दिल्ली पर इन्द्र भगवान कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं. वैसे भी सुना था, दिल्ली कि सर्दी बहुत तरसाती और तड़पाती है. पर इस बार यह काम बारिश कर रही है. महंगाई और कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार की गर्मी से तपती दिल्ली के लिए बारिश रहत लेकर आयी है. हो सकता है यह बारिश खेलों के लिए खलनायक बने. बहुत सारा काम बाकी है. बारिश इसमें अडंगा डाल सकती नहीं, बल्कि डाल रही है. इससे पहले दिल्ली में इतनी बारिश नहीं देखी थी. अबकी देखकर लगता है, भगवान् आम आदमी के साथ हैं और इन खेलों के खलनायक का मुंह काला करना चाहते हैं. पिछले दिनों टाइम्स ऑफ इंडिया में एमजे अकबर का लेख पढ़ा. उसमें उन्होंने दिल्ली वालों से पूछा कि आप क्या चाहते हैं? एक अच्छा मानसून या सफल कॉमनवेल्थ खेल, जों भ्रष्ट्राचार की बुनियाद पर खड़ा है. पिछले ५-७ दिनों में दिल्लीन में बेहतरीन बारिश हुयी इससे लगता है कि दिल्ली वालों ने अपना फैसला सुना दिया है. उन्हें क्या चाहिए अब यह सवाल सामने न ही आये तो अच्छा है. सुरेश कलमाडी के नेतृत्व वाली राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति पर कई सवाल उठ रहे हैं. वैसे भी बिना आग के कहीं धुआं नहीं उठता है. मतलब साफ़ है. आयोजन समिति ने राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के लिए कंस्लटेंसी यानी सलाहकार सेवाओं के लिए टेंडर खोले और आख़िरकार ये टेंडर उस कंपनी को मिले जिसने अपनी सेवाओं के लिए दूसरों से कहीं ज़्यादा पैसे माँगे थे. इसका अर्थ ये निकाला जा सकता है कि जहाँ पर आयोजन समिति करोड़ों रुपए ख़र्च होने से बचा सकती थी. लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. अब क्यों नहीं किया इसे समझने में ज्यादा परेशानी नहीं होनी चाहिए.
कल हम आज़ादी कि चौसठ्वीं सालगिरह मनाएंगे. पर, आज भी हम उन्हीं समस्यायों से जूझ रहे हैं, जों ४० साल पहले हमारे सामने थे. मसलन गरीबी, बेकारी, भ्रष्ट्राचार, घोटाला, महंगाई कई चीज़ें हैं. बेशक हमने तरक्की की है. लेकिन इसकी कीमत भी हम ही चुका रहे हैं. यह तरक्की भी एकतरफा है.
घटायें तो देश भर में छायी हैं, अब जल बरसे या भ्रष्टाचार।
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति.
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