लिए गया तो सारा माजरा नज़र आया। आसपास काफी सारे लोग ठूंसे पड़े थे, बगल वाले ट्वायलेट को ही पेंट्रीकार बना दिया गया था। लोग ये देख भी रहे थे खाना-पानी कहां रखा है, फिर ख़रीद रहे थे और खा भी रहे थे, उनको कोई एलर्जी या दिक्कत नहीं थी। शाय़द वो इस बात के अभ्यस्त थे। और मेरे लिए नया अनुभव।
डरिए या घबराइए मत ये कहानी किसी ट्रेन के जनरल डब्बे की है, लेकिन दूसरे बोगियों की साफ़-सफाई और हालत भी इससे कुछ खास बेहतर है या नहीं, इससे अभी पाला नहीं पड़ा है। फिर भी हक़कीत हम सभी से छुपी नहीं है। यहां ये बताना भी ज़रूरी बन पड़ता है कि बड़े ही चाव से खा रहे खाने की क़ीमत पैंतीस रू है । मेरी गुजारिश है यदि इंडिया से फुर्सत मिले तो एक बार आप भी ऐसे ही जनरल बोगी में सफर कीजिए और एक नए भारत का दर्शन कीजिए। एक नई दुनिया की झलक आपको मिलेगी, चार की सीट पर कैसे आठ लोग बैठते हैं, सामान रखने वाली जगह पर कैसे चार लोग मज़े से सोते हुए सफर करते हैं। भारत कैसे जुगाड़ का देश है , ये भी आप सही तरीक़े से जान और समझ सकते हैं।
" कल नुमाइश में मिला वो चिथड़े पहने हुए,
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदोस्तां है।"

4 comments:

  1. are bhai bhukh hoti hee aise hai, ab ye bat agar aap unse puchte jo log toilet me khana kha rahe hai ki aap yhan kaise kha rahe hai to aapko jarur utter mil jata.

    ReplyDelete
  2. कल नुमाइश में मिला वो चिथड़े पहने हुए,
    मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदोस्तां है।"
    dushaynt kmar ki panktiyan bilkul fit baithati hai is ..............aaj bhi hindushtan kai kal me ji raha hai ..............dayniy sithti hai

    ReplyDelete
  3. जी मिथिलेश भाई आपने बिल्कुल सही बात कही, लेकिन यहां ये भी होता है, हममे से कितने लोग इससे अनजान ही रहते हैं,और ओम जी ने जो बातें कहीं वो बिल्कुल ही सटीक हैं..........

    ReplyDelete
  4. कल नुमाइश में मिला वो चिथड़े पहने हुए,
    मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदोस्तां है।"

    ये दो पंक्तियाँ काफी कुछ कह गयीं ......!!

    ReplyDelete