भारत में हर कोई अपनी मर्जी का मालिक है. यह बात हमारे मत्री साहब से लेकर आम जनता तक पर लागू होती है. इस हिसाब से चलें तो एम एस गिल खेलों के खुदा हैं. वह हमारे कहल मत्री हैं. उनकी ज़िम्मेदारी है खेलों को बढ़ावा देना. खेलों की सभ्यता कायम करना है. लेकिन भारतीय खेलों के खुदा ने जों हरक़त मंगलवार को की है, उसे कभी नहीं भूला जा सकता है. आप सभी इस बात से वाकिफ होंगे ही कि हमारे खेलों के खुदा ने क्या किया है. सुशील कुमार मास्को से कुश्ती का गोल्ड मेडल जीत कर लौटे थे. सुशील के चाहने वालों के अलावा मीडिया भी उनका स्वागत में आँखें बिछाए था. साथ में खेल मंत्री गिल भी आ पहुंचे सुशील को बढ़ायी देने. यहाँ तक तो बात ठीक थी, लेकिन खुद सुशील के साथ फोटो खिंचाने के चक्कर में गिल ने सुशील के गुरु सतपाल का अपमान कर दिया. शायद उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि सतपाल से ज्यादा अहमियत वह सुशील के लिए नहीं रखते हैं. आज सतपाल की वजह से ही सुशील शीर्ष पर हैं. उन्हें भी पता था कि खेल मत्री ने उनके गुरु के साथ ठीक नहीं किया.उन्होंने यह बात कही भी. पर खेल मंत्री के भेजे में यह बात शायद घुसी नहीं. शायद खेल मत्री या दूसरे नेताओं को खुद पहले सभ्यता सिखाने की ज़रुरत है. उन्हें ज्यादा ज़रुरत है. मुझे एक वाकया याद आ रहा है. बात चैम्पियंस ट्रॉफी की है. ऑस्ट्रेलिया की टीम विजेता बनी थी. उस वक़्त शरद पवार बीसीसीआई के कर्ता-धर्ता थे. उस समय कंगारू कप्तान रिकी पोंटिंग अपने बाकी साथियों के साथ कप लेकर जश्न माना रहे थे. बीच में पवार आ गए. उन्हें धक्का देते हुए पोंटिंग ने हटाया कि आप बीच से हट जाइये. इस पर भारत में हल्ला मच गया, पोंटिंग बदतमीज़ है. मीडिया भी यही बता रहा था. इसकी प्रासंगिकता यह है कि यहाँ सुशील के मामले बिलकुल ऐसा न हुआ हो. पर जों भी हुआ बहुत बुरा हुआ. खेल मंत्री को खुद को समझाना चाहिए, वह बार-बार अख़बारों के अगले पन्ने पर चाप सकते हैं. चैनलों में दिख सकते हैं. पर इन खिलाडियों के पास बहुत काम मौका होता है और उनके गुरु को तो और भी कम. एक तो वह रिटायर नौकरशाह हैं. उसके बाद मनमोहन सिंह की कृपा से चोर दरवाजे से राजनीति में घुसे हैं. आपको बता दें कि उन पर पहले भारत में चुनाव करवाने का ज़िम्मा था मतलब यह कि वह निर्वाचन आयुक्त थे. अब समझ सकते हैं कि वह कांग्रेस की सरकार में मंत्री कैसे बने. बस मैं यही कहना चाहता हूँ कि गिल साहब फोटो खिचाना छोडिये ज़रा राष्ट्रमंडल का हालचाल लीजिये. वैसे भी काफी किरकिरी हो चुकी है. भ्रष्ट्राचार कि तो बात ही नहीं कर रहा, उसका हिसाब तो भाई लोग खेलों के बाद करेंगे. दिल्ली में वैसे भी बारिश रोज़ हो रही है, देखिये कहीं किसी स्टेडियम की छत तो नहीं टपक रही है.
आईएसगिरी यूं हल्के में कहां जाती है, मंत्री हुए भी तो कया. क्या मंत्री को पता है कि द्रोणाचार्य कौन थे जिनके नाम पर चलाया जाने पदक सत्पाल को दिया गया था ? सतपाल आज के श्लाघ्य गुरू ही नहीं हैं कल तक स्वयं देश के सुशील से भी बड़े स्टार थे. सतपाल का अपमान देश का अपमान है. क्या यह ढीठ आदमी मेरा खेलमंत्री हो सकता है ! शर्म आती है स्वीकार करते हुए. कोई अन्य होता तो सतपाल से माफ़ी मांग लेता. पर यहां रस्सी जल गई पर बल कहां गया है. प्रभु हमें सहनशक्ति दे.
ReplyDeletekajal bhai bilkul sahi, prabhu hame sahanshakti hi de
ReplyDeleteबढ़िया विचार मंथन है यह ।
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