डॉन की ख़ूनी साज़िश का राज़



एक सनसनीख़ेज ख़ुलासा... एक ऐसा ख़ुलासा जो अंडरवर्ल्ड की दुनिया में मचा देगा खलबली... आज हम आपको बताएंगे डॉन के दूर होते दहशत का रहस्य !....... और दाउद किससे मिलाने जा रहा हाथ.....
डर्टी डॉन अब खुद है दहशत में........ जी हाँ, हिंदुस्तान के बाद, अब कराची भी नहीं रहा उसके लिए महफूज ठिकाना...... मँडराने लगा है, उस पर मौत का खतरा......ख़त्म होने लगा है, डॉन के दहशत का साम्राज्य........ दाउद अब कराची छोड़ पहुँच चुका है मालदीव.......दे रहा है अब वहीं से अपने नेटवर्क को अंजाम..... लेकिन अब उसकी ताकत पहले जैसी नहीं रही....... और अपने भाई नूरा की मौत के बाद बौखला गया है वो....... लेना चाहता है अपने भाई की मौत का बदला...... इसलिए जुट गया है अब अपने कुनबे को जोड़ने में........हम आपको बताने जा रहे हैं एक नया ख़ुलासा....... जी हाँ, मिलने जा रहे अब देश के दो गद्दार...... फिर बरपाएंगे क़हर एक साथ........ जी हाँ, हम बात कर रहे हैं, अंडरवर्ल्ड डॉन और डी कंपनी के सरगना दाउद इब्राहिम कासकर और छोटा राजन की........
ये वही छोटा राजन है जो कभी दाउद का खासमखास हुआ करता था....... और दाउद के एक इशारे पर ही मचा देता था कोहराम.......लेकिन कहते हैं न धंधा है पर गंदा है ये...........वक्त ऐसा भी आया जब मासूमो के ख़ून से होली खेलने वाले एक दूसरे के ख़ून के प्यासे हो गये....... जी हाँ, मुंबई बम धमाको ने दाउद और छोटा राजन के बीच दुश्मनी की लंबी दीवार खड़ी कर दी........ फिर तो शुरू हो गया, गैंगवार........ आ गये दोनो एक दूसरे के निशाने पर........ एक-दूसरे के कुनबे को ख़त्म करने की खा ली कसम.......बस क्या था, शुरू हो गया दो अंडरवर्ल्ड डॉन के बीच मौत का तांडव....... इसी बीच दाउद ने छोटा राजन के मौत की साज़िश रची......और उस पर करवाए एक के बाद एक कातिलाना हमले....... लेकिन हर बार बाल-बाल बचता रहा छोटा राजन.......
साल दो हज़ार दो में बैंकॉक में दाउद ने छोटा शकील से छोटा राजन पर ज़बरदस्त हमला करवाया....... जिसमें छोटा राजन तो बच गया लेकिन उसका खासमखास रोहित वर्मा और उसकी बीवी मारे गये......... छोटा राजन किसी तरह बच निकलने में कामयाब हो गया......लेकिन ये तो गैंगवार का महज आगाज़ था.......उसके बाद तो छोटा राजन, करने लगा दाउद और छोटा शकील को ही ख़त्म करने की साज़िश...... सबसे पहले छोटा राजन ने विनोद शेट्टी और शरद शेट्टी को मारा....... जिसके लिंक से दाउद ने उस पर बैंकॉक मे हमला करवाया था....... आज भी छोटा राजन उस ख़ौफनाक मंजर को नहीं भूल पाया है....... सालों तक सुलगता रहा बदले की आग में........
लेकिन अब दो जानी दुश्मन मिलाने जा रहे हैं हाथ.........लेकिन इन सबके लिए हुआ है एक सौदा, वो भी मौत का.....मौत भी डॉन के खासमखास गुर्गे छोटा शकील की...वजह बैंकॉक में साल २००० में राजन पर शकील का अटैक करना...

हम जनतन के भक्त, नेतन हमारे

एक- दो दिन पहले राहुल गाँधी का ये बयान आया कि.....,मेरे पापा कहते थे कि सौ में से पंद्रह पैसा ही आम लोगों तक पहुँच पाता है...लेकिन मेरे हिसाब से पाँच पैसा ही लोगों तक पहुँचता है। ये बयान था राहुल गाँधी का। कुछ लोगों को उनकी ये बात दिलेरी वाली लग सकती है, कि उनकी सरकार है फिर भी ऐसी बातें वो करते हैं।



