होली में हिंदूवादी होने का भय!
आज होली का दिन है। रंगों से सराबोर उत्सव। पर कुछ और कहना या पूछना चाहता हूं। आप कह सकते हैं जानना चाहता हूं। दरअसल मुझे हमेशा इस बात का भय बना रहता है कि कहीं मैं भी हिंदू कट्टरवादी, संघी मानसिकता या एक तरह से कहें कि एक्सट्रमिस्ट न समझ लिया जाऊं। असल मुद्दे पर आने से पहले मैं आप से अपनी व्यक्तिगत बातें कहना चाहता हूं। कहना इसलिए चाहता हूं कि ये बातें अक्सर मुझे कचोटती है। हाल में भारत के मशहूर पेंटर मकबूल फिदा हुसैन का मसला उठा तो यह काफी हद तक प्रासंगिक भी लगा। दरअसल बात कुछ साल पहले की है। यानी मेरे कॉलेज के दिनों की। करीब तीन साल हुए। हमारे एक गुरूजी कहते थे कि आजकल हम और आप भगवन का नाम उतना नहीं लेते, जितना कि समाज के निचले वर्ग के लोग। चाहे वह दलित हो या महादलित अथवा उनके भी नीचे के लोग। हम और आप हमेशा संबोधन में गुड मॉर्निंग या नमस्ते बोलते हैं। पर वे लोग राम राम बाबूजी या किसी और भगवान का नाम लेकर आपसे या हम से कुशल खैर पूछते हैं। बात सही भी है। आज के आधुनिक युग में हमें या आपको ऐसे संबोधन में शर्मिंदगी महसूस होती है। लेकिन इत्तेफाक से मेरी आदत है कि जब मुझसे कोई पूछता है कि आप कैस हैं या क्या चल रहा है तो मैं जवाब देता हूं, सब बजरंग बली की कृपा है। पहले तो कॉलेज में मुझे मेरे साथियों ने शक की निगाहों से देखा। वजह हमारे एक सर का नाम ही बजरंग बिहारी तिवारी था। यानी दूसरे शिक्षक भी आंख दिखाने लगे कि यह उसके ग्रुप का है। कॉलेज के बाहर आया तो लोग कहने लगे कि भई तुम संघी मानसिकता के हो... आरएसएसवादी हो....अब भला मैं उन्हें कैसे बताऊ कि मुझे भी अक्सर इसी बात का डर बना रहता है...अपने एक मित्र को मैंने फोन किया और बोला भई राम राम कैसे हो...जवाब मिला तुम संघी हो गए हो...मैंने कहा यह गंभीर समस्या आन पड़ी है, मेरे सामने...उसने मेरी स्थिति समझते हुए कहा दरअसल दिक्कत यही है। आज जमाना बदल रहा है। मान-सम्मान या सिविल सोसायटी में अपनी जगह बनानी है तो अल्ला का नाम लेना शुरू कर दो...उसने कहा तुम हजार बार अल्ला का नाम लो तुम्हें को ई कुछ नहीं कहेगा, पर एकबार राम कानाम लोग तुम्हे सब मजहबी कहने लगेंगे...आज जो अल्पसंख्यकों की बात करता है, वहीं धर्मनिरपेक्ष माना जाता है। पर मैंने कहा भई मैं तो राम और हनुमान का ही नाम लूंगा और वंचितों के हित की बात करूंगा, चाहे वह किसी मजहब का हो या जाति का...जवाब सुनकर मैं दंग रह गया...तब तो तुम गए, तुम्हारा कुछ नहीं होने वाला...तभी से मैं अपनी धर्मनिरपेक्षता को लेकर धर्मसंकट मे फंसा हूं....
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हमें तो अलग अलग रंग की कमीज़ पहनने पर ही टोक दिया जाता था ..।
ReplyDeletehttp://kavikokas.blogspot.com
होली की सतरंगी शुभकामनायें
ReplyDeleteसच्चाई कडवी होती है, लेकिन कहने वाले कह ही देते है!
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जिन्दा लोगों की तलाश!
मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!
काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।
हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।
इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।
अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।
आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-
सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?
जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-
(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in