पांच बरस बीत गए

ख़त्म होती जा रही है संवेदनशीलता,
दूरियां क्या रिश्तों को भी
कमजोर कर देती है,
पांच बरस रहा अपनों से दूर,
खूब घूम-घूम और विघ्नों को चूम,
जब दिक्कत थी, तो दुनिया भी थी,
जब सपने थे, तो अपने भी थे,
पांच बरस कैसे बीते, सोचने पर पछताता हूँ,
पर बीती बातों को सोचने से क्या होता है,
आगे बढ़ने से नहीं होगा हासिल कुछ,
रिश्ते तो बिखर गए न,
जिनमे यकीं बाकी हैं,
वो भी दरकने लगे हैं.
बीत गए पांच बरस बिरह में,
टूट गयी आस अब मिलन की,
न दर्द रहा न उसका अहसास,
बाकी है तो बस यादों की चंद घरियाँ,
जिनमें अब भी गुज़रती है,
मेरी सबसे अच्छी शाम.
पांच बरस बीत गए,
बिना किसी को भूले,
यादों को सजोने में थोडा वक़्त लगता है,
उनमें भी अच्छी और बुरी यादें भी,
बुरी यादों का भी भाव बढ़ने लगा है,
उसे याद कर रोने वाले,
और छुप कर पीने वाले,
गले लगाने लगे हैं.

3 comments:

  1. वास्तविकता व्यक्त करती पंक्तियाँ।

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  2. accha likha hai.. bahut dino tumhari kisi baat ki tarif kar raha hun... der se kar raha hun..so shayad tum na dekho... achcha hai...

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