लेकिन क्यों भई, आख़िर क्यों ? कब तक ऐसे ही चलेगा, जिस पार्टी ने पचास सालों तक देश पर शासन किया, वही आज ऐसे क्यों कह रहा है.....अपनी नाकामयाबी को तो सरेआम स्वीकार करता है, फिर भी एक मौक़ा माँगता है...हमने तो एक नहीं, दो नहीं दस-दस मौक़े दिए फिर भी ये सुनने के लिए कि उनका किया काम जनता तक नहीं पहुँच पाता। समाजवाद का रोना रोते-रोते चाचा नेहरू चले गए...सड़ा हुआ समाज छोड़ गए... ग़रीबी के नाम पर इंदिरा ने वोट माँगे थे, हमने प्रधानमंत्री बना दिए, आज तक ग़रीबी गई नहीं...राजीव आए...कंप्यूटर लाए, लेकिन क्या हुआ आख़िरकार यही कह गए जनता का भला नहीं हो रहा है...अभी सोनिया हैं, रिपोर्ट आई देश की सतहत्तर फीसदी आबादी हररोज़ बीस रूपयो से भी कम पर गुजारा कर रही है...अब राहुल की बारी भी आ चुकी है...वो कह रहे हैं सौ में पाँच पैसे भी पब्लिक तक नहीं पहुँच रही है। और आपने देखा भी किसने कितने दिनों तक देश पर शासन किया...फिर जब-तब उनके ही हुक्मरानो की ओर से ऐसे बयान कि जनता का कुछ नहीं हो रहा तो आप बार-बार किसे बेवकूफ बनाने चले आते हो... यही होता है सबने पब्लिक को मानो अपनी जागीर समझ रखी हो.....अब फैसला भी हमें ही करना है कि आख़िर हमारा होना क्या है...ऐसे ही चक्की में पिसते रहना है या फिर....................................................??????????

. हत्यारों की हक़ीक़त से हारी पुलिस



एक हत्यारा जो कामयाब हो जाता है अपने गुनाह को अंजाम देने मे और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है पुलिस तक पहुचीं एक ख़बर ही बन जाती है कत्ल की वज़ह .... आख़िर कितने भरोसे लायक है पुलिस।

ख़ूनी, अपने ख़तरनाक इरादों में कामयाब रहा और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। ये कहानी, बहुत पुरानी है, लेकिन यही करेगी, हत्यारों के नापाक इरादों का, हम आपको बताएंगे, क़ातिलों का कबूलनामा। करेंगे, ग़ुनाहगारों के नापाक मंसूबो का पर्दाफाश। खोलेंगे ग़ुनाहगारों की गुत्थी। और कैसे, पुलिस हरबार की तरह हत्यारों तक पहुँचने में रही नाकामयाब । वहीं अपनी नाकामी से बौखलाई पुलिस दावा कर रही है, वह बहुत जल्द हत्यारों को करेगी बेनक़ाब । गुड़गांव बन चुका है, गुनाहगारों के लिए मुफीद ठिकाना और उनके निशाने पर हैं तमाम हाई-प्रोफाइल लोग। जो वक़्त-बेवक़्त बन जाते हैं इन क़ातिलों के शिकार।

वारदात हुई ऐसी जगह जो राजधानी दिल्ली से महज कुछ ही दूर है। प्रवीण, जो एक बेहद ही महत्वाकांक्षी नौजवान था। बस अपनी ही दुनिया में खोया रहने वाला। जिसकी तमन्ना थी, पूरी दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने की। अपने इन्हीं ख़्वाबों को पूरा करने के लिए उसने दिन-रात एक कर दी । जिसकी बदौलत रियल एस्टेट की जेएलएलएम जैसी कंपनी भी सफलता की ऊँचाईयां छूने लगी। फिर क्या था, उसकी ज़िंदगी में तो मानो खुशियों के चार चाँद लग गए । प्रवीण, जिसने अपने ख़्वाबों की हक़ीक़त को पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दी। अब अपनी मज़बूत इरादों की बदौलत वह आसमान की बुलंदियों को छू रहा था। यहाँ तक कि अब उसे दूसरी कंपनियों से भी मोटी रकम की पेशकश होने लगी थी। लेकिन कहीं एक साज़िश थी रची जा रही, कोई कर रहा था उसकी मौत का इंतजार। कहते हैं, जब इंसान कामयाबी की बुलंदियों को छूने लगता है तो, अनजाने में ही अपने आसपास दुश्मनों की एक ऐसी फौज़ तैयार कर लेता है। जो उसकी कामयाबी से परेशान, रचने लगता है गहरी साज़िश। फिर शुरू हो जाता है शह और मात का खेल। और इंसान अपनी कामयाबी में इतना खो जाता है कि हो जाता है उसका काम तमाम। बिछ जाती है बिसात मौत की। शुरू होता है एक ऐसा खेल जिसका पलड़ा झुका होता है क़ातिल की ओर। जिसके एक भी वार का अंजाम होता है, सिर्फ और सिर्फ मौत।
उस रात, प्रवीण भी अपनी कामयाबी का जश्न मनाने के बाद अपनी कार से घर लौट रहा था। उसके हाथ लगा था एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट। वो बेहद खुश नज़र आ रहा था। लेकिन उसे कहाँ मालूम था, ये उसकी आख़िरी रात होगी, खुशी का आख़िरी पल होगा। फ़ोन पर मंगेतर से की गई बात उसकी ज़िदगी की आख़िरी बात होगी और वो पल उसकी ज़िदगी का आख़िरी पल होगा।

