भारत-पाकिस्तान... दो मुल्क, पर राजनीति एक!


पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान... इस पाकिस्तान की कोई बात नहीं करना चाहता। चाहता भी है, तो बस तोप-बंदूकों की जुबान में। कोई पाकिस्तान की बर्बादी का जश्न मनाना चाहता है, तो कोई पाकिस्तान का नाम भर लेकर ही हिंदुस्तान में राष्ट्रवाद की अलख जगाना चाहता है। उसका नाम लेकर सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने के सिवा पाकिस्तान से उसका कोई और राब्ता नहीं।
कमोबेश यही हालात सरहद के उस ओर भी हों! यहां के हुक्मरानों की तरह वहां भी सत्तानशीं के लिए हिंदुस्तान की फिक्र बस इसलिए होती है कि पावर पॉलिटिक्स में कहीं से कमजोर न नजर आएं। उनके ख्यालों में जनता हमेशा से इन सबके बाद की प्राथमिकताओं में रही है, अगर रही भी है तो! 
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डॉन वेबसाइट के मुताबिक, पाकिस्तान में कोरोना वायरस के कुल मामले तकरीबन दो लाख के आंकड़े तक पहुंच चुकी है। चार हजार से ज्यादा की मौत हो चुकी है। हिंदुस्तान में यही संख्या पांच लाख से अधिक है और यहां 15 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। सीमा के दोनों तरफ आर्थिक हालात किसी से छिपी नहीं है। पाकिस्तान की थोड़ी ज्यादा खस्ती होगी। लेकिन दोनों मुल्कों में राजनीति अजीब ही करवट ले रही है।
वरिष्ठ पाकिस्तानी कॉलमनिस्ट खालिद अहमद इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि जब इमरान खान ने 2018 में देश की बागडोर संभाली तो अर्थव्यवस्था की हालत बहुत ही खराब थी। उन्हें विरासत में मिली इस खस्ताहाल अर्थव्यवस्था से निपटने की चुनौती मिली। लेकिन इमरान के करिश्मा यानी उनकी पर्सनैलिटी से उनकी चुनौती और कई गुना बढ़ गई। वह एक तेज गेंदबाज की तरह आक्रामक थे, बतौर कप्तान काम पूरी तरह खत्म करना चाहते थे, लेकिन राजनीति समझौतों और वक्त के साथ तालमेल बिठाने का नाम है। आज लगभग दो साल बाद भी हालात कम नहीं हुए हैं। विपक्ष कहीं दिख नहीं रहा है, लेकिन कोरोना वायरस महामारी और टिड्डियों के हमले से उनकी पार्टी पाकिस्तान-तहरीके-इंसाफ जबरदस्त दबाव में है। अंदरखाने पार्टी में सिरफुटौव्वल चल रहा है। कई मंत्रियों के विभाग छीने जा रहे हैं, तो कई को सख्त निर्देश दिए जा रहे हैं। फवाद चौधरी के नाम से सभी वाकिफ हैं। पहले सूचना मंत्री थे, लेकिन ओहदा छीन लिया गया और साइंस एंड टेक्नॉलजी मंत्रालय की जिम्मेदारी दे दी गई। उनके बिना सुरताल की बोली ने इमरान की छवि बहुत खराब की है। इमरान की दो सबसे बड़ी ताकते हैं उनकी दोनों विपक्षी पार्टियां- पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी)। लेकिन सेना और नेशनल अकांउटबिलिटी बिल (नैब) की वजह से पूरे परिदृश्य से नदारद हैं।
अब हिंदुस्तान लौटते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ताकत क्या है? सोचिए... कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार। महात्मा गांधी नहीं, गांधी परिवार मतलब नेहरू, सोनिया और राहुल गांधी। जब भी कोई संकट या समस्या आती है तो क्या हमारे देश के प्रधानमंत्री नेहरू और गांदी परिवार पर हमला बोलना शुरू नहीं करते। क्या बीजेपी नेहरू और गांधी परिवार के पीछे नहीं पड़ जाती है? हालिया उदाहरण ही ले