सबसे पहले शुरू करता हूं बद्र साहब की चंद पंक्तियों से,
नाहक ख्याल करते हो दुनिया की बातों का,
जो तुम्हें ख़राब कहे, वो ख़ुद ख़राब है।
और मैं भी मानता हूं कि.
यह सोचते सोचते अब आदत सी हो गई है,
कि हर कोई कहता है ख़राब मुझे,
कल उसका एसएमएस आया था,
वो भी कह रही थी ख़राब मुझे।
जमाना चिट्ठी पत्री और तार से होते-होते
अब एसएमएस तक आ गया,
शायद इसीलिए ख़राब बनने का दौर भी
लोगों को है भा गया।
कल वायदा किया था मैंने उसे,
अबकी तुमसे मिलूंगा ज़रूर,
पर मेरा ये वायदा भी,
रहा हर वायदे की तरह।
अब उनसे कहां होती है मुलाक़ातें
न बातें, न वो जज्बात, न कोई ख्याल,
सब अधूरी छूट गई, उस मोड़ पर
जब आख़िरी बार देखा था उसे
दांतों में उंगली दबाए मुस्कुराते हुए,
न जाने कहां गई वो बातें, मुलाक़तें।
वक़्त बीतता गया, हम ठहर से गए
वो जमाने क साथ बढ़ती गई,
हम इंतज़ार करते रहे, सोचते रहे...
वो जमाने क साथ बढ़ती गई,
ReplyDeleteहम इंतज़ार करते रहे, सोचते रहे...
आप भी आगे बढ़ें
अब उनसे कहां होती है मुलाक़ातें
ReplyDeleteन बातें, न वो जज्बात, न कोई ख्याल,
सब अधूरी छूट गई, उस मोड़ पर
जब आख़िरी बार देखा था उसे
दांतों में उंगली दबाए मुस्कुराते हुए,
न जाने कहां गई वो बातें, मुलाक़तें ...
AUR VAQT BEET TA GAYA ... HUM INTEZAAR KARTE RAHE ...... "KAARVAN GUZAR GAYA..GUBAAR DEKHTE RAHE.."
BAHOOT KHOOB LIKHA HAI ...
जब आख़िरी बार देखा था उसे
ReplyDeleteदांतों में उंगली दबाए मुस्कुराते हुए,
न जाने कहां गई वो बातें, मुलाक़तें ...
वक्त के साथ बहुत कुछ गुज़र जाता है रचना उम्दा है शुभकामनायें
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है भाई चन्दन जी!
ReplyDeleteक्या कहने ....बहुत खूब !!
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