पिछले दिनों दिल्ली में ठंड काफी बढ़ गई थी। लगभग पांच या छह वर्षों बाद इतनी सर्दी पड़ी है। सर्दी और गणतंत्र दिवस का बड़ा गहरा नाता है। गणतंत्र दिवस के साथ मुझे याद आ रहे हैं, मेरे प्रिय व्यंग्य साहित्यकार परसाई जी। हरिशंकर परसाई। जितने याद परसाई जी आ रहे हैं, उतना ही उनकी रचना ठिठुरता गणतंत्र भी। वह दिल्ली में चार बार गणतंत्र दिवस का जलसा देख चुके हैं। लेकिन पांचवी बार का साहस नहीं जुटा पाए। पर, उनकी चिंता इस अवसर पर ही घिसी-पिटी बातें नहीं, जो देश के नाम संबोधन में किया जाता है। दरअसल, वह भी मौसम की मार से परेशान हैं। पता नहीं क्यों हर साल छब्बीस जनवरी को आसमान में बादल छा जाते हैं, बूंदा-बांदी होने लगती है और सूरज कहीं छुप जाता है। बकौल परसाई जी, जिस तरह दिल्ली की अपनी अर्थ नीति नहीं है, ठीक उसी तरह अपना मौसम भी नहीं है। अर्थनीति डॉलर, पौंड, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष या विदेशी सहायता से तय होता है, उसी तरह दिल्ली का मौसम कश्मीर, सिक्किम, राजस्थान आदि से तय करते हैं। लेकिन लगता है इस बार उन्हें फिर गणतंत्र दिवस का मौका मिले, क्योंकि इस बार बादल नहीं और सूरज खिल के निकल रहा है। शायद वैश्विक आर्थिक मंदी और मंहगाई आदि ने दिल्ली की अर्थनीति आदि को कुछ पल के लिए समान कर दिया है।
हरबार गणतंत्र दिवस पर मौसम खऱाब होने से परसाई जी थोड़े नाराज़ हो जाते हैं। इस बाबत वह कांग्रेसी से भिड़ पड़ते हैं। वह पूछते हैं क्या बात है कि हर छब्बीस जनवरी पर सूरज छिप जाता है। कांग्रेसी उन्हें जवाब देता है, मुझे तो लगता है कि इस बार पाकिस्तान कोई बड़ी साज़िश रच रहा है या फिर चीन कृत्रिम बारिश करा सकता है तो संभवतः इस बार वह भारत में सूरज को उगने ही नहीं देना चाहता है। मुमकिन है ये दोनों हमारे पड़ोसी किसी बड़ी साज़िश में लगे हैं और हमारी ख़ुफ़िया एजेंसी को भी इसकी भनक नहीं लगी। चूंकि वह कांग्रेसी गृह मंत्रालय में मंत्री थे सो कहा कि हमने सारा दोष राज्यों पर मढ़ दिया है कि प्रत्येक राज्य अपने क्षेत्रों में सूरज के न उगने का पता लगाएं। इसके लिए उच्च स्तरीय जांच बिठाएं हो सके तो जेपीसी की मदद भी ली जाए। इस बीच, बंगाल से ख़बर आई कि वहां सूरज ठीक से उगा। बंगाल के मुख्यमंत्री ने जांच में शामिल होने या किसी तरह की मदद से मना कर दिया और गृहमंत्री की बैठक में शामिल होने से भी इंकार कर दिया।
परसाई जी यहीं नहीं रूके। उन्हें गणतंत्र दिवस की झांकी बहुत पसंद थी। वह इन झांकियों में अद्भुत चीज़ खोज निकाले थे। उनके हिसाब से हर राज्य की झांकियां अपने राज्य का सही प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं। जैसे 2002 और 2003 की झांकियों में वह बड़े उत्साह से गुजरात की झांकियों को देखने पहुंचे थे कि उसमें दंगों को दिखाया जाएगा, लेकिन निराशा हाथ लगी। आंध्र में हरिजन को जलाता हुआ दिखाया जाएगा वह भी नदारद। इस साल उन्हें उम्मीद है कि राष्ट्रमंडल खेलों में घपले, टू जी स्पेक्ट्रम सहित उत्तर प्रदेश में अनाज घोटाला आदि को दिखाया जाएगा। लेकिन लगता है जिस तरह कांग्रेस इन घपलों को ढकने में लगी है, उससे तो इसबार भी उनकी उम्मीद अधूरी ही रहने वाली है। भारत में पिछले साल घोटालेबाजों और भ्रष्टाचारियों का बोलबाला रहा और परसाई के साथ आम जनता को भी उम्मीद है कि इस बार के छब्बीस जनवरी के परेड में उन्हें कुछ इसी तरह की झलकियां दिखाई जाएंगी। लेकिन, लगता है इस ठिठुरती ठंड में लोगों को यह सब देखने का मौक़ा न मिले। और लगता है परसाई जी भी अपने पहले के अनुभवों से सीख लेते हुए गणतंत्र दिवस नहीं देखने जाना चाहते। क्योंकि जो इस साल हुआ व तो झांकी में दिखाया जाएगा ही नहीं तो नकली भारत की तस्वीर क्या देखें। घर बैठे ही आईपीएल और बिग-ब़स की पुरानी झलकी देख के दिल बहलाएंगे।