दलीलों से आगे बढ़ने का वक्त

प्रणब मुखर्जी भ्रष्ट हैं. वह राष्ट्रपति तो बन गये, लेकिन इसके लिए उन्हें कई तरह के कुचक्र रचने पड़े. घोटालों के जरिए वह राष्ट्रपति बनने में सफल हो पाये. इस तरह के कई आरोप आपको सुनने को मिल सकते हैं. टीम अन्ना से लेकर कई फेसबुकिया क्रांतिकारियों तक भी. लेकिन, क्या वजह है कि ये लोग सिर्फ दलील देते हैं, कोई ठोस सबूत नहीं. तर्क-कुतर्कों के सहारे किसी को भ्रष्ट बनाने में इन्होंने जी-जान लगा दिया है. प्रणब दा भ्रष्ट हैं, क्योंकि उन्होंने ए राजा, कलमाडी जैसों की रक्षा की. अरे कैसे की बाबा. अगर वो दोषी हैं, तो सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान क्यों नहीं लिया. क्या सुप्रीम कोर्ट भी बिका हुआ है. सिर्फ कोरे तर्कों के आधार पर बकवासबाजी करना आसान है. क्योंकि आपको सिर्फ किसी पर आरोप लगाना होता है. आरोप लगाने बहुत आसान है, लेकिन जब उसे साबित करने की बात आती है तो पता नहीं किस बिल में छिप जाते हैं ये लोग. इस ीतरह राम जेठमलानी हैं, दशकों से कहते आ रहे हैं कि (संकेतों में ही सही) पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का ब्लैक मनी स्विस बैंक में जमा है. उनका अकाउंट है. अभी तक साबित नहीं कर पाये हैं, वह. देश के सबसे बड़े वकील माने जाते हैं, पूरा संविधान और कानून की हर बारीकियां कंठस्थ है उन्हें, फिर भी इस तरह की बचकानी हरकत वह जारी रखते हैं. उन्हें पता होना चाहिए वकील के पास दमदार तर्क होता है, जिससे वह जज और लोगों को प्रभावित कर सकता है. लेकिन, जज सिर्फ उस तर्क के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराता. उसे सबूत चाहिए. यही सबूत आजतक जेठमलानी नहीं दे पाये हैं. जबतक कोई ठोस सबूत आपके पास, नहीं हो तब तक आप किसी को कानून दोषी नहीं ठहरा सकते है. यहां एक समस्या यह भी है कि तथाकथित फेसबुकिया और चुरकुटिया क्रांतिकारी चोर का खुन्नस उसके रिश्तेदारों पर निकालने लगते हैं.अगर कुछ लोगों को प्रणब दा के राष्ट्रपति बनने में भी घोटाला दिख रहा है, तो फिर मैं इसे उनका मानसिक दिवालियापन ही कहूंगा. अभिव्यक्ति की सही आजा़दी आजकल यही मानी जा रही है, आप कुछ भी किसी पर बकर-बकर आरोप लगाते रहिए. ज़रूरत है, दलीलों और आरोपों के दौर से आगे बढ़ने का और हर बात में नुक्ताचीनी से बचने का. साथ में, फेसबुकिया क्रांति से बाज आने का भी.

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