लगता है आजकल सांप्रदायिकता, क्षेत्रीयता का ख़ूब बोलबाला है, जिधर देखो इसी तरह की बातें, माहौल। अख़बार से पोर्टल तक में जिक्र। मुंबई से मेलबोर्न तक। अपने यहां बात करें तो बाबरी मस्जिद, गोधरा दंगा हो या महाराष्ट्र में नॉर्थ इंडियन खासकर बिहारी और यूपी के लोगों को हिंसक गतिविधियों का निशाना बनाना। पहले तो बुद्धिजीवी उनका विरोध करते थे, अब लगता है उन्होंने भी मोर्चा खोल दिया है। ताज़ा उदाहरण है, अभिलाष खांडेकर साहब का जो दैनिक भास्कर जैसे अख़बार के मध्यप्रदेश हेड हैं। ये सही है कि बिहार जैसे राज्य विकास के मामले में काफी पीछे हैं, लेकिन ये भी देखने की बात है कि दंगे और आग उगलने वाले बयानबाज़ी में भी पीछे हैं,। कहा जाता है, भारत में गुजरात का ग्रोथ रेट चीन से भी ज़्यादा है लेकिन गोधरा जैसे दंगे भी वहीं होते हैं, हिंदू और मुसलमानो के पहचान के लिए अलग-अलग कॉलनिया हैं। मुंबई भी डेवलप है तो डॉन का दबदबा भी वहीं है...इस बात से बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता कि यहां नेताओं के निकम्मेपन ने हर तरह से आबाद राज्य को बर्बाद करके छोड़ दिया। उसे बस अपनी जागीर समझ कर इस्तेमाल किया और हमारे जैसे नागरिक जाति और मजहब के नाम पर वोट दे-देकर उन्हे अपना ख़ून चूसने का मौक़ा देते रहे। और हम उंगली उठाते हैं, ऑस्ट्रेलिया में हो रहे नस्लभेदी हमलों पर लेकिन हम ये क्यों भूल जाते हैं कि जिनके घर कांच के होते हैं उन्हें पत्थर नहीं उछालना चाहिए.....ज़रूरत तो अपने घर को भी ठीक करने की है...जिस तरह से हम भारत में बिहार और यूपी जैसे राज्यों को हिकारत भरी निगाहों से देखते ठीक यही तमाशा भारतीयों के साथ विदेशों में होता है। अगर कोई बिहार का रहने वाला है तो हम उसे बिहारी इसलिए नहीं कहते कि वो बिहार का रहने वाला है, ये एक गाली का लब्ज़ बन चुका है। मतलब जाहिल, गंवार और निचले दर्जे का इंसान। ठीक यही सोच होती है, गोरे लोगों का काली चमड़ी वालों के लिए। हालांकि इनकी तादाद अधिक नहीं है फिर भी ये ख़ुद को एक्सपोज़ करना बख़ूबी जानते हैं। कुल मिलाकर ये कि हर एक तबका जो ख़ुद प्रतारित, सताया, भेदभाव का शिकार होता अपने से नीचे वाले के साथ ठीक उसी तरह का बिहैव करता है। एक जगह वो इंनफीरीयर है तो दूसरी जगह सुपीरीयर।
इंसान और इंसान में भेद करने की हर कोशिश इंसानियत के विरुद्ध है।
ReplyDeleteऔर यही बात इंसान समझने को तैयार नहीं है,,,,,,दरअसल ये इंसानियत का चोला पहनकर उसके ख़िलाफ़ साज़िश करते हैं....
ReplyDeleteये तो सही है, लेकिन समस्या ये है कि हम समस्याओं से मुंह चुराते हैं बजाय उनका समाधान निकालने के..............
ReplyDeleteआपको पिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...
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चाँद, बादल और शाम | गुलाबी कोंपलें