जनलोकपाल बिल की चुनौती

दिग्भ्रमित हूं। चाहता हूं जो लोग चाहते हैं जनलोकपाल विधेयक बने और बने तो कैसे बने, कौन बनाए... वे लोग कृपया कुछ सुझाव दें तो मैं बहुत आभारी रहूंगा। सिविल सोसायटी के बारे में, विरोध में, सरकार विरोधी और पक्ष में काफी बातें की जा सकती हैं। मेरा सवाल है विरोधी और समर्थन वाले ज़रा कुछ राय आर भी दीजिए कि कानून बने तो कैसे, कौन बनाए। सरकार और नेता मिलकर बनाएंगे तो अपने हिसाब से ही बनाएंगे। तभी तो देखते हैं कानून अमीरों और नेताओं की रखैल की तरह है और ग़रीब बेचारा सालों तक बिना कुछ करे जेल की चक्की में पीसता रहता है। कोई देशद्रोही तो कोई नक्सली होने के आरोप में सरकार द्वारा जबरन जेल में डाल दिया जाता है। बिनायक सेन का मामले अभी ताजा है। निचली अदालत से लेकर ऊपर तक सभी ने दोषी करार दे दिया। यह है देश का संविधान। सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमात मिली और सरकार को बताया कि देशद्रोह क्या होता है। अहर सरकार की तले तो वह नेताओंऔर उनके रिश्तेदारों द्वारा किए जाने वाले हर काम को जायज और उनके विरोध में किए जाने वाले काम को गैर कानून बना दे। लेकिन चलती नहीं। संविधान में कई ऐसे पहलू हैं जो कारगर नहीं हैं। अलग-अलग देशों के मसौदे को कट, कॉपी और पेस्ट कर दिया गया है जो भारतीय संदर्भ में लागू नहीं होते इसी का फा़यदा नेता लोग उठाते हैं अपने हिसाब से संशोधन करते हैं। यही हाल आईपीसी और सीआरपीसी का भी है। मेरी समस्या यह है कि इसका समाधान क्या है क्या हम सिर्फ फेसबुक पर इसके समर्थन और विरोध में बातें करें। कौन बनाएगा कानून और कौन नहीं ये बातें करें। जो बनाने जा रहा है वो पाक साफ है या नहीं। बहुत जटिल मामला है। ज़रा मेरी जिज्ञासा शांत करें। अंदर बेचैनी बढ़ती जा रही है। भइया मुझे पता है इस हमाम में सभी नंगे हैं इसलिए मैं चाहता हूं आप इस ड्राफ्टिंग कमिटी में सिविल सोसायटी की नुमाइंदगी करें। मुझे पता है आप भी इनकार कर देंगे। आप कह रहे हैं कि जनता बिना चुने लोग कैसे किसी कानून को बना सकते हैं तो आप चुने हुए लोगों से बनवाइए...शरद पवार, कलमाड़ी, ए राजा जैसों से ...बाहर बैठे खामियां निकालना बहुत आसान है। कुछ लोग पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं।