किसी भी आन्दोलन को नेतृत्व देने वाला वर्ग यदि नयी व्यवस्था में वाही स्थान और
महत्व चाहता है, जो पुरानी व्यवस्था के मुखिया वर्ग को मिला हुआ था , तो वह उसी व्यवस्था
की आधारभूत संरचनाओं को न सिर्फ़ बनाए रखना चाहता है बल्कि उन्हें मजबूत भी करता
जाता है। ठीक यही बात हमें आज़ादी दिलाने वाले नेताओं पर भी लागू होती है।
हमारी मानसिक गुलामी आज भी आज भी बरक़रार है। उन तमाम बातों को हम पर
थोपा गया, जिससे हम एलिट वर्ग के खिलाफ कुछ न कर सके।
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