तो लोकसभा चुनाव के पाँचों चरण कुल मिलाकर सही तरीके संपन्न हो ही गया। कहीं नक्सली हमला हुआ, कहीं दूसरी वजहों से भी हिंसा हुए। कुछ प्रदेश चुनाव के समय में हिंसा के पर्याय बन जाते हैं, वहाँ इस बार चौंकाने वाले परिणाम देखने को मिला। मतलब काफी बदलाव नज़र आया। जो कि निश्चित तौर पर बदलाव का सूचक है। मसलन बिहार इसका जीता जागता उदाहरण है, जहाँ संगीनें के साये में मतदान होते थे। आप बूथ पर वोट देने जाते और आपको पता चलता था कि आपका तो मत पर चुका है, ऐसे प्रदेश में अगर अब लोग बुलेट का जवाब बैलेट से दे रहे हैं तो मेरे हिसाब से यकीनन एक बदलाव की बयार बह चुकी है और सबसे बड़ी बात आम जनता चीज़ों को काफी हद तक समझने लगी है। सभी राजनीतिक दल अब चुनाव बाद की जोड़-तोड़ की राजनीति में जुट चुके हैं। कोई मिशन इंपॉसिबल में लगा है तो कोई भानुमति का कुनबा जुटाने में लगा है।
अब बिछ चुकी है बिसात राजनीति की। दाव पर लगा है पीएम का पद। एक तरफ कौरवों की भीड़ है तो दूसरी तरफ पांडवो का नीड़ है। धर्मनिरपेक्षता, सांप्रदायिकता, ग़ैर-भाजपा और ग़ैर-कांग्रेस का समागम है। कौन कहाँ जाएगा किसी को कुछ नहीं मालूम। क्योंकि इनके दरवाजे सभी के लिए खुले हैं। लेकिन दावेदार भी यही हैं। पहले काउंटिंग उसके बाद इनकमिंग और आउट-गोइंग एक्टिवेट हागा। आदर्शों की बात करने वाले अपनी बोली अरबो में लगाएंगे, किसी का रेल ट्रैक से डाइवर्ट होगा तो कोई किसानों की बदहाली पर आँसू बहाएगा। कहीं साइकिल पंक्चर तो कहीं आवास का डिमोलीशन होगा।
ख़ैर, इन्हें छोड़िए.......हम और आप इतना दिमाग क्यों लगा रहे हैं। ये तो काम अभी हमारे नेताओं को करना है तो उनके जिम्मे ही ये काम फिलहाल रहने दीजिए....हम अपना फैसला तो सोलह को ही सुनाएंगे..........तो तब तक आप भी देखते रहिए इस ग्रेट इंडियन पॉलिटिकल ड्रमा को।
bas ek din aur... asli rang tau ab dikhenge.... let wait!!
ReplyDeleteNice blog.
yahi to bat hai ki hum sirf wait karte hai
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