मनमोहन सरकार ने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल तो काफी किया, लेकिन यह कवायद सिर्फ बदलाव का ढिंढोरा पीटने जैसा ही है. सबसे ताज्जुब इस बात से होती है की जिस यूपीए सरकार की चेयरपर्सन और कांग्रेस की अध्यक्ष एक महिला सोनिया गाँधी हों, उसके बावजूद एक भी महिला का कैबिनेट में शामिल न किया जाना हैरान करता है. यहाँ तक की एक भी महिला मंत्री को प्रमोट करके भी कैबिनेट का दर्ज़ा नहीं दिया गया. बात हम चाहे कुछ भी कहें या फिर कोई भी तर्क दें सब महज बहाना ही माना जायेगा. हकीक़त तो यही है कि मनमोहन सरकार की खास और थोड़े शक्तिशाली विभाग में महिलाओं को बहुत कम ही प्रतिनिधित्व मिला है. 78 मंत्रियों वाली कैबिनेट में महज आठ महिला मंत्री यानी सिर्फ दस फीसदी. जब महज दस फीसदी जगह मंत्रिमंडल में देने में इतना आनाकानी और जोड़ घटाव देखने में मिल रहा है तो संसद में ३३ फीसदी की भागीदारी की बात बेमानी ही लगती है. कैबिनेट में जिन महिला मत्रियों को ज़िम्मेदारी दी गयी है, उन मंत्रालयों की कुछ ख़ास अहमियत नहीं है. मसलन, ममता बनर्जी को रेल मंत्रालय, अम्बिका सोनी को सूचना और प्रसारण और कुमारी सेलजा को आवास, शहरी गरबी उन्मूलन एवं संस्कृति मंत्रालय का ज़िम्मा सौंपा गया है. कृष्ण तीरथ अकेली राज्य मंत्री हैं जिन्हें स्वतंत्र प्रभार दिया गया है. उनको महिला और बल विकास मंत्रालय का ज़िम्मा सौंपा गया है. हालाँकि, कई महिलाओं का नाम सामने है और इनको मौका दिया जा सकता था. मसलन, महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास, मीनाक्षी नटराजन, जयन्ती नटराजन आदि.
राम जाने वह घड़ी कब आयेगी।
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