बदहाल शिक्षा बिहार में
एक तरफ जहाँ बिहार के छात्र हिंदुस्तान और हिंदुस्तान के बाहर तरक्की के नए झंडे गाड़ रहे हैं, वहीं उनके राज्य में ही शिक्षा की हालत खस्ता बनी हुई है। और फिलहाल इसके सुधरने की भी कोई गुंजाईश दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रही है। शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र था जो कभी इस राज्य की तूती बोलती थी कभी पूरे हिंदुस्तान में, लेकिन अब तमाम इन्फ्रास्त्रक्चरके ध्वस्त होने और लगातार उपेक्षा से इसकी हालत बद से बदतर होती जा रही है। और लगता है नीतिश सरकार में इस क्षेत्र में सुधार सिर्फ़ कागज़ पर ही रह गए है। कुछ फैसले लिए भी गए तो इसकी गुणवत्ता को और नेगेटिव करने वाला ही माना जाएगा । मसलन यूनिवर्सिटी के शिक्षकों की रितायरामेन्त की सीमा बासठ से बढाकर पैंसठ करना, ऐसा नहीं लगता है की सरकार अभी भी इस दिशा में कोई सार्थक सुधर के लिए सजग है । जहाँ रिटायर्मेंट की सीमा बढ़ने के बजाय खाली पदों को भरने का काम किया जाता तो एक तरफ बेरोज़गारी दूर होती तो दूसरी तरफ शिक्षा के क्षेत्र में क्वालिटी की भी उम्मीद की जा सकती थी। लेकिन ऐसा होना दूर की ही कौडी लगता है वजह शिक्षा के नाम पर किया जाने वाला खिलवाड़ है। जहाँ आज भी बिहार में चोरी से पास करने वाले छात्रो की कोई कमी नही है वहीं शिकशोंका ढुलमुल रवैया और पढानेके नाम पर मजाक इसे और भी बुरी तरह प्रभावित कर रही है। ज़रूरत है अपने इतिहास से सबक लेने की और ख़ुद को साबित करने नहीं तो दुर्दशा निश्चित है। और बदहाली, बेकारी और गरीबी भी कहीं नहीं जाने वाली है वजह शिक्षा ही किसी समाज को शिक्षित कर उसे सही ढर्रे पर ला सकती है।
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शिक्षा ही किसी समाज को शिक्षित कर उसे सही ढर्रे पर ला सकती है -बिल्कुल सही!!
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