हमारा अपना पाकिस्तान

पाकिस्तान में पंजाब राज्य के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या ने एक बहुत बड़ा सवाल हमारे सामने छोड़ा है. तासीर पाकिस्तान में एक उदारवादी चेहरा थे. सबसे दुःख की बात की जब-जब पकिस्तान में उदारवादी ताकतें अपना जुबान खोलती हैं, उसका अंजाम कुछ तासीर की ही तरह होता है. ऐसी आवाजों को अतीत में सैनिक शासन ने दबाने का काम किया अब अतिवादी लोग यह कर रहे हैं. हालात पहले से बदतर और संगीन हैं. वजह, ऐसे लोग अब आवाम के बीच ही फलफूल रहे हैं. अपनी अलग विचारधारा बना रहे हैं. लोगों को अपनी विचारधारा से जोड़ रहे हैं. यही वजह है कि तासीर के अंगरक्षक  ने ही उनकी हत्या की. खबर तो यह भी है कि हत्यारे मुमताज़ कादरी ने अपने नापाक मकसद को अंजाम देने से पहले अपने साथियों यानी बाकी के अंगरक्षकों से कहा कि वह तासीर की हत्या करने जा रहा है. कादरी ने यह भी कहा कि वह हत्या के बाद आत्मसमर्पण भी कर देगा इसलिए कोई मुझ पर गोली मत चलाना और हुआ भी ऐसा ही. यानी बाकी के अंगरक्षकों की भी सहमति थी, नहीं तो ऐसी नौबत में हत्यारे को मौका-ए-वारदात पे ही सुरक्षा अधिकारी मार गिरते. पर यह हुआ नहीं. पर इस सबसे अलग अहम सवाल यह है कि क्या तासीर की हत्या को पाकिस्तान में उठ रहे उदारवादी आवाजों को दबाने कि कोशिश के तौर पे देखा जाये? अगर ऐसा है तो हमारा पड़ोसी एक कुचक्र में घिरता जा रहा है. उसे बचाने की तमाम कोशिशें नाकाम हो रही हैं. कोशिशों के नाकाम होने की वजह ठोस और सशक्त कोशिश का न होना. यह कुछ ऐसा ही है जैसे ग़ुलामी के दिनों में सन 1857 की क्रांति. अंग्रेजों के ख़िलाफ़ देश के कोने कोने से आवाज़ उठी, लेकिन यह आवाज़ दबी थी नतीजतन अंग्रेजों को उसे कुचलने में ज्यादा मशक्कत करने की ज़रुरत ही नहीं पड़ी. पाकिस्तान में भी उदारवादी ताकतों की भी यही हालत है. कभी पंजाब से तो कभी लाहौर और कभी कराची से चरमपंथियों के ख़िलाफ़ आवाजें उठती हैं. लेकिन इन्हें कुचलने में दिक्कत नहीं होती, क्योंकि इन आवाजों में ताकत ही नहीं है. एक बार पूरे आवाम को जोर का धक्का लगाना होगा. तभी मेरा प्रिय पाकिस्तान अपने पैसों पर खड़ा हो सकेगा. अधिकांश पाकिस्तानियों की तरह मेरा भी मानना है कि अमेरिका का दखल ग़लत है. मैं भी चाहता हूँ पाक कुछ भी करे अपने बूते पर करे. ग़लत फैसले सभी लेते हैं और ग़लतियाँ सभी से होती हैं. इसका मतलब नहीं कि वह हमेशा ग़लत ही होगा. पाकिस्तान के साथ भी ऐसा ही है. और इसका फ़ायदा सत्ता प्रतिष्ठान उठा रहा है. आवाम को नींद से उठाना होगा और अल्लाह, आर्मी और अमेरिका में अल्लाह के रास्तों पर चले. यह रास्ता वाकई ख़ूबसूरत है. बस ज़रूरत है उस सही रास्ते को समझने की. खासकर कादरी जैसे लोगों को. यही लोग हैं जो दो-राहे पर हैं. और इनसे ही पाकिस्तान की किस्मत बनेगी.

2 comments:

  1. दुर्भाग्यपूर्ण घटना, सबकी मिलीभगत है इसमें।

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  2. दुर्भाग्यपूर्ण घटना

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