मेरी बात

बीमार रिश्तों को तोड़ देने में ही भलाई है. उन्हें जिंदगी भर ढोने से परेशानियों के अल्वा कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है. यह बात अगर जल्दी समझ में आ जाये तो बेहतर, नहीं तो तैयार हो जाइये एक गंभीर चुनौती का सामना करने के लिए. इस चुनौती में आपको अवसर भी मिल सकता है और जिंदगी का अंत भी. ये सब लिखने का मकसद कुछ और नहीं, बल्कि आजकल खुद की चुनौती है. मुझे मालूम है कुछ फैसले मैं ग़लत ले रहा हूँ. उसका अंजाम क्या होगा, पता भी है और नहीं भी. खैर, तो क्या ग़लत फैसले लेना ज़िंदगी का हिस्सा नहीं हैं? आज बात फ़ैसलों की नहीं और न ही उसके असर की. बस बात दिल की. कुछ दिनों से बहुत ही अजीब लग रहा है. क्यों लग रहा है पता नहीं? बस इतना कह सकता हूँ कि जिंदगी में कई चीज़ों की कमी महसूस होती है. इसकी वजह अतीत का माहौल और कुछ लोगों की ग़ैर जवाबदेही ज़िम्मेदार है. इन ग़ैर जवाबदेह लोगों के बीच कुछ ऐसे भी मिले जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पे काफी मदद किया. खास अहमियत अप्रत्यक्ष मददगारों की है. उन्हें पता भी नहीं की किस तरह एक  हतास, निरास और परेशान इन्सान की मदद की. पर जब आप इस तरह के अदृश्य मददगारों से काफी लम्बे अरसे या कभी भी नहीं मिल पते हैं हैं तो उनकी वो जादुई प्रेरणा बेअसर होने लगती है. तब ऐसे में आपको खुद से प्रेरणा लेने की दरकार होती वरना अंजाम का अंदाज़ा लगाना मुश्किल होता है. उसके नतीजों को सोच कर ही डर लगता है. बातें और भी कई सारी हैं, उन्हें खुल कर बात करने से हालत और भी बिगड़ जाने का अंदेशा होता है. इसलिए ऐसा नहीं कर आखिर रहा हूँ. बस हाँ, दिल की तसल्ली के लिए आप सभी से साझा कर रहा हूँ. वजह यह की मैं कृत्रिम दोस्तों और बनावटी अपनापन दिखाने वालों से कुछ बातें साझा करने में यकीन नहीं करता हूँ. बस परेशानी का आलम इतना है कि पिछले कुछ दिनों से बेहद खुश हूँ परीक्षा सर पर है एक दिसम्बर से और तैयारी कुछ भी नहीं. बाकी बात खुलासे के साथ फिर कभी.

3 comments:

  1. यह उतार चढाव की सोच जीवन का सच है.... परीक्षाओं के लिए शुभकामनाये .

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  2. खींचने से टूटते हैं तार, उनको टूटने दे।
    व्यक्त कर उद्गार मन के।

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