मलेशिया की अदालत ने वर्ष 2009
में हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए फैसला दिया है कि देश में गैर-मुस्लिम ‘अल्लाह’ शब्द का
प्रयोग नहीं कर सकते हैं. वर्ष 2009 में मलेशिया की उच्च न्यायालय ने भगवान को
संबोधित करने के लिए अल्लाह शब्द के इस्तेमाल की इजाजत दी थी, लेकिन अब कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए यह फैसला दिया. तीन न्यायाधीशों की पीठ
ने सर्वसम्मति से हाईकोर्ट द्वारा 2009 में दिए गए उस फैसले को
पलट दिया, जिसने
मलय भाषा में छपने वाले अखबार 'द हेराल्ड' को अल्लाह शब्द के इस्तेमाल की अनुमति दी थी. इस फैसले के पीछे मुख्य
न्यायाधीश का तर्क था कि अल्लाह शब्द का प्रयोग ईसाई समुदाय की आस्था का अंग नहीं
है. इस शब्द के इस्तेमाल से समुदाय में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होगी. मामले की
सुनवाई के दौरान सरकार ने दलील दी थी कि अल्लाह शब्द मुस्लिमों के लिए बहुत
विशिष्ट है.
गौरतलब है कि 2008 में तत्कालीन गृहमंत्री ने अखबार को इस शब्द के इस्तेमाल की इजाजत देने से इन्कार कर दिया था. इसके बाद अखबार ने इसके खिलाफ अदालत में अपील की. 2009 में अदालत ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया. इस फैसले के बाद चर्चों और मस्जिदों को निशाना बनाया गया था. गौरतलब है कि मलेशिया की 2.8 करोड़ की आबादी में दो तिहाई मुसलमान हैं, जबकि नौ प्रतिशत आबादी ईसाइयों की है. ऐसे में अदालत के फैसले से चार साल पुराने विवाद को हवा मिलेगी. विवाद अल्लाह से जुड़ा है. वहां मलय जाति समूह के लोग कैथोलिक ईसाइयों द्वारा अल्लाह शब्द के इस्तेमाल को लेकर विरोध करते रहे हैं. इन लोगों को लगता है कि अल्लाह शब्द का इस्तेमाल सिर्फ़ वही कर सकते हैं, न कि कैथोलिक ईसाई. अधिकारों के इस लड़ाई की सुनवाई कोर्ट में भी हुई थी. कोर्ट ने भी ईसाइयों को अल्लाह शब्द के इस्तेमाल की इजाज़त दे दी थी. हालांकि सरकार ने कोर्ट के फ़ैसले को ख़ारिज़ कर दिया. सरकार ने सर्वोच्च कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती देने के इरादे से ऐसा नहीं किया है. बल्कि सारा विवाद भावनात्मक तौर पर इस क़दर उलझ चुका है कि इसे राजनीतिक तौर पर सुलझाना मुश्किल हो रहा है. सारा विवाद उस व़क्त सामने आया था, जब एक चर्च ने गॉड (ईश्वर) शब्द का अनुवाद अल्लाह शब्द के तौर पर किया. इस विवाद की वजह से हिंसा भी हुई. कुछ दिन पहले तीन चर्चों पर हमला किया गया. साठ के दशक मलयों और चीनियों के बीच हुई हिंसक घटनाओं को छोड़ दें, तो कुल मिलाकर वहां हमेशा शांति बनी रही है. लेकिन, एकबार फिर मलय-ईसाई एवं मलय-हिंदुओं के बीच संबंध बिगड़ने लगे हैं. इसी से तनाव पैदा हुआ है. जब ईसाइयों ने अल्लाह शब्द का इस्तेमाल किया तो मलयों ने इसकी मुख़ालफ़त की. उनके मुताबिक़ इससे भ्रम’ की स्थिति पैदा होगी. वहीं ईसाई मिशनरी के मुताबिक वे अल्लाह शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं. यह उनका अपना तर्क हो सकता है. पर दिक्कत यह है कि कुछ राजनेता इन विवादों को अपने फ़ायदे के हिसाब से भुनाना चाहते हैं.
दरअसल, जो लोग ईसाइयों द्वारा अल्लाह शब्द के इस्तेमाल का विरोध कर रहे हैं, उनके पास विरोध की वाजिब वजह नही है. अल्लाह एक हैं और उसने हम सभी को बनाया है. इसलिए इसके इस्तेमाल पर किसी एक मजहब का हक़ नहीं हो सकता है. यदि ग़ैर मुसलमान भी गॉड या ईश्वर के लिए अल्लाह शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो मुसलमानों को इसका स्वागत करना चाहिए. उन्हें यह समझना चाहिए कि इसके ज़रिए लोग इस्लाम को समझने की कोशिश कर रहे हैं, न कि इस्लाम पर अपना कब्जा कर रहे हैं. इसलिए होना तो यह चाहिए कि मलयों को उदारवादी बन कर इस्लाम के उदार चेहरे से लोगों को वाक़िफ करांए. आज जबकि हर तरफ आतंकवाद की बात हो रही है और लोग आतंकवाद का मतलब इस्लामिक आतंकवाद से ही लगा रहे हैं, जो कि कतई सही नहीं है. ऐसे में इस तरह के नज़ीर से सकारात्मक संदेश लोगों तक पहुंच सकेगा.
