जब भारी पड़ा जूनियर पत्रकार

ऑफिस आने के 5 मिनट बाद ही आपका जूनियर आपके पास आता है। उसकी हाथों में अंग्रेज़ी में एक लेटर है। जिसका हिंदी अनुवाद करना है। यह काम जूनियर के ज़िम्मे ही है। वह कोशिश करता है। लेकिन असफल रहता है। पूरी तरह नहीं, लेकिन सटीक और ठीक-ठाक भी नहीं। उसके बाद वह आपके पास आता है। आपसे कुछ पूछता है। आप उसे टाल-मटोल अंदाज़ में बताते हैं। ताकि आप थोड़ी देर आराम कर लें। लेकिन बाहर की गर्मी झलने के बाद अब आपको उसकी भी तैश झेलनी पड़ती है। कैसा लगेगा आपको ? एक तो आप थोड़ी देर पहले ऑफिस आए, उसके बाद यदि आपके जूनियर को जिस काम के लिए रखा गया है, वह काम भी ढंग से नहीं कर पा रहा है। बात-बात में पूछने चला आता है। पूछना कोई ग़लत बात नहीं है। लेकिन, हर काम के लिए पूछने जाते हैं, तो आप यहां अय्यासी करने आए हैं. मीडिया की यही कहानी है. रिश्तेदारी, जान-पहचान और जुगाड़ के ज़रिए ये लोग घुसपैठ कर जाते हैं, मीडिया में? जब काम करने की बारी आती है तो दिन में तारे नज़र आने लगते हैं। फिर वही होता है, जो मंजूरे बॉस होता है। आपका जूनियर एक छोटा-सा लेटर अनुवाद नहीं कर पाता. जबकि आपने उसे इसी काम के लिए रखा है. आप चंद समय पहले ऑफिस आते हैं, अपनी जगह पर बैठते हैं, आपका जूनियर आपके पास आता है, फिर पूछता है. इसका अनुवाद कैसे होगा ? आप थोड़ी देर के लिए समाचार पत्र पढ़ते हुए रिलैक्स हो रहे होते हैं। जूनियर को कुछ बताते हैं, कुछ इग्नोर करते हैं. इस पर आपका जूनियर आप पर पिल पड़ता है. आपको घमंडी, दंभी, घटिया क़िस्म का इंसान कहता है. तुम क्या सोचते हो, सब कुछ तुम्हें ही पता है ? अपने आपको तीस मारखां समझते हो, मैंने भी कॉलेज में पढ़ाई की है। तुम्हारा कलीग हूं, तुम्हें बतानी चाहिए , यदि मैं तुमसे कछ डिसकस करता हूं तो तुमको मदद करनी चाहिए (फिर तुम यहां किसलिए हो, रामनाम माला जप कर सैलरी लेने के लिए), समझ लीजिए आपको इतनी श्लोक सुना देता है, जितना आप अपने बॉस से भी नहीं सुनते। वजह यह कि बॉस को आपका काम नज़र आता है। काम भले ही नज़र न आए लेकिन आपके काम की ख़बर तो उसे रहता ही है। लेकिन ज़रा सोचिए, आपको जब जूनियर से ही इस तरह की करारी बातें सुनने को मिले तो आपका मिजाज़ तो दुरूस्त हो ही जाएगा। दुरूस्त ना भी हो तो ठिकाने पर आना लाज़िमी है। लेकिन एक बात तो सोचने वाली है, आख़िर वजह क्या है? एक जूनियर की यह हिम्मत कहां से आई, यह ज़्यादा सोचने की बात नहीं। मीडिया है, तो पूरा मैदान ही साफ़ है।

3 comments:

  1. मामला दिल को लग जाये तो लग जाये.

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  2. चन्दन जी आदमी को अपने अनुभव से बहुत कुछ सीखने और देखने का मौका मिलता है. इस मामले में आप बहुत खुशकिस्मत हैं की चीजों को बहुत जल्दी और सही तरीके से देख पा रहे हैं. एक बात और इसी तरह की जानकारियों से हमें भी अवगत कराते रहिए ताकि भविष्य में हम भी कमर कस कर मैदान में उतरें.

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