बेमतलब

मैंने मान लिया है
क्या
ये सोचना अभी बाकी है
लेकिन
इतना तो तय है कि मैंने तय किया है थोड़ा रास्ता
बाकी रास्ता भी नाप लूंगा
तुम अगर यह मान सको 
तो बड़ा एहसान होगा और रास्ता छोटा

मैंने सुन लिया है
क्या
यह कह नहीं सकता
लेकिन
जो भी है वह किसी शीशे की दीवार जैसा है
टूट सकता है
थोड़ी सी मुस्कराहट से ही
तुम अगर मुस्करा सको
तो बात एक होगी और टुकड़े कई

पर मैं जानता हूं
ऐसा कुछ भी नहीं है
कोई रास्ता नहीं है, कोई बात नहीं है
कोई  दीवार,कोई एहसान भी नहीं
है तो बस
तुम और मैं
और
एक दिन
ये भी नहीं रहेगा
बचेगी तो बस ये बेमतलब कविता
                   ---पावस नीर---
यह कविता क्यों लिखी गयी इसका जवाब नहीं मिल पाया. लेकिन जैसा कि हर रचना की अपनी नियति और महत्व होता है, यह बात इस पर भी लागू होती है. लेकिन, यह कविता भला क्यों तो इसका जवाब है आज की भाग दौर भरी ज़िंदगी में जब एक युवा बहुत ही व्यस्त शेड्यूल में अचानक ही कुछ सोचता है तो वह क्या है और भला वह ऐसा क्यों सोचता है इसकीझलक मिलती है.

4 comments:

  1. जो मंजिलें सोच रखी हैं, इस रास्ते से दिखती नहीं। काश दिख जातीं तो अनिश्चितता तो न होती।

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  2. प्रभावी रचना ...... गहरे अर्थ लिए है यह बेमतलब कविता .....

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  3. शानदार कविता
    इस बेमतलब कविता मे मतलब खोज रहा हूँ

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