लीजिए। चीन से सीमा विवाद चरम पर है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर सारे प्रवक्ता तक नेहरू-गांधी परिवार के पीछे नहीं पड़ गए हैं। अब गांधी परिवार ने 45 साल से ज्यादा वक्त तक देश पर शासन किया है तो जनता का मिजाज भी उनसे खफा-खफा है। वह पिछले छह साल से सत्ता में काबिज बीजेपी सरकार की जगह अब भी विपक्ष से ही सारे सवालों के जवाब की उम्मीद करती है। या ऐसा कहें कि जनता के दिमाग को इस तरह फीड कर दिया गया है कि वह सरकार से सवाल पूछने की हिमाकत ही नहीं कर सकती।
इसकी मिसाल यह है कि जब चीन हम पर बार-बार चढ़ रहा है, तो प्रधानमंत्री से लेकर बीजेपी के सारे आला नेता उसे जवाब देने की जगह नेहरू-गांधी परिवार का झुनझुना जनता के अहं को संतुष्ट करने के लिए बेच रही है। सरेआम झूठ बेचा जा रहा है। प्रधानमंत्री जी सर्वदलीय बैठक में कहते हैं कि लद्दाख में झड़प हुई। हमारे 20 जवान शहीद हो गए, लेकिन कोई हमारी सीमा में घुसा ही नहीं। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा कहते हैं कि मौजूदा समस्या की जिम्मेदारी नेहरू की है। बीजेपी अध्यक्ष कहते हैं कि एक परिवार की गलतियों के कारण 43 हजार स्क्वेयर किलोमीटर (यह कितना सही है कोई फैक्ट चेकर ही बताए) भूमि चली गई। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से 90 लाख की फंडिंग की गई। लद्दाख से बीजेपी सांसद जमयांग सेरिंग नामग्याल का मानना है कि कांग्रेस के शासन में चीन ने डेमचोक सेक्टर के उसके इलाके तक कब्जा कर लिया।मतलब चीन ने भारत से जंग जैसे हालात छेड़ रखे हैं और सारी लड़ाई कांग्रेस के खिलाफ लड़ी जा रही है।
पाकिस्तान में इमरान खान देश की बर्बाद होती अर्थव्यवस्था पर कुछ नहीं बोल रहे हैं। आतंकवाद को शह देने के कारण अबी एफएटीएफ की लिस्ट में वह बना हुआ है। बिजली संकट सुरसा की तरह बढ़ती जा रही है, जिससे उद्योग धंधे चौपट हो रहे हैं। पिछले महीने पाकिस्तान में एक विमान हादसे में 97 लोगों की जान चली गई, तो पता चला कि यह किसी तकनीकी खामी नहीं, बल्कि पायलट आपस में कोरोना महामारी की चर्चा कर रहे थे। इस कारण वह विमान संभाल नहीं पाए और हादसा हो गया। फिर पता चला कि पाकिस्तान का हर तीसरा पायलट फर्जी डिग्री और लाइसेंस लेकर फ्लाइट उड़ा रहा है। आसमान में विमान उड़ाते हुए पायलट कोरोना की चर्चा कर रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान का प्रधानमंत्री कोरोना के मामले में खामोश हैं। वह पाकिस्तानी असेंबली में बोलते भी हैं, तो ओसामा बिन लादेन को शहीद तक बता जाते हैं। कश्मीर पर बाज नहीं आते।
यह कुछ ऐसा मसला है कि जनता भूखे मर जाएगी, लेकिन इन मुद्दों पर सरकार से सवाल नहीं करेगी। ठीक उसी तरह जैसे हिंदुस्तान में जनता राष्ट्रवाद और विपक्ष का नाम आते ही मोदी सरकार के खिलाफ सवालों को सुनने से पहले कान बंद कर लेती है। आखिर पाकिस्तान हमारा पड़ोसी देश ही तो है। 1947 से पहले तो हमारा ही हिस्सा था। क्या हुआ जो दो अलग-अलग मुल्क बन गए। एक ही परिवार को दो भाई भी अलग होता ही है, लेकिन इस अलगाव या बंटवारे के बावजूद दोनों की फितरत तो वही रहती है। पाकिस्तान-हिंदुस्तान की भी यही हालत है। दोनों मुल्कों के नेताओं की नब्ज भी वही है।

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