क्रिकेट में ख़त्म हुई दादा की दबंगई

क्रिकेट की आईपीएल मंडी एकबार फिर सजी. आईपीएल के पहले सत्र में जिन लोगों ने खिलाड़ियों की नीलामी को लेकर तमाशा खड़ा किया था, वह भी निढाल हो गए. चर्चा रही तो बस दादा की.कोलकाता के प्रिंस और महाराज कहलाने वाले सौरभ गांगुली की. वह भी उनके न बिकने की वजह से. इस मसले पर हो-हल्ला किसी ने किया हो या नहीं, लेकिन दादा के न बिकने की वजह से मीडिया को ज़बरदस्त मसाला मिल गया. सात दिनों तक समाचार दिखा-दिखाकर कि दादा नहीं बिके, दादा नहीं बिके. क्या यह दादा का अपमान है या कोलकाता का. या फिर भारतीय क्रिकेट का. मीडिया को भले ही इनमें से सभी का अपमान लगा हो, लेकिन मेरी मानिये तो क्रिकेट के जानकारों को किसी का अपमान नहीं लगा होगा. मुझे भी नहीं लगा, लेकिन हाँ दुःख बहुत ज्यादा हुआ. दुःख इसलिए कि मैं गांगुली का बहुत बड़ा फैन हूँ और अब मुझे उनकी बल्लेबाजी नहीं देखने को मिलेगी. मुझे आश्चर्य भी हुआ, इसलिए कि दादा ने अपनी टीम में सबसे ज्यादा रन बनाये थे और किसी भी युवा खिलाड़ी से उनका प्रदर्शन कमतर कभी नहीं था. लोग कह रहे हैं उनकी कप्तानी बेअसर रही, एक पल को मैं मान लेता हूँ थी. लेकिन इसके लिए उनके खेल को भला क्यों कसूरवार ठहराया जा सकता है. गांगुली समर्थक ये आस बांध रखे थे कि जब फिर से उन खिलाड़ियों की बोली लगेगी, जो बिके नहीं है, तो गांगुली अच्छी क़ीमत पर बिकेंगे. यह आस मुझे भी थी, लेकिन जब आप बाज़ार में खड़े हों और आपके सामान को कोई खरीदना नहीं चाहता तो आप ज़बरन उसे नहीं बेच सकते. हाँ, इतना ज़रूर कर सकते हैं कि अपने उत्पाद की ऐसी मार्केटिंग करें कि वह बिक ही जाये. आजकल तो कंघी की ऐसी मार्केटिंग हो रही है कि गंजे भी उसे खरीद रहे हैं और दादा तो कोहिनूर हैं. शायद अपनों ने ही उन्हें दगा दिया और जैसा कि कोलकाता टीम के मालिक शाहरुख़ ने भी कहा कि दादा को न खरीदने के फैसला क्रिकेट के जानकारों ने ही किया. उन्होंने कहा कि पहले संस्करण के बाद क्रिकेट से जुड़े मसलों पर फैसला उनके क्रिकेट दोस्त ही करते हैं. निराशा की बात तो यह भी थी कि भी टीम की सहमति से जिन 28 खिलाड़ियों के लिए फिर बोली लगी, उनमें न सौरभ गांगुली का नाम था, न ब्रायन लारा का, न मार्क बाउचर का और न सनथ जयसूर्या का. लेकिन मुझे सबसे अधिक निराशा दादा के न बिकने ससे हुई. उन्हें खेलते देखना शायद अब नसीब न हो.

1 comment:

  1. भले भी दिन आते जगत में, बुरे भी दिन आते। सन्तोष रखें।

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