21 अक्टूबर को गुरुवार था. गुरुवार को मेरा साप्ताहिक अवकाश होता है. इसलिए मैं अपने लौ क्लास में देर तक ठहर सका. नहीं तो बाकी दिनों में क्लास ख़त्म होने के साथ ही ऑफिस के लिए फटाफट निकल जाता था. इस कारण क्लास में मेरी किसी से खास घनिष्ठता नहीं हो पाई. हालाँकि, बातचीत और संबंध सबसे बढ़िया हैं. तो 21 अक्टूबर को हुआ कुछ यूं कि डीयू के नॉर्थ कैम्पस के बुद्धा गार्डन में टहल रहा था. मेरा एक दोस्त ज़बरन मुझे वहां ले गया, उसे योगा करना था. मेरे पास भी वक़्त था सो चला गया. वहां एक अजीब इंसान मुझे नजर आया. वह खुद से बातें कर रहा था. और बहुत गंभीर तरह की बातें. दो तीन मसलों पर उन्होंने खुद से बातें की. एक यह था, 'लोगों को मैं कह रहा हूँ राहुल (गाँधी) को प्रधानमंत्री बना दो, पर किसी को अक्ल ही नहीं है. उसको कहाँ-कहाँ घुमा रहे हैं लोग, ऊर्जा को बर्बाद करवा रहे हैं उसकी. उसने शादी नहीं की, ताकि देश की सेवा कर सके. वह तो बोलेगा ही कि मुझे प्रधानमंत्री नहीं बनना, लेकिन इनको (बाकी कांग्रेसी) तो समझना चाहिए. देश में राहुल का दर्द समझने वाला कोई नहीं है.' उन अधेड़ उम्र के जनाब की ये बातें सुनकर मुझे हंसी भी आ रही थी, तो कभी गंभीर भी हो जाता था,कहीं उन्हें यह आभास न हो जाये कि मै उन्हें गौर कर रहा हूँ. हालाँकि, इससे उनको कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था. मुझे मेरे मित्र ने बताया था कि वह आपको रोज़ शाम ऐसी बातें करते मिल जायेंगे और उनको इससे फर्क नहीं पड़ता कि कोई उन्हें गौर कर रहा है. दूसरी बात मेरी अपनी कि राहुल जब राजनीति में आये तो मुझे ज़रा भी पसंद नहीं आये. वजह शायद उनका नेहरू-गाँधी खानदान से होना ही था. बाद में, उनकी कुछ सक्रिय राजनीतिक सेवा भी ढोंग लगी. मसलन, कलावती के घर जाना, दलितों के यहाँ खाना, सर पर मिट्टी ढोना. बाद में, लगा कि नहीं कुछ तो बात है. तभी तो राहुल का जादू सर पे बोल रहा है. वह कुछ भी बोलते हैं तो लोग सुनते हैं, खासकर युवा. हालाँकि, उनके विरोधी उनके भाषण देने के अंदाज़ पर सवाल उठाते हैं. हाल में, शरद यादव ने उनको गंगा में फेंकने की बात कही, क्योंकि वह नेहरू खानदान के हैं. शरद यादव का कोई बेटा या बेटी है या नहीं मुझे नहीं पता और है तो वो राजनीति में आना चाहते हैं या नहीं यह भी नहीं पता. अगर आते हैं तो उनका क्या करना चाहिए?
अब तीसरी बात, राहुल लगता है थोड़े थक गए हैं या फिर उनके बुड्ढे सलाहकार सोच से भी बुड्ढा बनाते जा रहे हैं. नज़ीर है, सुना कि बिहार में चुनावी प्रचार के दौरान मिथिलांचल में उन्होंने कहा, अगर देश का विकास करना है तो पहले गुजरात को बदलना होगा. इस पर लोग भड़क गए. वजह यह कि वह तो पहले विकसित है. बाद में राहुल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए खा, मेरी जुबां फिसल गयी. दरअसल मै कहना चाहता था कि बिहार को बदलना होगा. फिर भी लोग नहीं माने. राहुल को जाना पड़ा. इसके अलावा, राहुल भी आजकल आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति करने लगे हैं. हाल में उन्होंने कहा, बिहार के नेताओं ने प्रदेश को गलत रास्ते पर डाल दिया है। यही कारण है कि बिहारी तो चमक रहा है, लेकिन बिहार नहीं। तो इतने सालों से बिहार या अन्य जगहों पर जो दशकों तक उनकी पार्टी की सरकार थी उसने क्या किया. इस पर बात करने की ज़रुरत नहीं. मतलब ये कि राहुल घिसीपिटी बातें न कहें, इस युवा देश को उनसे अलग उम्मीद है.