प्रवीण की हत्या ने लोगों को झकझोड़ कर रख दिया है। जगह गुड़गांव, इलाक़ा डीएलएफ सिटी। और हत्या की गई एक रियल एस्टेट कंपनी के एसोसिएट मैनेजर की। छह जनवरी की रात। और रात के साये में एक मारूती कार आगे बढ़ रही थी, तभी गूँज उठा डीएलएफ गुड़गांव का यह इलाक़ा गोलियों की आवाज़ से। उस वक़्त प्रवीण अपनी मंगेतर से फोन पर बात कर रहा था। इस आवाज़ से घबराई उसकी मंगेतर ने वजह पूछनी चाही, तभी उसके कानों में एक गुमनाम आवाज़ गूँजती है। प्रवीण का अपहरण कर लिया गया है और इसके पिता से बोलो पचास हज़ार की फिरौती लेकर आए। सेक्टर पाँच में रहने वाले प्रवीण के पिता को यह ख़बर दी गई। और उन्होंने ये ख़बर पुलिस को दी। बस यही एक ग़लती, जिसने ले ली प्रवीण की जान। जी हां, पुलिस को दी गई ख़बर, उन हत्यारों तक भी पहुँच चुकी थी। फिर तो जो होना था वही हुआ। उन दरिंदों ने प्रवीण को गोलियों से भून डाला।और एक पिता अपने बेटे की ज़िदगी से हो गया महरूम । पुलिस की तफ्तीश अभी जारी है। लेकिन एक बात साफ़ है, ये ज़ुर्म की दास्तां बदस्तूर जारी है वो भी पुलिस की नाक के नीचे।


2. ख़तरनाक मंसूबों से कभी परेशान ना हो।
वक़्त खोलेगा हर राज़, तुम हैरान ना हो।।

हत्यारे की हत्या की साज़िश

रची जा रही है, एक हत्यारे की हत्या की साज़िश। जी हां, अपने कारनामों से मुंबई को दहला देने वाले क़साब की हत्या की साज़िश। जिसने अपनी ख़तरनाक मंसूबों से ऐसी वारदात को अंजाम दिया, जिसकी अब इबारत लिखी जा चुकी है। आतंकी वारदातों में, इतिहास के पन्नों को जब भी पलटा जाएगा, ख़ून की स्याही से दर्ज मुंबई पर 26/11 की आतंकी हमले का नाम सबसे ऊपर आएगा। जी हाँ, उस आतंकी की हत्या की साज़िश का पर्दाफाश, जो हमले में पकड़ा गया एकमात्र ज़िदा आतंकी है।

एक-एक कर खुलते जा रहे हैं, अब पाकिस्तान के नापाक इरादों का राज़। पाकिस्तान की काली करतूतों का सनसनीख़ेज ख़ुलासा। एक ऐसी साज़िश जिसका ग़ुनहगार और राज़दार है, ख़ुद पाकिस्तान। अपने ही चाल में मात खाने के बाद तिलमिला गया है, पाकिस्तान। अब तक बड़ी ही चालाकी से अपने मक़सद को अंजाम देने के बाद वह अपने ही जाल में फँस चुका है। मुंबई हमले की साज़िश ने पहली बार उसे कर दिया बेनक़ाब। कसाब के क़बूलनामे ने उसके होश पख़्ता कर दिए, फिर तो पाक की हालत न घर की रही न घाट की। और इसी बौखलाहट में वो रचने लगा है, एक साज़िश। जी हाँ, मुंबई हमले में पकड़े गए एकमात्र आतंकी की हत्या की साज़िश। और ये ख़ुलासा किया है, मुंबई पुलिस ने। मुंबई हमले की जाँच कर रहे पुलिस अधिकारी राकेश मारिया के मुताबिक़, पुलिस ने पाकिस्तान में क़साब की हत्या की साज़िश का पर्दाफ़ाश किया है। पुलिस की मानें तो, लश्कर-ए-तैयबा के इस आतंकवादी की सुरक्षा ही अब उसके लिए जी का जंजाल बन चुका है। मुंबई पुलिस के इस ख़ुलासे ने एकबार फिर पाक के नापाक मंसूबों का कच्चा-चिट्ठा खोल दिया है।
लगातार दो दिनों तक ख़ूनी खेल खेलने वाले इस आतंकवादी पर अब अपने आकाओं की ही टेढ़ी नज़र पड़ने लगी है। और होने लगी है साज़िश मौत की। उस क़साब की जिसने दिया था अंजाम हिंदुस्तान में अब तक के सबसे बड़े आतंकवादी वारदात को। पाक का यह पैंतरा देख अब उड़ जाएंगे उसके बाक़ी मोहरों के भी होश। देखकर अपने साथी के ख़िलाफ़ हत्या की साज़िश।

