शिक्षा व्यवस्था को लेकर तमाम तरह के सवाल उठते रहते हैं। पर इसकी जड़ में अहम सवाल को अक्सर अनसुना कर दिया जाता है। अभी तो आईपीएल देश की सभी समस्याओं पर इस कदर हावी है कि बाकी किसी भी मसले पर बात करना बेमानी ही है। चूंकि शिक्षा में गिरावट के लिए सरकार का रोल बहुत व्यापक है। इसलिए वह अपने दायित्वों से बचने की हर मुमकिन कोशिश करेगी। कभी आईपीएल विवाद में अड़ंगा डालकर तो कभी फोन टैपिंग का मामला सामने लाकर तो कभी किसी और तरीके से। उसे हमेशा खतरा बना रहता कि कहीं जनता जागरूक हो गई तो उसके खिलाफ कहीं बगावती तेवर न अपना ले। जनता की जागरूकता से सरकार की सत्ता ठीक उसी तरह डगमगाने लगती है, जैसे पुराणों में वर्णित कथा के मुताबिक, जब कोई आम आदमी भी तपस्या करता तो इंद्र को हमेशा भय सताता की यह तपस्या उसकी गद्दी छीनने के लिए की जा रही है। फिर इससे बचने के लिए वह दस तरह की तरकीबें आजमाता। काम, क्रोध, लोभ, मोह माया इत्यादि शत्रुओं को वह उस तपस्या को भंग करने के लिए भिरा देते थे। कभी रंभा तो कभी मेनका की मोहनी मूरत का सहारा लेते। हमारी सरकार भी ठीक यही करती है। सबसे पहले बाबरी मस्जिद पर लिब्रहान कमेटी की रिपोर्ट आई तो अपनी नाकामी से बचने के लिए रंगनाथ का मामला लीक हो गया। जिसके तहत अल्पसंख्यक मुसलमानों को आरक्षण देना था। जब यह मामला तूल पकड़ा तो गुजरात में गोधरा दंगा पर रिपोर्ट सामने पटक दिया। फिर महंगाई के मामले में घिरती नजर आई तो नरेंद्र मोदी को एसआईटी के सामने पेश कराकर उससे ध्यान भंग कराया। मोदी का मामला खत्म हुआ तो आईपीएल में अपने कारिंदे थरूर के जरिए बखेरा खड़ा दिया। यह सबसे बखेरा ही तो है। क्योंकि यदि सरकार के इरादे स्पष्ट होते तो अब जो वह वित्त मंत्री और आयकर विभाग जांच के नाम पर तमाशा कर रही है, वह पहले भी कर सकती थी। जब आईपीएल शुरू हुआ तब भी केंद्र में वही सरकार थी, जो आज तीन साल बाद है। सत्ता परिवर्तन से इसका कोई लेना देना नहीं है। एक तरह से कहें तो इंद्र की तरह सरकार घबरा और डर गई है।
थरूर के लगातार ट्विटिंग से सरकार की किरकिरी रूक नहीं रही थी तो उसे भी तो मजा चखाना था। इसी बीच कहीं से उड़ती खबर आई कि थरूर तीसरी शादी करेंगे। उनकी भावी पत्नी ने आईपीएल में हाथ आजमाए हैं। थरूर को आखिर उनकी औकाद बता दी गई । फिर महज तीन साल में ही आईपीएल से ललित मोदी दुनिया की सबसे ताकतवर बोर्ड बीसीसीआई को चुनौती दे रहे हैं। पहले शरद पवार की चूलें हिली। वह भी आए दिन कांग्रेस की कमीजें फाड़ रहे थे। जब थरूर ने अपना वर्चस्व दिखाना चाहा तो मोदी ने उनकी एक न चलने दी। मोदी ने अपने मोहरे से थरूर का गरूर तो चूर कर ही दिया। इससे सरकार को लगा कि बात काफी आगे निकल गई है तो उसने ठान लिया कि अब किसी कीमत पर मोदी को मिट्टी में मिलाकर ही वह दम लेगी। मोदी के लिए बाहर का रास्ता तैयार वह कर ही चुकी है। अभी क्लाइमेक्स तो बाकी ही है। बात निकल चुकी है, पर लगता नहीं कि दूर तलक जाएगी।
उम्दा सोच पर आधारित प्रस्तुती के लिए धन्यवाद / ऐसे ही सोच की आज देश को जरूरत है / आप ब्लॉग को एक समानांतर मिडिया के रूप में स्थापित करने में अपनी उम्दा सोच और सार्थकता का प्रयोग हमेशा करते रहेंगे,ऐसी हमारी आशा है / आप निचे दिए पोस्ट के पते पर जाकर, १०० शब्दों में देश हित में अपने विचार कृपा कर जरूर व्यक्त करें /उम्दा विचारों को सम्मानित करने की भी व्यवस्था है /
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