26 जुलाई, 1953 को ही क्यूबाई क्रांति की शुरुआत हुई थी. फिदेल कास्त्रो की
अगुवाई में शुरू हुई यह एक सशस्त्र-क्रांति थी, जो तानाशाह शासक
फुल्जेंसियो बतिस्ता के शासन के खिलाफ थी. अपने भाई राउल कास्त्रो और
मारियो चांस सहित सर्मथकों के साथ फिदेल ने एक भूमिगत संगठन का गठन किया.
इस क्रांति की शुरुआत कास्त्रो द्वारा मोनकाडा बैरक पर हमले से हुई, जिसमें
कई की मौत हो गयी. हालांकि, तख्तापलट की कोशिश में लगे कास्त्रो और उनके
भाई पक.डे गये. 1953 में कास्त्रो पर मुकदमा चला और उन्हें 15 साल की सजा
हुई. लेकिन, 1955 में व्यापक राजनीतिक दबाव के कारण बातिस्ता को सभी
राजनीतिक बंदियों को छोड़ना पड़ा. इसके बाद कास्त्रो बंधु निर्वास में
मेक्सिको चले गये, जहां उन्होंने बतिस्ता की सत्ता का तख्ता पलट करने की
योजना बनायी. जून, 1955 में फिदेल कास्त्रो की मुलाकात अज्रेंटीना के
क्रांतिकारी चे ग्वेरा से हुई. 26 जुलाई को शुरू हुई क्रांति का अंत
बतिस्ता के तख्तापलट से हुई. एक जनवरी, 1959 को फिदेल कास्त्रो ने क्यूबा
में नयी सरकार बनायी. जनवरी 1959 में जब फिदेल कास्त्रो क्यूबा की राजधानी हवाना पहुंचे, तो उस वक्त क्यूबा ही नहीं पूरे लैटिन अमेरिकी में खुशी की लहर थी. एक अलोकप्रिय तानाशाही शासन को उखाड़ फेंका जा चुका था और अब सत्ता क्यूबाई आबादी समर्थित युवा क्रांतिकारियों के हाथों में थी. उस वक्त कास्त्रो का मुख्य एजेंडा भूमि सुधार और देश की अर्थव्यवस्था पर अच्छी खासी पकड़ था. कुल मिलाकर पूरे देश में सुधारवादी नज़रिया झलक रहा था. हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं थी. पहले ही दिन इस सरकार को अमेरिकी राजनीति और शहरी एलीट तबके से खतरा था. इन सबके पीछे उनका अपना आर्थिक हित छिपा था. 1959 की क्रांति की विचारधार पूरी तरह से स्पष्ट नहीं थी. वह पूरी तरह फिडेल कास्त्रो के रंगों में रंगी थी. उसके बाद निकारगुआ में भी सैंडिनिज्मो और शावेज का वेनेजुएला बोलिवारियाई क्रांति का प्रतीक बना. लेकिन, अपने पहले ही दिन से कास्त्रो की नीतियों ने अमेरिकी हितों पर चोट पहुंचाना शुरू कर दिया था. तेल से लेकर गन्ना, दूर संचार तक सभी क्षेत्र में. अमेरिकी ने कास्त्रो को कम्युनिस्ट के तौर पर पेश किया जिसने अपनी क्रांति और क्यूबा की जनता को धोखा दिया. अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनआवर के मुताबिक, क्यूबा ने किसी भी लैटिन अमेरिकी देशों के हितों का प्रतिनिधित्व नहीं किया. वह सिर्फ सोवियत संघ की हाथों का कठपुतली बन गया. 1961 तक सिर्फ मेक्सिको और कनाडा ही ऐसे देश बने, जिसने अमेरिकी दबाव का विरोध किया और साथ में क्यूबा के साथ राजनीतिक संबंध बनाये हुए था. सोवियत संघ से करीबी संबंध विकसित करने से पहले क्यूबा राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर तमाम सुविधाओं के लिए इन पर निर्भर था. इसके बाद अमेरिकी को नाराज़ करने की क़ीमत भी क्यूबा को चुकानी पड़ी. अप्रैल 1961 में बे ऑफ पिग्स का हमला किसे नहीं याद है. अमेरिका ने कास्त्रो की हत्या के लिए पूरी रणनीति बना ली थी. उसके बाद अक्तूबर 1962 का मिसाइल संकट सामने आया. 