शर्मिंदा हूं ऐसी मर्दानगी पर

पुरुषों को जब भी मौका मिलता है, सबसे पहले वह अपनी मर्दानगी दिखाना शुरू कर देता है। उसकी मर्दानगी यह होती है शोषण। यह बात सभी पर लागू नहीं होती है, पर पिछले कुछ वक्त में इस तरह के मामले काफी बढ़े हैं। मामले कम उम्र की लड़कियों के शोषण के, उनके साथ गलत संबंध बनाने। उन्हें बहला-फुसलाकर, डरा-धमकाकर वह कुकृत्य को अंजाम देने से बाज नहीं आते। हालिया, हैदराबाद के पार्कवुड स्कूल का है। स्कूल के प्रिंसिपल पर बेहद ही संगीन आरोप लगाए गए हैं। उसने ग्यारहवीं क्लास की एक छात्रा के साथ बलात्कार किए। एक नहीं कई बार। यह कोई पहली बार नहीं है, जब इस तरह के मामले सामने आए हैं। वह स्कूल के मामले। शिक्षकों ने जब अपनी छात्रा के साथ ही इस तरह की अमानवीय हरकत की हो। 22 जुलाई को हैदराबाद के स्कूल के प्रिसिंपल को ग्यारहवीं की छात्रा के साथ बलात्कार करने आरोप में गिरफ्तार किया गया। छात्रा के गर्भवती होने के बाद यह मामला सामने आया। मुंबई में 1 जुलाई को एक टीचर को 13 साल की छात्रा के यौन-शोषण के आरोप में पकड़ा गया। फरवरी में दिल्ली में ही 24 साल के एक शख्स ने दो साल की मासूम को पहले किडनैप किया, फिर उसके बलात्कार किया। दिसंबर 2009 में मुंबई के स्कूल प्रिंसिपल को पांचवीं क्लास की छात्रा का यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया। 7 नवंबर 2009 को दिल्ली के एक म्यूजिक टीचर को कोर्ट ने साल भर कैद की सजा सुनाई। उस पर पांच साल पहले नाबालिग बच्ची के शोषण का आरोप था। जनवरी 2006 में चेंबुर के 35 वर्षीय शख्स को महज 10 महीने की बच्ची के साथ कुकृत्य के आरोप में गिरफ्तार किया गया। ऐसे एक नहीं कई मामले हैं, गिनाने से समस्या का समाधान नहीं होगा। बस दिल में एक टीस उठी खबर को पढ़कर रुह कांप गया। दिल से तो गाली निकलती है, उससे ज्यादा कुछ न कर पाने की बेबसी झलकती है। मन कहता है बूते की बात होती है तो ऐसे लोगों से जीने का अधिकार मैं छीन लेता है। शर्म आती है ऐसी मर्दानगी और पुरुषार्थ पर। हालांकि, मेरा मानना है कि इस तरह की कलंकित हरकतों को करने वाले मानव नहीं, दानव नहीं हैं। चंद कुंठित लोगों की वजह से मानवता कलंकित हो रही है। गुरू जैसा मर्यादित और पाक ओहदा नापाक हो रहा है। कहीं न कहीं हमारा समाज, हमारी तहजीब खोखली साबित हो रही है। ऐसा इसलिए कि हमारा कानून कागजों पर बुलंद, सशक्त, मजबूत और शक्तिशाली है। असलियत में इसकी औकात रास्ते के पत्थर की तरह है जिसे कोई भी ठोकर मारकर आगे बढ़ता जाता है। इससे निजात पाने का जो मुझे रास्ता नजर आता है, वह यह कि हम अपने नैतिक मूल्यों को भूलते जा रहे हैं, हमारे आचरण में आधुनिकता के नाम पर बेवजह का बदलाव आ रहा है।

4 comments:

  1. एकदम सही लिखा है आपने, कानून सिर्फ़ कागज़ों में है या सिर्फ़ असमर्थ के लिये।

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  2. असलियत में इसकी औकात रास्ते के पत्थर की तरह है जिसे कोई भी ठोकर मारकर आगे बढ़ता जाता है-हम्म!!

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  3. behad sharmanak harkat..aur hamari bebasi ...li ham kuch bhi nahi kar sakte ...

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