थ्री इडियट्स

३ इडियट्स दिल को छू जाने वाली लगी। जब भी इस फिल्म के कैरेक्टर रोते हैं तो हमें रोना आता है, उनके हंसने पर हंसी। काफी समय बाद एक ऐसी फिल्म बनी है, जो सही मायनों में फिल्म की कसौटी पर खरा उतरती है, जिसे बारबार देखने को जी चाहता है। देखने को जी इसलिए चाहता है कि इस फिल्म की कहानी में एक पैशन है, ज़िंदगी जीने का नज़रिया है। आमिर ख़ान की फिल्मों से हमें हमेशा उम्मीद रहती है कि उनकी फिल्म दर्शकों और तमाम लोगों को एक लीक से हटकर फिल्म देगी। लेकिन इस पर आमिर उससे भी कहीं आगे निकल गए। उम्मीद से दोगुना मिला इस बार। यह एक ऐसी फिल्म जिसने आज के पच्चानवे फ़ीसदी युवाओं के दिल की व्यथा बता दी। आज हम में अधिकतर वही करते हैं जो हमारा दिल नहीं करता है। कभी मम्मी-पापा की उम्मीदों का बोझ उठाते हैं, तो कभी परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारियों को निभाने की मजबूरी। सबसे बड़ी बात की पड़ोस वाले शर्मा जी क्या कहेंगे। यदि हम में कोई साहस का फ़ैसला लेता भी है तो सफल हो जाने पर बधाई और कुछ नहीं हो पाया तो ज़िंदगी भर ताने सुनने को मिलते हैं। यही है ज़िंदगी की सही तस्वीर। हमारे मां बाप, दादा-दादी जो सदियों से करते आ रहे हैं हम भी वही कर रहे हैं। ज्ञान तो हमें मिल रहा है पर हममें कोई
वाकई काबिल नहीं बन पा रहा है। फिल्म को देखते समय कई बार हम मन मसोस कर रह जाते हैं। हम में हरकोई यह चाहता है कि दुनिया उसकी मुट्ठी में रहे, वह ज़िंदगी की तमाम ख़ुशियां हासिल करे, उसका जो जी चाहे वहीं करे...लेकिन वह कर नहीं पाता है...इस बात को बड़े ही निराले अंदाज़ में आमिर ही कर सकते थे, कि तकरीबन तीन घंटे की लंबी फिल्म बनने के बावजूद यह फिल्म दर्शकों को बोर नहीं करती है। नहीं तो आज कई ऐसे फिल्म हैं जो बनती है डेढ़ या दो घंटे की दर्शक एक घंटे में ही सिनेमा हॉल से पैसे गंवा कर वापस भाग आते हैं। हालांकि इस फिल्म में भी एक दो जगह थोड़ा बोझिल एहसास होता है, जिसे आमिर की काबिलियत के मने पकड़ पाना बेहद ही मुश्किल है। मोना की डिलिवरी के वक़्त का समय और आख़िर में जब फरहान और राजू साइलेंसर के साथ आमिर से मिलने लद्दाख पहुंचते हैं, करीना को भगाकर वे ले जाते हैं, वहां तक तो ठीक है लेकिन आमिर को वांगरू के रूप में आना एक्सपेक्टेड था और थोड़ा अति कर गया। लेकिन इसे भी आप इनजॉय कर सकते हैं। यही आमिर की ख़ूबी है। फिर भी आख़िर में यही कहूंगा यह फिल्म आपकी ज़िंदगी का ऑल इज़ वेल है।

4 comments:

  1. अभी तक देख नही पाया पर जल्द ही देखूँगा...बढ़िया जानकारी..नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ..

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  2. आपको व आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  3. darasal ....
    is film ke bad maine akhein band ki....mjhe ek drisya dikhayee diya...iss puri film industry ke sabhi hero aamir ke samne apni patloon utar kar jhuke hain..aur keh rahe hain...'jahapanah tussi gr8 ho, tohfa kabul karo...'

    but jokes apart, this film gives us some sunshine, some rain and another chance to relive our life...specially life in those erie summers and cool winters of our stundenthood ...

    and chandan i guess the ending is just fine...kyonki hamari zindagi ki tarah hamari filmon me bhi end tak sabkuch 'all izz well' hi ho jata hai...
    hats off.........

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  4. aur ek aur baat.....
    kabhi bhi samiksha likhte samay film ki story ka climax mat bataya karo...

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