गरीब वोटर अमीर नेता

देश की दो अलग-अलग तस्वीरें...लोकसभा चुनाव ख़त्म। जब हमारे देश की बहुसंख्य आबादी गर्मी की तपिश झेलने को मज़बूर है...दो बूँद पानी के लिए छटपटा रही है...वहीं चुनाव जीतकर आए, ये नेता अब एयरकंडीशन में बैठकर और जब एक बड़ी आबादी पानी से मरहूम है या गंदा पानी पीने को मज़बूर है, जैसा कि हाल में राजस्थान का मामला सामने आया..ऐसे में ये प्यूरीफायड पानी पीकर लोगों की ज़िंदगी की दशा-दिशा तय करेंगे..ख़ैर ये कोई आज की कहानी नहीं है, ये एक सिस्टम के तौर पर सदियों से हमारी सोसायटी में फैला हुआ है।गांधी ने बस एक धोती पहनकर आज़ादी दिलाई तो नेहरू ने चूड़ीदार पायजामा पहनकर हुकूमत चलाया। राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति भवन में संत बने रहे , पटेल रियासतों को एक करते रहे , नेहरू कश्मीर विवाद को जन्म देते रहे। हम यहां नेहरू की आलोचना नहीं कर रहे , दरअसल परिवारवाद आदि में कोई बुराई नहीं है, अगर देखें तो मौर्य वंश और मुगल काल आदि में भी लोगों का जीवन स्तर काफी बेहतर था, तो क्या राजशाही को भी बेहतर माना जा सकता है। बात दरअसल ये है कि सरकार चाहे किसी की भी हो आम और मज़बूर बहुसंख्य जनता को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है.चाहे इंडिया शाइनिंग हो या भारत निर्माण। यहां तो बस लोगों की जान बस इस बात पर चली जाती है कि वह हिंदू है , वह मुसलमान है या ईसाई है। सही तौर पर देखा जाए तो हम आज भी एक सभ्य मुल्क नहीं बन पाए हैं। सही शासन-प्रशासन के लिए आज भी तरस रहे हैं। बेरोज़गार पड़े हैं। कोई पूछने वाला नहीं है। अपने ही मुल्क में ग़ैरों-सा बर्ताव होता है, मुंबई जाओ या साउथ सब जगह से भगाए जाते हैं वह भी डंडे के दम पर। आज क्यों हर जगह हत्या, लूट मार, बलत्कार हो रहा है। सबसे बड़ी वजह सिस्टम का फेल्योर होना है। न हम लोगों को रोज़गार दे पा रहे हैं , न ही जिंदगी की सुरक्षा। फिर भी अगर चुनाव लड़ते भी हैं तो जय हो! कहते हैं या भय हो! लेकिन न तो किसी की जय होती है और न ही किसी का भय दूर होता है............

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