बिहार में विकास -आधी हकीक़त आधा फ़साना

बिहार में चुनावी सरगर्मियां शबाब पर हैं. तीसरे चरण का चुनाव हो चुका है. बाकी तीन होने हैं. मैं दिल्ली में हूँ और बिहार का बाशिंदा हूँ. मेरे पास पहचान पत्र यानी वोटर आई डी कार्ड भी दिल्ली का ही है, बिहार का नहीं. वहां से 12 वीं करने के बाद दिल्ली आया और तब से आगे की पढ़ाई यहीं की और फ़िलहाल नौकरी के साथ-साथ पढाई जारी है. लगभग 6  साल हो गए दिल्ली आये हुए तो और लगभग इतना ही वक़्त हुआ बिहार में सत्ता परिवर्तन हुए.  राज्य का निवासी और बाहरी दोनों की भूमिका में हूँ मै. नतीजतन जो बदलाव और विकास के की बात हो रही है, उसे समझने में कोई परेशानी या उलझन या दुविधा की स्थिति में कतई नहीं हूँ. मीडिया के मुताबिक, बिहार में सत्ता की लड़ाई का स्वरुप भी बदल गया है. अब कितना बदला है यह 24  नवम्बर को ही पता चलेगा. लेकिन विकास कहाँ तक हुआ इसका ज़रा उदहारण दे दूं, जब मैं पटना से गाँधी सेतु पुल से गुजरता हूँ, तो आज भी उतना ही डर लगता है जितना नीतीश के मुख्यमंत्री बनने से पहले लगता था. यानी यह सेतु ज़र्ज़र हालत में है और कभी भी टीवी चैनलों पर एक दिन की खबर बन सकता है. हादसों की वजह से. अखबारों के पहले पन्ने पर सुर्ख़ियों में . इसमें कोई शक नहीं कि इस बार बिहार चुनाव में विकास की बातें खूब हो रही है. विकास हुए भी हैं. सच है कि नीतीश सरकार के राज में सड़कें बनी हैं, पुल बने हैं लेकिन कुछ मोर्चों पर विफलता काफी हावी रही है. कुछ विधायकों की अकर्मण्यता और कुछ सरकार की उदासीनता भी कमजोर कड़ी साबित हुई है जो नीतीश के हक में नहीं जाती हैं. पिछड़े वर्ग का मतदाता भी नाराज ही दिख रहा है, बीबीसी के मुताबिक, 'हम इस सरकार को बदलना चाहते हैं क्योंकि विकास-उकास सब फोकसबाज़ी है, सड़क-बिजली का बुरा हाल है और हमलोग इस राज में त्राहि-त्राहि कर रहे है.' यह कहना था पिछड़े वर्ग के एक मतदाता का. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव विकास अभी दूर की ही कौड़ी है. लेकिन हाँ, आप इसे विकास नहीं तो उसकी आस कह सकते हैं.  बेहतर ढंग से चुनावी मसलों को कवर नहीं कर पाया, अगली बार कोशिश करूँगा फोकस रहने की.

4 comments:

  1. chandan ji,
    akhbar me khabar ke bad hi to rajneeti karvat leti hai aur hadson ke tave par netaon ki roti sinkti hai.

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  2. अगले 5 वर्ष बिहार के दिशा निर्धारक होंगे।

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  3. विकास कहाँ तक हुआ इसका ज़रा उदहारण दे दूं, जब मैं पटना से गाँधी सेतु पुल से गुजरता हूँ, तो आज भी उतना ही डर लगता है जितना नीतीश के मुख्यमंत्री बनने से पहले लगता था. यानी यह सेतु ज़र्ज़र हालत में है और कभी भी टीवी चैनलों पर एक दिन की खबर बन सकता है.
    चन्दन असल मायने में बदलाव बिहार ही नहीं देश के किसी भी कोने में तभी आएगा जब आम आदमी को किसी भी तरह का डर नहीं रहेगा......आपने बहुत सटीक उदहारण दिया..... अच्छी प्रस्तुति

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  4. monika ji aapki baaton se 100 fisadee sahmat hoon, vikas ka sabse bada paimana aam aadamee ki nidarta hi hai vah khud ko daba kuchla mahsoos na kare..lekin yah haqiqat abhi door ki kaudee hi lag rahi hai..ha..ham us raste pe chal zraur pade ahin.

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