सेंसेक्स का सियासी चाल

आज पूरी दुनिया में अर्थव्यवस्था की जो हालत है, वह सबके सामने है। इसकी जड़ें इतनी हिल चुकी हैं, कि एक के बाद एक राहत पैकेज दिए जाने के बावजूद संभलते नहीं संभल रही। तमाम पूँजीवादी राष्ट्रों ने समाजवाद की राह पकड़ ली। मतलब सरकारें निजी कंपनियों को बचाने में लग गईं। आम लोगों के पैसे का इस्तेमाल पूँजीपतियों की पूँजी बचाने में लगाने लगी। लेकिन वो अभी भी बेख़बर है, इस मर्ज़ की हक़ीकत से और जनता का पैसा बेहिचक लुटाए जा रही है।
लेकि आज मसला फिर जुड़ा है, सेंसेक्स के चंचल रवैये से। काफी दिनों के बाद फिर बाज़ार ने बुलंदियों को छूना शुरू कर दिया है। एक बार फिर इसने ग्यारह हज़ार का आँकड़ा छुआ। इस ऊँचाई तक पहुँचने में इसने अक्तूबर से अप्रैल तक यानी छह महीने का वक़्त लिया। जबकि अक्तूबर से पहले चंद दिनों में ही इसने बीस हज़ार का आँकड़ा पार कर लिया था। उसके बाद तो वैश्विक आर्थिक मंदी की ऐसी आंधी चली कि इसने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को धाराशायी कर दिया। और ये संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से सेंसेक्स में ज़बरदस्त उछाल देखने को मिल रहा है। विश्लेषक छानबीन में लगे हैं, हक़ीकत का पता लगाने के लिए।
लेकिन एक बात साफ़ है, इस चुनावी माहौल में सेंसेक्स की सांस कब तक थमी रहती है, ये तो चंद दिनों में ही पता चल जाएगा। आख़िर कब तक इस सट्टेबाज़ी की पतंग आसमान में उड़ती रहती है, क्योंकि चंद लोग ही इस खेल में शामिल हैं और उन्हें मालूम है, कब ढिल देनी है और कब डोर काटनी है ?

मीडिया मेनिया

लोकतंत्र के चार स्तंभों में चौथा स्तंभ माना जाता है-मीडिया। मीडिया, जिससे लोकतंत्र की नींव मज़बूत होती है, आम आदमी की आवाज़ बुलंद होती है और जो राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय परिघटनाओं को निष्पक्ष रूप से हमारे सामने लाती है। यह सभी परिस्थितियों में अपनी निष्पक्षता, विश्वसनीयता को प्रमाणित भी करती आई है। आज टी.वी. और प्रिंट मीडिया के बढते दायरे से दुनिया की छोटी-से-छोटी ख़बर से भी हम वाकिफ़ हो जाते हैं। ग्लोबलाइजेशन और पूंजीवादी सोच ने आज हर क्षेत्र को व्यवसायिक रंग में रंग दिया है। जिसमें मुनाफ़ा कमाना एकमात्र लक्ष्य है। यही वजह है कि इस क्षेत्र में भी आज निजी कंपनियां धड़ल्ले से आ रही हैं। उनका मक़सद भी मात्र मुनाफ़ा कमाना होता है, तभी तो आज हर न्यूज़ चैनल मनोरंजन और विज्ञापन चैनल बनता जा रहा है। कमोबेश यही स्थिति प्रिंट क्षेत्र में भी है। आप किसी भी अख़बार को उठाकर देख लें, पहले पन्ने से आख़िरी तक आप विज्ञापन ही पाएंगे। समाचारपत्र या ख़बरिया चैनल होने से इनकी साख पर इन सबसे नुकसान भी पहुंचता है तो कभी-कभी खानापूर्ति के लिए अपनी ज़िम्मेदारी का ख़्याल भी आ जाता है।
आज चैनलों की जो हालत है, साफ़ पता चलता है कि न्यूज़ विज्ञापन की तरह दिखाए जा रहे हैं और विज्ञापन न्यूज़ की तरह। साथ में कंटेंट के नाम पर क्या परोसा और थोपा जाता है, ये हम सभी जानते हैं। उपर से इल्ज़ाम की पब्लिक यही देखना चाहती है तो हम क्या करें। जैसे ये अपना धंधा पब्लिक से पूछ कर चलाते हैं। हांलाकि कुछ चैनल अपनी गरिमा बनाए हुए हैं, लेकिन इससे भी कुछ नहीं होनेवाला, वजह हम आपको बताते हैं, अकेला चना भांड़ नहीं फोड़ता और साथ में जौ के साथ घुन भी पिसता है।

ग्लोबल वार्मिंग का वार्म


ग्लोबल वार्मिंग आज पूरी दुनिया के सामने एक गंभीर समस्या के रूप में सामने है। इसकी वजह से हमारे अस्तित्व पर ही ख़तरा आ गया है। विकास और उच्च जीवन स्तर के लिए हम प्राकृतिक एवं कृत्रिम संसाधानों का भरपूर दोहन कर रहें हैं, नतीजतन हमें इसकी क़ीमत अपने अस्तित्व के साथ पूरे जीव समुदाय को ख़तरे में डालकर अदा करनी पर रही है।

ऐसा माना गया है कि इसी वजह से पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में सुंदरवन का अठारह हज़ार एकड़ से अधिक का इलाका जलमग्न हो चुका है, क्योंकि ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि होती है और तटवर्ती इलाक़े जल-मग्न हो जाती हैं। अगर विशेषज्ञों की राय देखें तो, आनेवाले दिनों में इसके भयावह परिणाम हमें झेलने होंगे-मसलन,

१ जलवायु परिवर्तन, पानी की किल्लत।

२ मानसूनी वर्षा इसके निशाने पर है,

३ गंगोत्री ग्लेशियर ३० मी प्रति वर्ष की दर से सिकुड़ रहा है,

४ जलवायु परिवर्तन के कारण सर्वाधिक असर प्राकृतिक संसाधनों पर है( कृषि पैदावार प्रभावित, बिजली की कमी आदि)

५ मौसम चक्र में बदलाव से संक्रामक बीमारियों में वृद्धि।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रमुख कारणों में वातावरण में कार्बन-डाई-ऑक्साइड, मिथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि, अंधाधुंध औद्योगिक विकास, कार्बन-मोनोक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन और अन्य गैसों का उत्सर्जन शामिल है।

यह मुद्दा देखने में लोगों को समझ से परे लग सकता है, क्योंकि हमारी सोच किसी भी काम के दूरगामी नतीजों से कोई ताल्लुक नहीं रखना चाहती है, इसीलिए यह कोई मुद्दा नहीं बनता है, लेकिन हक़ीक़त में यह हमारे अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। और जब हम सब ही इसे कोई मुद्दा नहीं मानते तो हमारे नेता इसे कैसे मुद्दा मान सकते हैं, वो तो बस राम और मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर ही वोट मांगेंगे, हमारे बीच फूट डालकर। तो फिर हम किस मुंह से अपनी दुर्गति के लिए नेताओं ज़िम्मेदार ठहराते हैं,

जब हमें ख़ुद हमारी मुद्दों की समझ नहीं है।

जाने क्यूं??????

जाने क्यूं ?
आज दिल बहुत बेचैन है,
कुछ भूल रहा हूं!
कुछ याद आ रहा है!
पता नहीं ,क्यूं
आज दिल बहुत बेचैन है?
इस ग़ुमनाम ग़म की,
आख़िर वज़ह क्या है?
जुबान मेरे ख़ामोश क्यों है,
क्यों चुप हैं, तुम्हारे लब भी?
सोचने का वक्त नहीं है पास !
या कुछ और वजह है?
आज बता दो ,
कि लब तुम्हारे भी ख़ामोश क्यों हैं?

कुछ चुनावी बातें


मज़बूत नेता, निर्णायक सरकार।
चाहे करना पड़े देश का बँटाधार ।।


२ फ़िर चुनाव की बारी आई है।
साथ में तीसरा और चौथा मोर्चा साथ लाई है॥

३ ये वादा, वो वादा!! हर वादा
चुनाव के पहले तेरा वादा!!!
कसमे वादे निभाएंगे हम,

गरीबी दूर भगायेंगे हम,
आपको रोज़गार दिलाएंगे हम,
लेकिन, कसमे वादे ........सब बातें हैं ,बातों का क्या????


४ गाँव के गरीबों को, शहरों के अमीरों को
एक ये पैगाम है
वोट डालना, आपका जन्मसिद्ध अधिकार है।


साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता का चला ये नया खेल है,
कुछ अनुभवी तो कुछ खिलाडी जोश और उमंग से लबरेज़ हैं।

एक ऐसा खेल जो फाउल पर भी नंबर लाता है,
कल का सांप्रदायिक ,आज धर्मनिरपेक्ष बन जाता है।
मुसलमानों के हाथ काटने वालों पर, रोड रोलर चलवाता है।।


चलते-चलते ,

६ कांग्रेस का हाथ , आम आदमी के साथ।
जॉब की छटनी, सेंसेक्स की ढलान,
फ़िर हो आम आदमी के चहरे पर मुस्कान।




ये जूता, वो जूता ! आख़िर किसका जूता?


मेरे हिसाब से जूते का जिक्र यदि बड़े स्तर पर पहली बार हुआ होगा तो, राज कपूर के गाने " मेरा जूता है जापानी........." में। लेकिन पिछले कुछ दिनों में इस जूते ने अपनी एक अलग पहचान बना ली है। वह भी अन्तराष्ट्रीय स्तर पर। हर किसी की अपनी एक तमन्ना होती है कि उसकी अपनी एक अलग पहचान हो!
तो आख़िर जूता भी कब तक इंसान के कदमों में पड़ा रहता। उसने भी जोखिम उठाया। कर ली मीडिया मुट्ठी में। हो गया नाम दनिया में।
लेकिन भाई साहब , इस जूते में और उस जूते में कहीं-न-कहीं एक समानता दिखती है। वह है जलालत की जिंदगी की मुखालफत करना। एक तरफ़ वो बुश का जूता, ये चिदंबरम का जूता। दोनों ने खूब वाहवाहियां लूटीं। हालाँकि बीच में चीन के प्रधानमंत्री के जूते का भी जिक्र हुआ था। लेकिन इसे वो रूतबा नहीं मिल पाया। इसके पीछे भी वजह है। पहले बुश साहब का जूता। महाशय, गए तो थे इराकियों का हालचाल जानने लेकिन खिदमत हो गयी जूते से। दरअसल जिसने बदन पर हज़ार जख्म दिए हो, फ़िर उस पर मलहम लगाने के नाम पर उसे और खरोंचे तो क्या हालत होगी? जनाब बुश साहब ने भी यही किया और इनाम में मुन्तज़र जैदी ने दो जूते दे दिए।
और ऊपर जो मैंने जिक्र किया बुश और चिदंबरम के जूते की समानता की, यहाँ पर किस्सा ये है कि करीब तीन से चार हज़ार सिक्खों के कत्लेआम । चौबीस सालों से लोग इन्साफ की आस में बैठे हैं और सीबीआई मिनटों में उन गुनाहगारों को पाक -साफ़ करार दे देती है। वही सीबीआई जो गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है। बस सवाल उन्ही से था चिदंबरम साहब से, महाशय ने पोलिटिकली जवाब दिया , जरनैल साहब जो दैनिक जागरण में पत्रकार हैं , उन्हें लगा ये उनकी (सिक्खों) भावनाओं से खिलवाड़ हो रहा है। फ़िर उन्होंने ये गुस्ताखी कर दी।
हालाँकि ये ग़लत है। मेरे हिसाब से एक पत्रकार के तौर पर उन्होंने इस पेशे को बदनाम करने की कोशिश की है। वो पत्रकारिता के प्रोफेशन में ख़ुद को बायस्ड होने से नहीं रोक पाए , अपनी भावनाओं पर काबू नहीं कर पाये। लेकिन ये उन नेताओं के लिए एक संदेश भी है कि वो अब जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करना छोड़ दे। किसी भी घटना को टालने के लिए कमिटी पर कमिटी बैठना छोड़ दे, साथ ही किसी जाँच और सरकारी एजेंसी का राजनीतिक इस्तेमाल करना भी। नहीं तो आने वाले दिनों में और बुरे नतीजे हो सकते हैं। आम लोगों को ज़्यादा दिनों तक हमारे ये सत्तालोलुप नेता बेवकूफ बना कर नहीं रख सकते। वो ख़ुद को जनता का मालिक न समझे, बल्कि इस लोकतंत्र में वे जनता के सेवक हैं। बस जरूरत है उन्हें ख़ुद की हैसियत याद कराने की।

जय हिंद!!!!!!!!!जय हिंद!!!!!!!

आधारहीन लोकतंत्र


चाणक्य ने एक बार कहा था, पानी में रहकर जिस प्रकार मछलियाँ कब पानी पी जाती हैं, यह पता लगाना कठिन है। उसी प्रकार शासकीय सेवक कब भ्रष्टाचार कर जाता है, यह जानना उससे भी कठिन है. लेकिन मेरे मानना है, नेता कब भ्रष्ट हो जाते हैं और राजनीति के सही मुद्दे को कैसे गोल कर जाते हैं, यह पता लगाना सबसे मुश्किल है. पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं, लगभग सभी पार्टियों ने अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी कर दिया है.लेकिन इनमे सही मायनों में देखा जाये तो कुछेक को छोड़ कर बाकी मुद्दे अप्रासंगिक हैं. मसलन, पिछले दिनों महंगाई अपने चरम पर थी. आज उसमे बहुत कमी आई है, नौबत यहाँ तक है, कि मुद्राअवस्फीति का संकट गहराने लगा है. लेकिन ज़रूरी खाने-पीने की चीज़ों के दामों में गिरावट अभी भी नहीं हुई हैं. यह मुद्दा बिलकुल आम आदमी से जुडा हुआ है, लेकिन बहस में कहीं नहीं है. बहस अगर है तो राम मंदिर बनवाने पर, आखिर आम आदमी को इससे क्या, मंदिर बने या मस्जिद ? क्या फर्क पड़ता है? उसे जब खाने को दो वक्त की रोटी ही नहीं मिलेगी तो राम का भजन कैसे करेगा? वैसे भी कहा गया है,भूखे पेट भजन नहीं होत गोपाला! ये तो महज भावनाओं से खिलवाड़ है. हम इस झांसे में आ भी जाते हैं तो ये हमारी भी खामी है जब मौका आता है सबक सिखाने का तो या तो जात-पात और मजहब के नाम पर वोट देते है नहीं तो चुप -चाप घर में बैठ कर नेताओं को सिर्फ गाली देते हैं!


दूसरा भाग : आजकल हमसभी एक रूझान ये देख रहे हैं कि चुनावों में वोट डालने के प्रति लोगों का रूझान कम हो रहा है. आखिर इसके पीछे वजह क्या हो सकती है. एक तो लोगों का राजनीति से मोहभंग या जनता की उम्मीदों पर नेताओं का खरे न उतरना. साथ में एक ट्रेंड ये भी चल पड़ा है कि जो नेता जनता के बीच से चुन कर नहीं आते वही उनकी दिशा-दशा और भाग्य का फैसला करते हैं. उदहारण के तौर पर, हमारे देश के प्रधानमंत्री को लोगों ने नहीं चुना वो राज्यसभा के सदस्य हैं जिसे जनता नहीं चुनती है. देश के रक्षामंत्री को भी लोगों ने नहीं चुना. इतना ही नहीं, पिछले दिनों जिस महंगाई के पीछे पेट्रोल की कीमत रही, उसका बोझ समूचे देश पर एक जैसा डालने वाले पेट्रोलियम मंत्री भी राज्यसभा के सदस्य हैं,मुंबई २६/११ आतंकवादी हमलों के बाद अपने पद से इस्तीफा देने वाले शिवराज पाटिल लोकसभा का चुनाव हार गए थे.सभी संसदीय दलों में आडवाणी को छोड़ दिया जाये तो हर नेता की इंट्री पिछले दरवाजे से है. मुरलीमनोहर जोशी, अरुण जेतली , सुषमा स्वराज, वेंकैया नायडू सभी राज्य सभा के सदस्य हैं. सीपीएम महासचिव प्रकाश करात ने कभी चुनाव लड़ा नहीं और उनके सहयोगी एबीवर्धन कभी चुनाव जीत नहीं पाए. एटमी डील पर राष्ट्रहित का सवाल खडा करने वाले और लखनऊ से संजय दत्त को चुनाव लड़वाने में असफल रहने वाले अमर सिंह की कभी हिम्मत ही नहीं पड़ी जनता के बीच जाने की!!!!!!!!!!!!!

वोट वाली जनता


बीजेपी का चुनावी घोषणा पत्र जारी हो गया है। एक बार फ़िर रामचंद्रजी चर्चा में हैं। वजह आवास (घर ) समस्या है। लेकिन चिंता की बात नही है, बीजेपी ने वादा किया है, उन्हें उनका घर वापस कर दिया जायेगा, जो उनसे छीन लिया गए थे.बीजेपी के मुताबिक राम का घर जहाँ है वही रहेगा । तो लोगो से आग्रह है की आप सभी बीजेपी को सत्ता में लायें। तभी सर्वव्यापी राम का घर वापस मिल पायेगा।
गावों का देश भारत । अब एक अच्छी ख़बर गाँव वालो के लिए भी है। उन्हें अब सूचना प्राद्यौगिकी आधारित रोज़गार मुहैया कराई जायेगी। चलिए आप भी कुछ दिन तक ख्याली पुलाव बना लीजिये। खाने को कितना मिलेगा अब ये तो आपके खाने पर निर्भर करता है। अरे भाई, आप क्यों परेशान होते हैं, आपके लिए भी बीजेपी ने कुछ सोच रखा है। आप सभी की आमदनी तो बीस रुपये से भी कम है, तो आप लोगों को बीजेपी दो रुपये किलो चावल और गेहूं देगी। और इनसे होने वाली हानि की क्षतिपूर्ति वह स्विस बैंक में जमा पचीस लाख करोड़ रुपये के काले धन को भारत लाकर करेगी। तो पैसा कहाँ से आएगा इसकी चिंता आप छोड़ दीजिये।
गोधरा, कंधमाल जैसी घटनाओं के बाद अब अल्पसंख्यकों को भी बीजेपी से मोहब्बत कर लेनी चाहिए। क्योंकि उनकी हितों की रक्षा का वायदा भी तो बीजेपी कर रही है। लेकिन, सत्ता में आने के बाद उसका रूख क्या होगा इसकी गारंटी नहीं दे सकता। चौंकिए मत,बंगलोर पब वो तो संस्कृति रक्षा थी। हिंदू भाइयों आप के लिए भी ऑफ़र है। आपकी पवित्र नदी गंगा को साफ किया जाएगा , गोवंश की रक्षा की जायेगी और मन्दिर -मठों के प्रशासन को और स्वायतता दी जायेगी, भले ही आपकी आज़ादी पर अंकुश लगानी पड़े। आतंकवाद से पीड़ित हैं तो, पोटा फ़िर लाई जायेगी। आतंकवादी पकडे गए तो उन्हें कंधार ले जाकर उन पर मुक़दमा चला जाएगा।
चलते -चलते, किसान भाइयों आप आत्म हत्या करना छोड़ दीजिये, आपके सभी क़र्ज़ माफ़ कर दिए जायेंगे और आप सभी को चार प्रतिशत दर पर ऋण दी जायेगी । है न खुशी की बात, भले ही आपकी हालत जस की तस् बनी रहे।
लेकिन आप सभी को कांग्रेस की जय हो! जय हो! के बजाय भय हो ! भय हो! गाना होगा।

ढूँढता है दिल जिसे


ढूँढता है दिल जिसे ,
खोया रहता है जिसकी यादों में,
वो चाँद नज़र आया था अरसा पहले।
जब उसकी मुसकुराहटों को देख कर
लगा पहली बार जिन्दगी मुस्कुराई ।
उस निर्मल हृदय की हृदायांगिनी को देखकर लगा था,
जैसे मुकां मिल गया जन्नत का।
वो परियों की रानी दिखा कर एक ख्वाब,
गुम हो गई अनंत भावनाओं के सागर में।
कहाँ ढूंढूं उस मृगमरीचिका को,
जो देती थी प्रेरणा मुझे बुराइयों से लड़ने की।
तब से बेचैन पड़ा
एक खलिश दीदार को ,
काश वो मिले मुझे उस वक्त, जब रहे न खाक
बाकी मेरे निशां की।
तब एहसास होगी उसे भी मेरी गैर मौजूदगी की।
कोई बतायेगा उसे मेरी चाहत की दास्ताँ ,
फ़िर यकीं तो क्या,
हो जायेंगे होश गुम उसके
और होंगे वो हालात और तकदीर से मजबूर।

इस तरह एक सितारे का अंत हो जाएगा ।
एक अधूरी कहानी की तरह॥

मीडिया की भाषा

मीडिया की भाषा ऐसी होनी चाहिए की राष्ट्रपति से लेकर रेल मंत्री ( रिकशावाला) तक समझ सके। हमारे पत्रकार ऐसी भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं। मसलन कुत्ते, कमीने जल्दी ये पैकेज करके लाओ। सा...........ले कब से बोल रहा हूँ तुम्हे अब तक तुमने ये करा नहीं। आप और हम बाहर से जो देखते हैं हकीक़त कुछ और ही होती है। ज़रा-ज़रा सी बात पर ये एक दूसरे को गलियों से ही बात करते हैं। कहते हैं काम का प्रेशर बहुत ही ज़्यादा होता है इस फील्ड में। इसलिए ये सब चलता है लोग आपस में बुरा मानते भी नहीं। थोडी देर पहले जो किसी को गली दे रहा था आप देखेंगे की वही अब उसके साथ हंसगुल्ले के मज़े ले रहा है कैंटीन में। सिगरेट का कश ले रहा है। दुनिया को तमाम तरह के उपदेश देने वाले ख़ुद कितने पानी में होते हैं इसका अंदाजा तो उन्हें भी होता होगा । बात-बात पर भो.............री के और ब.........न के , माँ.............द जैसे अलंकारों का इस्तेमाल करने वाले , हमारी लोकतंत्र के चौथे खम्भे की हिफाज़त करने वाले ये वीर सपूत अड़ पड़ते है किसी भी न्यूज़ को लेकर। इनकी भाषा को सुनकर मुझे कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है, जिसे मैंने हाल ही में कहीं सुना था...........................
"वो जो लोग थे बदजुबान यहाँ,
बाँटते फ़िर रहे हैं ज्ञान यहाँ........."
मेरी समझ में ये बात नहीं आती, आख़िर बिना गाली -गलौज के काम नहीं चल सकता क्या? ये कोई ज़रूरी नहीं आप या हम किसी को गाली दे तभी काम ठीक से कर सकता है।
ये तो कुछ महज़ नमूने ही थे.........पूरी फ़िल्म तो अभी बाकी है मेरे दोस्त। इन्ही वजहों से आजकल एक ऐसा क्रेज़ बन पड़ा है की स्टुडेंट फ्रैंक बनने के लिए बेझिझक गलियों का इस्तेमाल करते हैं। हम और आप करते हैं। अगर आप नहीं करते हैं तो आप फत्तू हैं। ऐसा हम नहीं आपके ही वो दोस्त कहेंगे जो इस मामले में आपसे ज़्यादा माडर्न होंगे। एक फैशन बन गया है गाली देना। रेपुटेशन की बात हो गई है। जो जिसको जितना गाली देता है उसे उतना ही प्यार करता है। ये कैसी सोच है हमें तो भाई समझ में नहीं आता । कैसा वर्क कल्चर है समझ से पड़े है। फ़िर भी है तो है। तो चलिए हम भी एक न्यूज़ पैकेज बनाते हैं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ओये देख एक आधे घंटे की स्टोरी करनी है ज़ल्दी से स्टोरी एडिट वगैरह करके फाइनल कर दे टाइम नहीं है । थोडी देर बाद, क्या हुआ बे........तेरी समझ में बात नहीं आती क्या भोस...........................के। यहाँ क्या अपना ..............कराने बैठा है। आ जाते हैं सा...........ले.............कराने ,ह........मी ,,,बहा......के । अपने......................बा......का.....समझ रखा है क्या....????????????????

जय हो ऐसी भाषा की ??????