ऐसे हमारे नेता


ये हैं हमारे देश के वीर सपूत। देश की नयी तकदीर लिखने वाले।
राजनीति की नयी जमात के चेहरे। आने वाले सालों में यही हमें नयी दिशा दिखायेंगे। हिन्दुस्तान को नयी ऊँचाइयों पर ले जायेंगें। हमारे मुल्क को विकास की पटरी पर तेज़ी से दौडायेंगे। ये सब कुछ करने को तैयार हैं। और करेंगे। देश की एकता-अखंडता को और मज़बूत करेंगे। जी, हाँ ! घबराइए मत , चौंकिए भी नही। ये ऐसा बिल्कुल करेंगे। एक महाशय गुजरात को ही हिनुस्तान से एक अलग स्टेट मानते हैं, और हवाला देते हैं- हमारे स्टेट का ग्रोथ इंडिया से भी ज़्यादा है। हमने ये सब बगैर केन्द्र सरकार की मदद के कर दिखाया है। ऐसा कहते हैं, ये जनाब। देश की एकता के नाम पर हिन्दुओं को एक करेंगे। लेकिन मुझे तो इसमें भी शक है। एक तरफ़ तो मंदिरों को तोड़ते हैं, तो दूसरी ओर अयोध्या में मन्दिर बनाना चाहते हैं। और राष्ट्रीय एकता कायम करेंगे, गोधरा जैसे दंगे करवाके। अल्पसंख्यक ख़त्म, बचेंगे केवल हिंदू हो गई एकता कायम। सब जगह एक ही तरह के लोग।
इन्हीं के नक्शे कदम पर चलने को आतुर एक गाँधी । सांप्रदायिक होता एक गाँधी। एक गाँधी मुसलमानों के मसीहा थे, एक ये गाँधी, जो उन्हें फूटी आँख पसंद नहीं करता। अब तो इन्हें जूनियर मोदी तक कहा जाने लगा है। जिस गीता का संदेश भगवान श्री कृष्ण ने दिया, उसी की कसम खा कर दूसरों की हाथो को काटने को तैयार है ये गाँधी। श्री राम का नाम लेकर , रहीम की हाथ काटने को तैयार।
एक और युवा राजनीति का चेहरा। उद्धव और राज। अपने क्षेत्र के लोगों को उनका हक दिलाने की कवायद में लगे दो भाई। चाहे अपने ही मुल्क के मुल्क के लोगों की लानत - मलानत ही क्यों न करनी पड़े। ये दोनों भाई, क्षेत्रवाद की आग लगा कर एक दूसरे को ही नीचा दिखाने में लगे हैं। जो महाराष्ट्र का नहीं, वो मराठी नहीं। सही है, लेकिन क्या वो हिन्दुस्तानी नहीं । एक मुल्क में रहने के लिए ये कैसा भेदभाव।
खैर, ये सब चलता है, क्या फर्क पड़ता है? यही सोच ने हमें इस हालत तक पहुँचा दिया है की हर जगह हमारी यही हालत होती है। हम सहते जाते है, वो हम पर चढ़ते जाते हैं। अगर ऐसे ही हमारे युवा नेता हैं, तो क्या हमें सोचने की जरूरत नहीं है की हमे हमारा नेता कैसा चाहिए।
आज मुझे अंग्रेजों की एक बात यद् आती है , " हिंदुस्तान में इतनी जातियां, धर्म , भाषा , क्षेत्र के लोग हैं, यह एक दिन टूट जाएगा।" ये सही लगता है, हम झूठ में ही "विविधता में एकता " रटते रहते हैं.. हमारा पूर्वोत्तर जलता ही रहता है, कश्मीर हमेशा आग की लपटों में ही रहता है। इधर साउथ और नॉर्थ इंडिया की मारामारी मची रहती है। राजधानी में भी अब दूसरे स्टेट के लोगों को पहचान पत्र साथ रखने की हिदायत दे ही दी जाती है जब - तब। अगर इसी तरह हम विभाजन के बारूद से खेलते रहे तो एक दिन सही में हिंदुस्तान बिखर जाएगा।
इसलिए ज़रूरत है समय रहते सँभालने की।

No comments:

Post a Comment