नया साल भला नया क्यों?

नए साल का आज पहला दिन है। पहली तारीख। क्या लिखूं , कुछ समझ में नहीं आ रहा है? कई बातें दिमाग में आ रही हैं और जा रही हैं। उसे शब्दों में उतारने में असमर्थ पा रहा हूं, बस ज़रा यही दिक्कत है। फिर भी कोशिश करता हूं। पुराने साल के आखिरी दिन और  नए साल के पहले दिन कुछ बातें बेहद कॉमन होती हैं। लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं। एक रिवाज सा। सभी आपसे आपके रिजॉल्यूशन पूछते हैं। ये दो बातें बेहद आम हैं। अच्छा लगता है लोगों को बधाई देना और उनसे शुभकामनाएं लेना। लेकिन, मैं ज़रा अलग सा हूं। पता नहीं मुझे बधाई की खानापूर्ति क्यों पसंद नहीं? कुछ वाकई आपके शुभचिंतक होते हैं तो कुछ रिश्तों को ढोने के लिए शुभ संदेश आपको भेजते हैं। कह सकते हैं यही तो हिंदुस्तानी तहज़ीब की ख़ासियत है। अगर ऐसा है तो मुझे यह पसंद नहीं। अब, बात रिजॉल्यूशन की। हर साल हम खुद से एक वादा करते हैं। कई बार तो वहीं वादा हर साल करते हैं। बार-बार करते हैं। कहते हैं रिश्तों की वजह से ही समाज नामक संस्था जो है वह टिकी है। लेकिन उन रिश्तों का क्या जो रेत की नींव पर टिके हैं। मेरे संबंध भी कुछ इसी तरह के हैं। हालांकि वो बेहद प्यारे हैं। उससे अलग होने का जी नहीं करता है। लेकिन पूरी ईमानदारी नहीं निभा पा रहा हूं। उन्होंने काफी कुछ किया मेरे लिए। शायद इससे उनको मुझसे कुछ उम्मीदें भी हैं। पर मैं उन उम्मीदों पर सही नहीं उतर पा रहा हूं। मैं दोष नहीं दूंगा। ग़लतियां हर किसी से होती हैं। आज मैं किसी पर कोई तोहमत नहीं लगाऊंगा। बस बच के निकलना चाहता हूं और चाहता हूं एक सुकून भरी ज़िंदगी। चाहता हूं कुछ रिश्तों से कुछ वक्त के लिए पूरी आज़ादी। यह सवाल मेरे सामने खड़ा है एक चुनौती की तरह। एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ शेर के हालात हैं। शायद मुझे जोख़िम मोल लेना चाहिए। और, मैं लूंगा। मतलब नए साल मेंरा रिजॉल्यूशन कुछ संबंधों के बोझ को कंधे उतारना है। मैं जीना चाहता हूं अपनी ज़िंदगी। और चाहता हूं खुद की इज्जत करना। अपने अतीत को भूलाकर वर्तमान में जीना चाहता हूं। अपने दोयम व्यक्तितत्व को हमेशा के लिए अलविदा कहना चाहता हूं। मैंने तय किया-अब डरूंगा नहीं। हार नहीं मानूंगा और न झुकूंगा। बस अपने अस्तित्व के लिए आख़िरी सांस तक लड़ूंगा। तो दोस्तों...नहीं कहना है कुछ मुझे उनसे जो साल भर अपनों की आड़ में ज़ख्म देते रहे। न कोई गिला और न ही शिकवा उनसे भी जिन्होंने कभी मेरा भला चाहा ही नहीं। वो मेरा मुक़द्दर था। मेरी ज़िंदगी थी। हां, शुक्रिया ज़रूर कहूंगा आपको और उन सभी को भी जिनसे मुझे परेशानी हुई, क्योंकि इंसान हर पल और किसी से कुछ न कुछ सिखता ही है। मैं भी उनमें से एक हूं, जो अभी एक ज़िंदगी का विद्यार्थी ही है वह भी निचले दर्जे का। नए साल की ढेरों शुभकामनाएं सभी को!

1 comment:

  1. कोई भी अवसर हो, शुभकामनायें दे देता हूँ।

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