पुलिस से न दोस्ती अच्छी , और दुश्मनी तो कभी नहीं। ये सोच रहा है या अभी भी है आम आदमी के जेहन में।
वजह साफ़ है, पुलिस का शिकार अपराधी कम , निरपराध ज़्यादा होता है। शिकायत करने वाला ही पुलिस की नज़रों में गुनाहगार होता है और गालियों से खातिरदारी करना तो आम बात है। किसी भी मामले में अपराधी के कम गवाह के फंसने की संभावना ज़्यादा होती है, बजाय दोषी के। इसलिए पुलिस को किसी घटना का गवाह नहीं मिलता है।
ये कुछ कैरेक्टर हमारी पुलिस की है। जिसने पब्लिक और पुलिस के बीच ज़मीन -आसमान की खाई बना दी है। लेकिन हकीक़त पूरी ऐसी नहीं है। पुलिस का एक दूसरा रूप भी है जो हम अक्सर देखने की कोशिश नहीं करते हैं। वो है - भक्षक की जगह रक्षक की। दुश्मन की जगह दोस्त की । और हमारे , समाज के सहयोगी की । पुलिस के इस कैरेक्टर की बानगी देखने को मिलती है " हरियाणा पुलिस अकेडमी " में। जहाँ उनकी ट्रेनिंग कुछ इस तरीके से होती है की आप यकीं नहीं कर पाएंगे क्या ऐसी पुलिस भी हमारी सोसाइटी में है जो इस तरीके की भी हो सकती। जो हम से तू या तुम की जगह आप कह कर बात करती है। जी हाँ , ऐसा है , बिल्कुल है और ये है इसी -" हरियाणा पुलिस अकेडमी में। " जो पुलिस की बदलती हुई तस्वीर को हमारे सामने ला रही है।
इस अकेडमी की खास बात है इसकी ट्रेनिंग और ट्रेनिंग कांसेप्ट। जहाँ पुलिस ट्रेनिंग से जुड़ी तमाम बातों के साथ -साथ उन्हें संस्कृति , सिनेमा और आर्ट की भी तरंग दी जाती है। ये प्रयास उन्हें औए ह्यूमन बनने के लिए और उनके मानसिकता बदलने के लिए किया जाता है। ये कहना है अकेडमी के निदेशक विकास नारायण राय का। जिससे पुलिस ब्रिटिश समाया की मानसिकता से निकल कर हिन्दुसतानी हो सके। और
ज़्यादा मानवीय हो सके। इसी क्रम में पुस्तकालय जाना भी उनके ट्रेनिंग का अनिवार्य हिस्सा है। कुछ इस तरह हमारी पुलिस की तस्वीर बदल रही बस ज़रूरत है तो पब्लिक के सहयोग की भी।
जय भारत! जय पुलिस।
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