"वो जो लोग थे बदजुबान यहाँ,
बाँटते फ़िर रहे हैं ज्ञान यहाँ........."
मेरी समझ में ये बात नहीं आती, आख़िर बिना गाली -गलौज के काम नहीं चल सकता क्या? ये कोई ज़रूरी नहीं आप या हम किसी को गाली दे तभी काम ठीक से कर सकता है।
ये तो कुछ महज़ नमूने ही थे.........पूरी फ़िल्म तो अभी बाकी है मेरे दोस्त। इन्ही वजहों से आजकल एक ऐसा क्रेज़ बन पड़ा है की स्टुडेंट फ्रैंक बनने के लिए बेझिझक गलियों का इस्तेमाल करते हैं। हम और आप करते हैं। अगर आप नहीं करते हैं तो आप फत्तू हैं। ऐसा हम नहीं आपके ही वो दोस्त कहेंगे जो इस मामले में आपसे ज़्यादा माडर्न होंगे। एक फैशन बन गया है गाली देना। रेपुटेशन की बात हो गई है। जो जिसको जितना गाली देता है उसे उतना ही प्यार करता है। ये कैसी सोच है हमें तो भाई समझ में नहीं आता । कैसा वर्क कल्चर है समझ से पड़े है। फ़िर भी है तो है। तो चलिए हम भी एक न्यूज़ पैकेज बनाते हैं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ओये देख एक आधे घंटे की स्टोरी करनी है ज़ल्दी से स्टोरी एडिट वगैरह करके फाइनल कर दे टाइम नहीं है । थोडी देर बाद, क्या हुआ बे........तेरी समझ में बात नहीं आती क्या भोस...........................के। यहाँ क्या अपना ..............कराने बैठा है। आ जाते हैं सा...........ले.............कराने ,ह........मी ,,,बहा......के । अपने......................बा......का.....समझ रखा है क्या....????????????????
जय हो ऐसी भाषा की ??????
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ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है भाई. पढ़कर दिल खुश हो गया. अगर इसी तरह लिखते रहे तो तुम्हारी जॉब पक्की है. एक बात और थीम बिलकुल नयी है. जय हो आपकी भाषा की.
ReplyDeleteविषय अच्छा था पर मीडिया की भाषा पर व्यंग कुछ और अच्छे शब्दों में किया जा सकता था....
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