भ्रष्टाचारविरोधी आंदोलन का झुनझुना

भ्रष्टाचार की नौंटकी अभी जारी रहेगी। अभी कुछ दिनों तक देश में कालेधन को लाने का मामला गूंजता रहेगा। लोकपाल विधेयक का भी मसला मीडिया में चलता रहेगा। पर, मेपी मानिए तो यह सब ड्रामा और नौटंकी के अलावा कुछ भी नहीं। सरकार को झुकाने का जो अभियान इन चंद लोगों ने जो छेड़ रखा है, उनकी मंशा कभी पूरी नहीं होगी। वैसे भी देखिए तो जिन्हें जनता ने चुना उनको चुनौती देने का हक़ इन बिना चुने लोगों को किसने दे दिया। है हिम्मत तो उतरें चुनावी समर में और फिर बनाएं मनपसंद कानून। कमर टूट जाएगी। जमानत जब्त हो जाएगी। लेकिन कभी संसद में पैर तक नहीं रख पाएंगे। जिस जनता के लिए लड़ने की बात ये चंद लोग कर रहे हैं, वही जनता इन्हें चारो खाने चित कर देगी और ये हाथ मलते रह जाएंगे। ऐसे में यह कौन सा दावा कि देश में भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए क़ानून अब जनता के चुने हुए प्रतिनिध नहीं, बल्कि चंद मुट्ठी भर लोग करेंगे, जिनके पास अरब की आबादी वाले देश में लाखों का भी समर्थन हासिल नहीं है। पहले अनशन करते हैं। फिर सरकार को ब्लैकमेल करने की कोशिश। यह सिविल सोसायटी की तानाशाही नहीं कही जा सकती क्या? बिल्कुल है। अगर देश में वाकई किसी तरह का करप्शन है तो क्यों नहीं लोग सड़कों पर आ जाते हैं। क्यों दिल्ली के जंतर मंतर पर चंद लोगों के इकट्ठा होने को पूरी आबादी का प्रतिनिधत्व मान लिया जा रहा है। {नीचे की पंक्तियां दिलीप मंडल के फेसबुक वाल से हैं...} जो आंदोलन भ्रष्टाचार के विरुद्ध शुरू हुआ था, वह पहले तो जन लोकपाल बिल के समर्थन का आंदोलन बना, फिर लोकपाल बिल की ड्राफ्टिंग कमेटी में शामिल होने का आंदोलन बना, फिर कमेटी का चेयरमैन बनने का आंदोलन बन गया और आखिरकार देखिए यह कहां पहुंच गया है? सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि जस्टिस संतोष हेगड़े कर्नाटक में लोकायुक्त है। इन पर उस बिल को बनाने की जिम्मेदारी है, जिससे देश भ्रष्टाचार खत्म होना है। कर्नाटक में भ्रष्टाचार को ये पूरी तरह से रोक चुके हैं!!!! इनका एक परिचय यह भी है कि इनके दिए फैसले यूथ फॉर इक्वैलिटी को खूब पसंद आते हैं। दो हफ्ता पहले सिविल सोसायटी करप्शन के बारे में बात कर रही थी। आज भी वह करप्शन के बारे में ही बात कर रही है। जिन लोगों ने ज्यादा उम्मीदें पाली थीं, और जो अब ज्यादा निराश हैं, उनके प्रति सहानुभूति है। मैं अगर रॉकफेलर फाउंडेशन चलाता हूं (यह दुनिया के सबसे बदनाम कंपनी का फाउंडेशन है) और भारत में अपनी पसंद का लोकपाल बनाना चाहता हूं तो मैं अपने पैसे से दिया जाने वाला मैगसेसे अवार्ड किसी अपने आदमी को दूंगा। अरविंद केजरीवाल और सिविल सोसायटी ने जनलोकपाल के लिए जो विधेयक बनाया है, उसमें मैगसेसे आवार्ड विनर को लोकपाल की सलेक्शन कमेटी में रखने की बात है।

2 comments:

  1. काश यह नौटंकी न होकर सार्थक हो।

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    1. सार्थक और सामयिक, आभार.
      कृपया मेरे ब्लॉग" meri kavitayen" की नवीनतम पोस्ट पर पधार कर अपनी अमूल्य राय प्रदान करें, आभारी होऊंगा.

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