कॉस्टकटिंग के कारनामें

स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस से राहुल गांधी सफ़र कर रहे थे। मामला था आमलोगों का पैसा बचाने का. हवाईजहाज की जगह ट्रेन से सफ़र के ज़रिए. हां भई इसे मामला ही कहेंगे, इसलिए कि यह अब मामला ही बन गया है...पत्थरबाज़ी के बाद. कहीं राजशेखर रेड्डी का ख़ौफ़ तो नहीं. ख़ैर, नहीं ही होगा. कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने दिल्ली से लुधियाना और फिर वापसी का सफ़र शताब्दी ट्रेन से तय किया. उनके रेल कोच में भी कई सीटें सुरक्षा की दृष्टि से या खाली रहीं या फिर सुरक्षाकर्मियों के हवाले कर दी गईं। लेकिन एक बात तो है, राहुल सही में भविष्य के बहुत बड़े खिलाड़ी के रूप में सामने आने की पुरजोर कोशिश में लगे हैं। उनकी यह मेहनत रंग भी ला रही है। लेकिन आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि जितना पैसा राहुल ने ट्रेन के ज़रिए सफ़र करके बचाया, कहीं ज़्यादा बहस उनके सुरक्षा और ट्रेन पर हुए पत्थरबाज़ी में निकल गए. इस तरह के मामले आए दिन देखने और सुनने को मिलते रहते हैं. हमारे या हम जैसे कई लोगों के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है. यहां तक कि ट्रेन से यात्रियों के फेंकने का भी मामला आए दिन होते ही रहता है. जिसमें अधिकांश में आरपीएफ और आर्मी वाले शामिल होते हैं. फिर भी कोई हो-हल्ला नहीं मचता. ख़ैर यहां मसला वीवीआईपी से जुड़ा हुआ है, मसलन बहस तो होनी ही चाहिए. जांच इन्क्वाइरी भी बैठा दी गई है. दो-तीन को इतनी जल्दी पकड़ भी लिया गया है. जब मामला इतनी बड़ी शख्सियत से जुड़ा हो तो कार्रवाई जल्दी कैसे न हो. लेकिन इसके पहले जो मैंने मामले गिनाए उनमें कार्रवाई में इतनी जल्दबाज़ी नज़र नहीं आती. शायद इसलिए कि शशि थरूर के शब्दों में हम भी कैटल क्लास वाले ही हैं. लेकिन इन सबके बीच यह बात देखने वाली होगी कि इस तरह से कॉस्ट कटिंग की मुहिम कब तक चलने वाली है. वक़्त-वक़्त पर ऐसी मुहिम सरकार चलाती रहती है, जिसे कुछ नेता पसंद करते हैं तो कुछ को इन सब बातों का कोई असर नहीं पड़ता. सबसे बड़ी बात क्या आपको लगता है कि सरकार और ये तथाकथित नेता कॉस्ट कटिंग के नाम पर जो तामझाम कर रहे हैं, उसका सही में फ़ायदा आम लोगों तक पहुंच पाएगा. और ऐसा करके ये कितना बचत कर रहे हैं, ग़ौरतलब है कि राहुल ने ट्रेन से सफ़र कर तक़रीबन पांच सौ रुपए के आसपास बचाए. मतलब उंट के मुंह में जीरा. जितना काम सरकार कर नहीं रही है, उससे अधिक ढिंढोरा पीट रही है और हम उसके धुन पर भरतनाट्यम कर रहे हैं. क्योंकि ये ढोल हमारे सामने नहीं बज रहे और कहते हैं न दूर के ढोल सुहावने होते हैं.
ग़ौरतलब है कि सोनिया गांधी ने भी इकॉनमी क्लास में मुंबई तक सफर किया, लेकिन यह जानना भी दिलचस्प है कि उस १२२ सीटों वाले एयर इंडिया के प्लेन में महज़ ७२ लोगों को टिकट मिल पाई, क्यों अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं. इससे कितना नुकसान एयर इंडिया को हुआ, इस पर एयर इंडिया कह रहा होगा मैडम आप पहले जैस लावलश्कर से चलती थीं, वैसे ही चलिए. एक तो मंदी का टाइम उस पर कॉस्ट कटिंग के नाम पर कम से कम हमारा कॉस्ट तो मत बढ़ाइए.

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! राहुल गाँधी ने शताब्दी एक्सप्रेस में सफर किया इस बात को लेकर काफी चर्चा हो रहा है! मुझे नहीं लगता इसमें कोई बचत हुई है बल्कि राहुल गाँधी ने ये जान बुझकर किया ताकि उन्हें जनता से सहानुभूति मिले! जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं राहुल गाँधी सबका दिल जितने के लिए और अपनी माँ, सोनिया गाँधी का मार्ग प्रदर्शन करने में बहुत व्यस्त है! ये भी सुनने को आया है कि राहुल गाँधी कुछ सालों में हमारे देश के प्रधान मंत्री बनेंगे!

    ReplyDelete
  2. इन लटकों झटकों के झांसों में जनता बहुत अधिक नहीं आने वाली है. जिस कमलावती को राहुल गांधी ने प्रोजेक्ट किया था वह कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ रही है.

    ReplyDelete