दिल चाहता है!


दिल चाहता है, दर्द बयां करना,
पर डरता है!

आंखें चाहती हैं, आंसूओं की बरसात करना।
लेकिन डरता है, कहीं ख़ुद न डूब जाए।।

कल देखा जो एक ख़्वाब।
दरहक़क़ीत रूबरू हुआ ज़िंदगी से।।

क्यों रोया उस रात फूट-फूट कर तन्हाई में,
शायद तन्हाई ही ग़म था या थी बात कुछ और।

कौन करे फिक्र उस रात की,
जब दुनिया ने किया मरहूम मुझे हर खुशी से।
आज भी सोचता हूं तो रूह कांप जाती है।।

दिल मे दर्द की दस्तक से,
जिंदगी की कड़वी सच्चाईयों से

कौन दिलाएगा 'मुक्ति'
जब दिल में दफ़न हैं, कई राज़ ज़मानें से।।

8 comments:

  1. हर वो मकाम जहाँ कभी दर्द होता है कभी तो कभी खुशी इन्हीचीजो का दफन हो जाने का नाम है जिन्दगी...............इनसे मुक्ति खुद ही पानी होती है ....................वरना कोई साथ नही दे पाता है..........आपकी रचना मे एक मर्म है जो कुरेदती है जिन्दगी के नासुरो को .........अभिननदन्

    ReplyDelete
  2. दिल चाहता है, दर्द बयां करना,
    पर डरता है!
    अन्दाज अलग सा दिखा इस रचना मे. बहुत अच्छा

    ReplyDelete
  3. कौन दिलाएगा 'मुक्ति'
    जब दिल में दफ़न हैं, कई राज़ ज़मानें से।।

    बहुत ख़ूब..

    ReplyDelete
  4. भावों से भरा अति सुंदर कविता..
    मन प्रसन्न हो गया..

    ReplyDelete
  5. kuchh samjha kuchh samajh me nahi aaya, lekin jo samjha vo dil ko rulaya, baki behtarin

    ReplyDelete