जब तन्हा होता हूं तो तुम्हारी याद आती है,
जब भीड़ में होता हूं, फिर भी तुम्हारी याद आती है,
क्या करूं तुम्हारे बग़ैर सिर्फ़ तुम्हारी ही याद आती है।
       कोहरे की धुंध में कहीं खो गई वो यादें,
       जो मुझे कभी परेशान किया करती थी,
      यादें आती हैं, यादें जाती भी हैं,
      पर ये भी सच है कि कुछ यादें,
       दिलों में एक ज़ख्म छोड़ जाती हैं।
महसूस करता हूं तुम्हें हर पल
लम्हा दर लम्हा, ज़ख्म दर ज़ख्म,
एक टीस उठती है, ज़ुबां फिर ख़ामोश हो जाती है।
पर अब किया है फ़ैसला हमने,
छोड़ देंगे उन गलियों को, भूल जाएंगे हरेक लम्हे को
मुंह मोड़ लेंगे हर उस महफिल से,
जिससे जुड़ी हुई है तुम्हारी यादें।
      कोई वजह नहीं, कोई कसक नहीं
      वस यूं ही तय की है ज़िंदगी अपनी.
 
 
वाह!
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना!