वो पल भी कुछ अजीब था..............


वो पल भी, क्या पल था
जब हर वक्त डूबा रहता था
तुम्हारी यादों में....
तुम्हारा वो पलकें झुकाना
उन आखों में हया के रंग...
याद आ रहा है वो दिन,
जब मिली थी तुम मुझे उस मोड़ पर
हुई थी मुलाक़ात तुमसे वो पल कुछ अजीब था,
मगर हसीं था............
दो नज़रो का मिलना,
वो तेरा शर्म से पलकें झुका लेना
आज भी सोचता हूँ, खुशनसीब हूं
जो बख़्शी है ख़ुदा ने मुझे दो आखें...
जिसने किया दीदार उस पल का
जो बन गई है अब मेरी जिंदगी......
सोचता हूं कि अब न सोचू कुछ भी,
बस तुम्हें सोच कर......................
गुजरता नहीं एक पल, न एक लम्हा,
डूबा रहता है हरदम, उन ख़्वाबों-ख़्यालो में
जिसमें दिखती है जीने की राह,
एक सुकून, एक एहसास....

1 comment:

  1. Wow nice poetry!!!!!keep up the good work....

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