मेरी ज़िंदगी में एक ही विश्वास है,
वो हो तुम!
जानता हूं कितने ही जल-प्रलय हो,
तुम्हारे सहारे हमेशा ऊपर रहूंगा,
तुम मुझे डूबने नहीं दोगी,
इन लहरों से भी खेल सकता हूं,
सिर्फ तुम्हारे सहारे।
लेकिन यकीन का डोर कभी टूटा,
तो किन अंधेरी गहराईयों में डूब जाउंगा,
ये कभी सोच ही नहीं पाता।
एक उम्मीद थी तुमसे,
कि होगी मुलाक़ात...
पर वक़्त दग़ा दे गया
औऱ समझता रहा कुसूर था वो मेरा!
अब सोचता हूं,
काश ! एक ऐसा भी दिन आए,
जब मांगू कोई भी मुराद
वो आख़िरी तो हो, पर अधूरा न रह जाए!!!
aamin bhagwaan aapki murad ko puri de
ReplyDeleteआपकी सभी मनोकामनाएँ जल्द पूरी हो जायें
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चर्चा । Discuss INDIA
लेकिन यकीन का डोर कभी टूटा,
ReplyDeleteतो किन अंधेरी गहराईयों में डूब जाउंगा,
kitana samarpan dikhlai de raha hai aapki rachana me wah
अब सोचता हूं,
ReplyDeleteकाश ! एक ऐसा भी दिन आए,
जब मांगू कोई भी मुराद
वो आख़िरी तो हो, पर अधूरा न रह जाए!!!
चन्दन जी , यूँ ही भटकते भटकते इधर आ गयी थी ....आपकी कविता पढ़ी ....लाजवाब लगी .....बस अधुरा को अधूरी कर लें ....मुराद स्त्रीलिंग शब्द है ....!!
बहुत बेहतरीन!
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