स्वतंत्रता दिवस- चाहिए साधु और मंत्री

१५ अगस्त जल्द आने वाला है. राष्ट्रमंडल खेल भी. ऐसे में मुझे मशहूर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई याद आ रहे हैं. वो हमेशा इन अवसरों पर उदास रहते थे.वजह नीचे है..इसे उनकी रचना के आधार पर आपके सामने लेकर हाज़िर हूँ...
हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को मैं सोचता हूं कि साल भर में कितना बढ़े हम। एकबार फिर 2009 के बाद 15 अगस्त 2010 आ गया। यह स्वतंत्रता दिवस है। पर, स्व और तंत्र की हालत क्या है, यह मत पूछिए। स्व कोई रहा नहीं, सारे के सारे पर में बदल रहे हैं। तंत्र नाम की कोई चीज रह नहीं गई। पहले गणतंत्र हुआ करता था। वह भी गनतंत्र हो गया। इस पूरे साल मैंने दो चीजें देखीं। दो तरह के लगो बढ़े- साधु और मंत्री। सोचता था आम आदमी के जीवन में इससे तरक्की आएगी। उसकी समस्याएं कम होंगी, पर नहीं। बढ़े तो साधु और मंत्री। मेरा अंदाजा था, इससे आम आदमी की मुश्किलें कम होंगी-मगर नहीं। बढ़े तो ये ही दोनों। दोनों हमजोली हो गए। कभी-कभी सोचता हूं कि क्या साधु और मंत्री गरीबी हटाओ प्रोग्राम के तहत ही आ रहे हैं। क्या इसमें कोई योजना है। रोज अखबार उठाकर देखिए तो सामने आएगा, वैद्य रहमानी के पास आइए, सारे कष्ट दूर भगाइए। बीवी से लड़ाई हो, प्रेमिका से बन आई हो, या प्रेमिका को करना हो वश में या फिर दोस्त बन गया हो दुश्मन, ये विज्ञापन अटे पड़े होते हैं। हमारे पास आइए समस्या का समाधान पाइए। साधु हर तरह की समस्याओ को दूर कर रहा है। क्यों न फिर भारत के शीर्ष पद पर बैठा दिया जाए. आम आदमी की समस्याएं आसानी से खत्म हो जाएंगी। इधर, सुना भी है कि अगले लोकसभा चुनाव में साधु सबकी समस्या दूर करेंगे। वह खुद चुनावी दंगल में कूदेंगे। सारे बाबा लोग एक से एक तरकीब सुना रहे हैं। एक बाबा के आश्रम में बच्चों की मौत लगातार होती रही है। सुना उनके आश्रम में काला जादू होता है। बाबा रिद्धि-सिद्धि करते हैं। शायद जादू-टोना इसलिए कि देश को सभी समस्याओं से मुक्ति दिला सकें। एक बाबा योग के जरिए राजनीति में घुसपैठ करना चाहते हैं। वह लोगों को तरह-तरह के योग सिखाते हैं, ताकि वे स्वस्थ रहें, कभी लौकी का जूस तो कभी करैला का। लौकी से कोई मर जाता है तो वह बचाव में सामने आ बैठते हैं। एक बाबा क आश्रम में प्रसाद बटने के दौरान भगदड़ मचती है, सैंकड़ों काल के गाल में समा जाते हैं. बाबा कहते हैं यह ऊपर की कृपा है, उसने अपने भक्तों को बुला लिया, तो मेरा क्या कसूर।
जारी...

1 comment:

  1. सच ही है, कोई एक और कारण तो हो उत्सव मनाने का।

    ReplyDelete