देशद्रोही बाहर और बिनायक सेन जेल में

'राज्य' यानी स्टेट सबसे बड़ा गुंडा और अपराधी है। यह सिर्फ मेरा ही नहीं आम लोगों का भी मानना है। ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं जो सरकार को सबसे बड़ा अपराधी मानते हैं। जब बात बिनायक सेन की आती है तो यही ख्याल मेरे जेहन में आता है। बिनायक सेन को जेल और जनता का ख़ून चूसकर मलाई खाने वाले नेताओं को ऐय्याशी की तमाम सुविधाएं। बिनायक की घटना से दिल कांप उठता है। एक पल को तो लगता है कि हम अब भी पाषाण युग में जी रहे हैं, जहां जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। बिनायक सेन पर मामला माओवादियों से साठगांठ का है। यह सिर्फ सरकार ही मानती है। देश की जो सिविल सोसायटी है वह बिनायक के साथ है। फिर भी बिनायक पर शिकंजा कसा हुआ है। जब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज तक कहें कि बिनायक सेन को सजा दी गई है वह न्याय की हद है। मतलब एकबार फिर वही बात साबित होती है। सरकार के सामने सब बेबस। निरंकुश सरकार की तानाशाही। अब वक्त आ गया है कि कानून की आड़ में जो सरकार जो काली करतूत करती है उसका पोल खोल किया जाए। नहीं तो इसी तरह जनता का सारा धन स्विस बैंक पहुंचता रहेगा और हमारे ग़रीब भाई भूख और महंगाई की मौत मरते रहेंगे। महंगाई जब ख़ुद सरकार के नियंत्रण से बाहर हो गई है । उस पर उसका कुछ वश नहीं चल रहा है तो प्रधानमंत्री तक अनाप शनाप बयान देते घूम रहे हैं। मनमोहन सिंह ने हाल में मंहगाई की अजीब वजह बताई है। उन्होंने कहा है कि भारत के ग़रीब पहले की अपेक्षा अधिक खाने लगे हैं। नतीजतन ज़रूरी चीज़ों की क़ीमतों में इजाफ़ा हुआ है। इस बचकाने बयान की उम्मीद कम से कम उस शख्स से तो नहीं ही की जा रही थी, जिसने नई आर्थिक नीति -नव उदारवाद को भारत में जन्म दिया। एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री यदि ऐसी बातें करें तो समझ लेना चाहिए मानसिक संतुलन कुछ ठीक नहीं है। सही मायनों में इस तरह का बयान भेदभाव और देश विरोधी बयान है। देशद्रोही वो हैं, जो एक राज्य से दूसरे राज्यों में आए लोगों को समस्या की जड़ बताते हैं। कहीं अपराध होता है तो गृहमंत्री से लेकर वहां के मुख्यमंत्री तक मुंह ले के घूमते रहते हैं। अपनी नाकामी ठीकरा अप्रवासी लोगों पर पर ठहराते हैं। तो क्या यह हिंदुस्तान एक नहीं है। देश के अट्ठाइस राज्य और सात केंद्र शासित प्रदेश उस राज्य के लोगों के लिए ही हैं। ऐसे में कोई ऐसा कहे तो कहे लेकिन हमारा संविधान ऐसी बात कभी नहीं कहता। और जो संविधान के ख़िलाफ़ जाकर इस तरह का बयान देता है, सही मायनों में वह देशद्रोही है। लेकिन इन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं होती। क्यों? तो भई ये सभी बयान नेता लोग देते हैं। और नेता कुछ भी बोलें करें...वो तो खुद को कानून से ऊपर की चीज़ मानते हैं। लेकिन उनके ख़िलाफ कोई कुछ भी कहे या फिर उनको जिससे भी डर लगता है उसे कानून का ककहरा पढ़ा दिया जाता है। जैसा कि बिनायक सेन के साथ हुआ। ग़रीब आदिवासियों के हितैषी को माओवादी बताना कितना हास्यास्पद लगता है। यह तो एक छोटा सा नमूना है। मसला चाहे सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर का हो या बिनायक को जेल में बंद करने का सारे मामले सरकार के खिलाफ है। अलग-अलग पार्टियां पावर के लिए अलग-अलग बात कहेंगी। कभी हमारे साथ तो कभी हमारे खिलाफ। उनका सीधा वास्ता वोट से होता है। अब वक्त आ गया है कि सभी एक हो और क्रांति की मशाल थामनी होगी। नहीं तो आज बिनायक, कल आपकी और परसों मेरी बारी होगी। एक-एक कर सभी इसी तरह मारे जाएंगे। इंकलाब ज़िंदाबाद........

6 comments:

  1. और इसका निर्माण हमारे द्वारा ही होता है।

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  2. ना जाने कब जागेंगें हम ......

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  3. वैसे जागने लगे है हम तभी तो लिखा जा रहा है और पढा जा रहा है।

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  4. आप ने सही कहा। राज्य दमन का औजार है, सत्ताधारी वर्ग के लिए। जनता कुछ कुछ समझने लगी है।

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  5. @deepak ji aapki baton se main sahmat hoon lekin aise logon kee tadad bahut hi kam hai...hamen apna dayara badhane kee sakht zaroorat hai...nahin chhote samooh ko dabana sarkar ke liye aur aasaan hai...

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