1965 में उसने सोवियत संघ की तरह का सांस्थानिक ढांचा देश में विकसित किया. एक ऐसी पार्टी, जिसमें महासचिव जेनरल कमेटी आदि सभी थे. लेकिन इसमें भी महत्वपूर्ण पद कास्त्रो के करीबियों और 26 जुलाई के आंदोलन में शामिल लोगों के पास ही था. सीमित संसाधनों और बढ़ते अमेरिकी दबावों के बावजूद क्यूबा ने गन्ना निर्यात के लिए सोविय संघ और पूर्वी यूरोपीय देशों के साथ संपर्क बढ़ाया. शिक्षा और स्वास्थ क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता दी गयी. इसके अलावा अमेरिकी खतरे का सामना करने के लिए क्यूबा की सेना आधुनिक हथियारों से लैस हो चुकी थी. जब फिदेल कास्त्रो ने दक्षिणी अफ्रीकी राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लिया, तो सभी ने क्यूबा की क्रांति के बाद उसकी सफलता को व्यापक संदर्भ में देखना शुरू कर दिया. वहां शिक्षा और स्वास्थ्य से लेकर तमाम बुनियादों क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता से सभी प्रभावित थे. इसके बाद अंगोला में क्यूबा के सैन्य हस्तक्षेप से अन्य देश अनभिज्ञ थे. यह बहुत बड़ी विडंबना थी कि क्यूबा लैटिन अमेरिका में गुरिल्ला जंग से क्रांति लाने में असफल रहा, जबकि ख़ुद गुरिल्ला जंग से उसकी क्रांति सफल हुई थी. 1980 में जब रोनाल्ड रीगन अमेरिकी राष्ट्रपति बने तो उन्होंने साम्यवाद के खात्मे की घोषणा की. इसके लिए उसने हर तरकीब अपनायी. मध्य अमेरिका और कैरेबियाई देशों में सैन्य हस्तक्षेप तक किया. सोवियत संघ ने शुरू में अमेरिका को चुनौती देनी चाही, लेकिन सोवियत संघ के सहयोगी देश आर्थिक रूप से दिवालिया हो रहे थे. यहां तक कि उसकी भी हालत कुछ सही नहीं थी. 1989 से 1991 तक सोवियत संघ से जुड़े तमाम देशों की हालत खस्ता हो चुकी थी. यहां तक कि सोवियत संघ का भी विघटन हो गया. 1990 के शुरुआत में क्यूबा की आयात क्षमता, निवेश, निर्यात से मुनाफा और लोगों का जीवन स्तर बुरी तरह प्रभावित हो गया. बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ गयी. इसके बावजूद क्यूबा ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अपना दबदबा बनाये रखा. हालांकि, सरकार की आमदनी बहुत कम हो गयी थी. आर्थिक तौर पर खुद को बचाए रखने के लिए ऐसे में क्यूबा ने अपनी नीतियों में व्यापक बदलाव किये. पर्यटन से लेकर माइनिंग तक के क्षेत्र में विदेशी निवेश को मंजूरी दी. इसका असर यह हुआ कि 2000 तक क्यूबा की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट चुकी थी. 2000 का साल लैटिन अमेरिका के लिए भी काफी अहम रहा. ह्यूगो शावेज वेनेजुएला में सत्ता में थे. उसके बाद एक दौर आया जब फिदेल कास्त्रो ने खुद सत्ता की कमान अपने भाई राउल कास्त्रो को सौंप दी. पहले कास्त्रो की अगुवाई में अब राउल कास्त्रो की अगुवाई में क्यूबा तरक्की के रास्ते पर है. एक 26 जुलाई का दिन वह था, जब क्यूबा की क्रांति की शुरुआत हुई थी और आज फिर 26 जुलाई है. क्यूबा एक स्वतंत्र और आर्थिक, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई विकसित देशों से अव्वल है.
जय हो महाराज क्यूबा याद रहा ... कारगिल भूल गए ??
ReplyDeleteकारगिल युद्ध के शहीदों को याद करते हुये लगाई है आज की ब्लॉग बुलेटिन ... जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी – देखिये - कारगिल विजय दिवस 2012 - बस इतना याद रहे ... एक साथी और भी था ... ब्लॉग बुलेटिन – सादर धन्यवाद
Deleteबंधु याद तो करगिल भी रहा. लेकिन उसके बीच क्यूबा को तो दिखिए. इसे किसी ने नहीं याद किया. मुझे हर जगह करगिल नज़र तो आया क्यूबा कहीं नहीं. मैंने सोचा इसी पर क्यू न लिखा जाये....
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