बेमतलब की बातों में उलझना बेकार है,
पर हर बात को बेकार समझ,
लोगों का दिल दुखाना,
ये किस खता का कसूर है.
माना आपकी तरह हम नहीं काबिल,
नहीं हममे में वो बात, न ही ज़ज्बात,
जो आपमें में है,
पर हमें नज़रअंदाज़ करे वो,
ये गवारा नहीं.
हम नहीं उनके काबिल तो कह दे सरेआम,
न कोई शिकवा और न ही पछतावा होगा,
होगा तो बस दर्द और चुभन
पर, यूँ हमारी गैर मौजूदगी में
खुद का दिल दुखाना,
पसंद नहीं.
अब तक ऐतबार करता आया,
आगे भी कर लेंगे यकीं उनका,
पहले पसंद थे अब हैं नापसंद उनका.
सुन्दर अभिव्यक्ति
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