विधायक की हत्या और नीतीश से कुछ सवाल

बिहार में कल बेहद ही दुखद घटना घटी। आपमें ज़्यादातर को पता होगा पूर्णिया के भाजपा विधायक को एक महिला ने चाकू से मार डाला। महिला शिक्षा के पेशे से थी और विधायक साहब को भाजपा का युवा और प्रतिभाशाली राजनेता कहा जा रहा था। कम से भाजपा के नेता उनकी मौत के बाद अब तो ऐसा ही कह रहे हैं।  विधायक जी हत्या के बाद नीतीश सरकार को अपने विधायकों की सुरक्षा की चिंता सताने लगी है। जनता की सुरक्षा पर उनका ध्यान नहीं गया। उनका ध्यान उस महिला के आरोप पर नहीं गया। जनता दरबार नीतीश भी लगाते हैं। मुमकिन है कइयों की समस्या उससे सुलझी हो, लेकिन अधिकांश की नहीं ही सुलझी होगी। इसका प्रमाण फिर कभी। तो उस महिला ने जो संगीन आरोप लगाए उस पर नीतीश बाबू ने इसलिए कान नहीं दिया, क्योंकि शायद बलात्कार के आरोप का मामला हत्या की  तुलना में कमतर ठहरता है। मुमकिन हो ऐसा हो। लेकिन, क्या यह सोचना कम तक़लीफ़देह है कि वह महिला तीन साल से लगातार बलात्कार का दंश झेल रही थी। सिर्फ़, विधायक जी ने मुंह काला नहीं किया, उनके चमचों ने भी उस स्कूल शिक्षिका की ज़िदगी को जहन्नुम में तब्दील कर दिया। जैसा कि उसने आरोप लगाया है। मेरे कई साथी कहते हैं, यह मुमकिन है विरोधियों की साज़िश हो। हां, हो सकता है हालिया चुनाव में हार का ग़म न पचा पाए हों, तो बदला लेने के लिए ऐसा मुमकिन है। भारतीय राजनीति की यह एक कड़वी सच्चाई है। यहां विरोधी रंजिश में कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि यह सच हो। जांच की बात पहले सामने आती। नीतीश जी ने भी यह बात कही। पुलिस अधिकारियों ने भी जांच की बात कही। सबसे दुखद था नीतीश बाबू का बयान। उन्हें अपने विधायकों की सुरक्षा ज्यादा परेशान कर  रही थी, जनता की नहीं। जैसे, विधायक किसी दूसरे ग्रह से टपके हों और उन्हें इंसानों से ख़तरा हो। मेरा कहना है, विधायक जी को जनता यानी इंसानों ने ही चुना था। तो हज़ार या लाखों लोगों का प्रतिनिधि होने से उन्हें अधिक सुरक्षा क्यों? उन पर तो और ज़िम्मेदारी बढ़ गई। इसका मतलब विधायकजी को अपने लोगों पर ही, जिन्होंने उन्हें चुना, उन पर ही भरोसा नहीं है। हां, अगर इस हादसे के संदर्भ में देखें तो वह महफूज नहीं हैं, क्योंकि उन पर संगीन आरोप लगे थे। एक महिला की आबरू को तार-तार करने का। उस महिला ने शिकायत भी दर्ज कराए। लेकिन हुआ कुछ नहीं। तीन साल से शोषण होता रहा। आख़िरकार, उसने एक हिंसक और अपराध वाला रास्ता चुना। लेकिन, इसके लिए वह आज़ाद है, जहां लोगों को न्याय न मिले और नेता-विधायक झूठ और बलात्कारी का चोंगा पहनकर इज्ज़तदार की ज़िंदगी जीते रहें तो कम से कम समझता हूं ऐसी घटनाएं रूकेंगी नहीं। नीतीश बाबू कितनी भी कोशिश कर लें। उन्हें चाहिए कि महिला विरोधी रुख त्यागकर, पहले मामले का कच्चा-चिट्ठा जानें। जांच ईमानदारी से कराएं और यदि जांच में विधायकजी को दोषी पाया जाता है तो उन्हें यूं भी सज़ा नहीं दी जा सकती। कम से कम उस महिला को सज़ा न होने पाए इसका पुख्ता इंतज़ाम करें। वैसे भी हमारा क़ानून अंधा है, जब तक उसकी बारी आएगी शायद वह मर भी चुकी हो। या फिर क़ानून उसे उस अपराध की सज़ा दे जो उसने तीन साल तक घुट-घुटकर जीने के बाद किए।

1 comment:

  1. दुर्भाग्यपूर्ण है यह प्रकरण।

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