केशव की तान पर कलमाडी का खेल

पांच दिनों बाद लिख रहा हूँ. राष्ट्रमंडल खेलों के बारे में ही लिख रहा हूँ. उद्घाटन समारोह बेहद शानदार रहा. एक दिन पहले तक जो दुनिया खेलगांव को गन्दा और बकवास करार दे रही थी, उसके अखबारों और चैनलों में वाहवाही का आलम था. कल तक जो ऑस्ट्रेलिया समेत कई देशों के दल प्रमुख आलोचना करते अघाते नहीं थे, वही आज तैयारियों और इंतजामों से मुत्तासिर हैं. या तो वो पहले झूठे थे या अब. लेकिन इन सब बातों को भी छोड़ दें तो उदघाटन समारोह वाकई भव्य और अनूठा रहा. न इसमें बॉलीवुड का तड़का था और न ही कोई तमाशा. इससे कुछ लोगों का यह गुमान टूटा कि बगैर बॉलीवुड के कोई समारोह सफल नहीं हो सकता. भारत की मूल संस्कृति ने जो रंग जमाया उसकी जगह कोई नहीं ले सकता था. इस समारोह में था तो बस भारतीय संस्कृति और विविधता में एकता का सबसे बड़ा सबूत. दुनिया देख कर दंग और हैरान थी. शायद अब तक जो भारतीय मीडिया खेलों में गंदे धंधे का पर्दाफाश कर रहा था, उसने भी थम कर सोचा और भारत की तहजीब पर बट्टा नहीं लगने दिया. उद्घाटन समारोह की बात कहूं तो केशव की तान ने अभिभूत कर दिया. कलमाडी के सारे कुकर्मों पर पर्दा डाल दिया. उसकी मुस्कान को देख कर ही सभी के चहरे खिल गए होंगे. महज सात साल की उम्र में कोई बच्चा इतनी मस्ती में तबला बजाये यह तो अद्भुत है. मेरी भतीजी ने मुझे फ़ोन किया और कहा...'चाचू आपने उस छोटे बच्चे को देखा, हालाँकि मेरे भतीजी भी सात साल की ही है, फिर भी उसे वह भी बच्चा ही कह रही थी., उसने कहा, उसका नाम केशव है और वह कितना बढ़िया से मुस्कुरा रहा था. ' केशव उस छोटे से समय के प्रदर्शन में सबों का चहेता बन चुका था. उसका नाम सभी के लबों पर था. खेलों के गुनहगार की खोज फिर खेलों के बाद की जायेगी. अभी तो वक़्त है भारतीयता दिखाने का. कल जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम गया. एथलेटिक्स का मुकाबला था. भारत की और से चुनिन्दा खिलाड़ी ही इन स्पर्धाओं में शिरकत कर रहे थे. जाने माने चेहरों में सौ गुना चार मीटर दौड़ में मंजीत कौर और मंदीप कौर  सेमीफाइनल में थीं. इनमें से मंदीप कौर अब फाइनल में खेलेंगी. सौरभ विज भी शौट पुट में थे. यानी गिनती के भारतीय खिलाड़ी. बावजूद इसके लोगों की तादाद कम नहीं थी.  हैरत तो इस बात से हुई और गर्व भी कि जब ऑस्ट्रलियन महिला एथलीट ने सौ मीटर दौर में गोल्ड जीती तो पूरे मैदान के चक्कर लगाये. उस वक़्त लोगों के तालियों की आवाज़ से पूरा स्टेडियम गूँज उठा. यानी सच्ची भारतीयता की झलक सभी सामने थी. यह देखकर मुझे उतना ही मज़ा आया, जितना सभी को आना चाहिए. मुझे लगा यूं ही कोई बात कहने से उसे परख लेना बेहतर होता है. आखिर वही सच्चाई होती है. भारतीयता पर जो लोग सवाल उठाते हैं उन्हें भी ये चीज़ें देख लेनी चाहिए बजाय कोरा विश्लेषण करने के.

1 comment:

  1. आप ने बहुत अच्छी तरह से ब्य्खायित किया है

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