मर्दों की मानसिकता
यह जमाना है, अधुनिकीकरण का। 21वीं सदी का और इस सदी में भारत भी काफ़ी तरक्की कर रहा है। आधुनिकता के लबादे में भारतीय समाज ख़ुद को पाकर फूले नहीं समा रही है। अक्सर हमें सुनने को मिलता है, अशिक्षा ही अधिकतर समस्याओं की जड़ होती है। बलात्कार जैसी घटनाएं कुंठा की भावना की वजह से होती हैं। यह कुंठा की भावना अशिक्षित लोगों में अधिक होती है. यदि इन कुंठित लोगों का शारीरिक और मानसिक विकास ढंग से हो तो यह कुंठा की भावना उनके के लिए व्यक्तित्व विकास में सहायक होता है। इसी तरह की बातें हमें सिखाई जाती हैं। लेकिन, मुनिरका में जो कुछ हुआ मामला ठीक इसके विपरीत था। यहां कुकृत्य एक आला दर्जे के शिक्षित इंसान ने किया। आईआईटी में शोध करने वाला छात्र ने। हालांकि यह का मामला अब शांत हो चुका है। मीडिया ने भी इसे कुछ अधिक तवज्जो नहीं दिया। मीडिया भी मर्दों की मुट्ठी में है। अखबारों की बात करें तो वहां भी चंद पैराग्राफ के अलावा कुछ भी देखने को नहीं मिला। मुनिरका का मामला किस बात की ओर इशारा करती है, थोड़ी बहुत झलक हमें एनडीटीवी पर देखने को मिली थी। रवीश न्यूज़ टेन में ख़ुद की एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार करके ला थे। दरअसल, ख़ुद रवीश ने मुनिरका में काफ़ी अरसा बीताया है, सो उन्हें इसी बहाने मुनिरका की याद आ गई होगी। कुछ भी हो मणिपुरी छात्रा के साथ हुए हादसे को बड़े ही मार्मिक अंदाज़ में उठाया। मणिपुर या पूर्वोतर के लोग क्यों भारत से नहीं जुड़ पाते इसकी वजह भी इसी वाकये से सामने आती है। दरअसल, आज जब हम महिला सशक्तिकरणकी बात करते हैं तो लगता है ख़ुद के साथ छलावे के अलावा कुछ भी नहीं लगता। महज़ चंद अधिकार और आज़ादी देकर हम समझने लगे हैं कि महिलाओं के लिए बहुत बड़ा काम कर रहे हैं, लेकिन यह हमारी सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी है। एकबार फिर इसे साबित किया मुनिरका में हुए इस कलंकी वारदात ने। जिसने हमारे समाज को कलंकित किया। यह साबित करने के लिए काफ़ी है कि भारतीय समाज में महिलाओं की क्या हैसियत है। हम मर्दों के लिए उनकी क्या उपयोगिता और अहमियत है। कहते हैं कि दिल बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है। इसी तरह हम भी कभी कभी दिल बहलाने के लिए उनके संदर्भ में कुछ अच्छी बातें कर जाते हैं। लेकिन कु, बात तो यही है कि हम मर्द उसे अभी भई अपने पैरों की जूती समझना ही बेहतर समझे हैं हो सकता हैं मैं कुछ मामलों में ग़लत होउं, लेकिन मेरी बात काफ़ी हद तक सही है। आज़ादी के इतने सालों बाद जब आज हमारे देश की कमान भले ही अप्रत्यक्ष तौर पर एक महिला के हाथों में है, उके बावजूद महिलाओं की ऐसी हालत कुछ नहीं, बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है.
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स्त्रियों के प्रति जो मनसिकता है वह केवल शिक्षा से बदलना सम्भव नही है । समाज मे श्रम का उचित बँटवारा , स्त्री और पुरुष के अलग अलग दायित्व , दोनो की शारीरिक संरचना । बहुत से कारक है जिनमे परिवर्तन यकायक सम्भव नहीं है ।
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