गौरतलब है कि 2008 में तत्कालीन गृहमंत्री ने अखबार को इस शब्द के इस्तेमाल की इजाजत देने से इन्कार कर दिया था. इसके बाद अखबार ने इसके खिलाफ अदालत में अपील की. 2009 में अदालत ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया. इस फैसले के बाद चर्चों और मस्जिदों को निशाना बनाया गया था. गौरतलब है कि मलेशिया की 2.8 करोड़ की आबादी में दो तिहाई मुसलमान हैं, जबकि नौ प्रतिशत आबादी ईसाइयों की है. ऐसे में अदालत के फैसले से चार साल पुराने विवाद को हवा मिलेगी. विवाद अल्लाह से जुड़ा है. वहां मलय जाति समूह के लोग कैथोलिक ईसाइयों द्वारा अल्लाह शब्द के इस्तेमाल को लेकर विरोध करते रहे हैं. इन लोगों को लगता है कि अल्लाह शब्द का इस्तेमाल सिर्फ़ वही कर सकते हैं, न कि कैथोलिक ईसाई. अधिकारों के इस लड़ाई की सुनवाई कोर्ट में भी हुई थी. कोर्ट ने भी ईसाइयों को अल्लाह शब्द के इस्तेमाल की इजाज़त दे दी थी. हालांकि सरकार ने कोर्ट के फ़ैसले को ख़ारिज़ कर दिया. सरकार ने सर्वोच्च कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती देने के इरादे से ऐसा नहीं किया है. बल्कि सारा विवाद भावनात्मक तौर पर इस क़दर उलझ चुका है कि इसे राजनीतिक तौर पर सुलझाना मुश्किल हो रहा है. सारा विवाद उस व़क्त सामने आया था, जब एक चर्च ने गॉड (ईश्वर) शब्द का अनुवाद अल्लाह शब्द के तौर पर किया. इस विवाद की वजह से हिंसा भी हुई. कुछ दिन पहले तीन चर्चों पर हमला किया गया. साठ के दशक मलयों और चीनियों के बीच हुई हिंसक घटनाओं को छोड़ दें, तो कुल मिलाकर वहां हमेशा शांति बनी रही है. लेकिन, एकबार फिर मलय-ईसाई एवं मलय-हिंदुओं के बीच संबंध बिगड़ने लगे हैं. इसी से तनाव पैदा हुआ है. जब ईसाइयों ने अल्लाह शब्द का इस्तेमाल किया तो मलयों ने इसकी मुख़ालफ़त की. उनके मुताबिक़ इससे भ्रम’ की स्थिति पैदा होगी. वहीं ईसाई मिशनरी के मुताबिक वे अल्लाह शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं. यह उनका अपना तर्क हो सकता है. पर दिक्कत यह है कि कुछ राजनेता इन विवादों को अपने फ़ायदे के हिसाब से भुनाना चाहते हैं.
दरअसल, जो लोग ईसाइयों द्वारा अल्लाह शब्द के इस्तेमाल का विरोध कर रहे हैं, उनके पास विरोध की वाजिब वजह नही है. अल्लाह एक हैं और उसने हम सभी को बनाया है. इसलिए इसके इस्तेमाल पर किसी एक मजहब का हक़ नहीं हो सकता है. यदि ग़ैर मुसलमान भी गॉड या ईश्वर के लिए अल्लाह शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो मुसलमानों को इसका स्वागत करना चाहिए. उन्हें यह समझना चाहिए कि इसके ज़रिए लोग इस्लाम को समझने की कोशिश कर रहे हैं, न कि इस्लाम पर अपना कब्जा कर रहे हैं. इसलिए होना तो यह चाहिए कि मलयों को उदारवादी बन कर इस्लाम के उदार चेहरे से लोगों को वाक़िफ करांए. आज जबकि हर तरफ आतंकवाद की बात हो रही है और लोग आतंकवाद का मतलब इस्लामिक आतंकवाद से ही लगा रहे हैं, जो कि कतई सही नहीं है. ऐसे में इस तरह के नज़ीर से सकारात्मक संदेश लोगों तक पहुंच सकेगा.
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