मीडिया का महासमर

कृष्ण ब्रेक के बाद एक बार फिर आपके सामने हैं. वह पत्रकार से कॉरपोरेट मालिक हो गए हैं. उन्हें इस महा मीडिया समर का योद्धा माना जाता था. लेकिन सरकार बचाने के लिए उन्होंने जो कारनामे किये उसने उनका विश्वास कम कर दिया है. अब छद्म नामों को छोड़कर बात सीढ़ी कि जाये तो बेहतर. बात करने में भी मुझे आसानी होगी और आपको समझने में भी. कृष्ण हैं एक टीवी चैनल के मालिक जो दूसरे चैनल में कम कर चुके हैं. अब एक अंग्रेजी चैनल और हिंदी चैनल के करता धता के तौर पर कम कर रहे हैं. उनकी पत्नी भी उसी अंग्रेजी चैनल में काम करती हैं. खैर, यह कोई बहस का मुद्दा नहीं होना चाहिए. और मेरे लिए है भी नहीं. द्रौपदी की कहानी भी कुछ कम नहीं है. एक रिपोर्टर से करियर शुरू करने वाली यह महिला एडिटर-इन-चीफ़ बन चुकी हैं और उनका उस चैनल में कुछ मालिकाना शेयर भी है. यानी कृष्ण और द्रौपदी एक ही पेशे में हैं, लेकिन कृष्ण को तो द्रौपदी के बचाव में आना ही था. पेशेवर मजबूरी की वजह से वह आये भी, लेकिन भाई साहब आते-आते बड़ी देर कर दी. कुछ कहा और सुना भी. यहाँ मुझे नरेन्द्र कोहली की रचना महासमर की याद आ रही है. 
द्रोण ने अपनी पलकें उठाकर अश्वत्थामा की ओर देखा तो लगा कि उन्हें उस प्रकार पलकें उठाना भी जैसे भारी पड़ रहा है। लेकिन यहाँ मीडिया में राडिया कांड के कर्म योद्धाओं को किसी तरह का अफ़सोस या मलाल नहीं. वो आँखों में आँखें डाल कर बातें कर रहे है, जैसे गलती जनता की है. अश्वात्थामा ने पूछा, ‘‘आप सहज प्रसन्न नहीं दीखते ?’’ द्रोण की दृष्टि में अश्वात्थामा के लिए भर्सना थी। क्या वह इतनी-सी भी बात नहीं समझता ? पर अपनी उस दृष्टि का अश्वात्थमा पर कोई प्रभाव न देखकर बोले, ‘‘भीष्म धराशायी हो चुके हैं।’’यहाँ भीष्म प्रभाष जोशी जैसे पत्रकार को मान सकते हैं तो हरिवंश जी जैसे पत्रकारों को उनका प्रतिनिधि. श्रवण गर्ग भी उस मानक पत्रकारिता के आखिरी स्तम्भ के तौर पर ही जाने जायेंगे.  
अब एक बात और यहाँ गुरु द्रोण अश्वत्थामासे बताते हैं मैं तो अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर भी नहीं मानता. यहाँ भी कोई पत्रकार किसी को बेहतर नहीं मानता बस तंग खिचाई में लगा रहता है. अश्वत्थामा पिता से पूछता है, तो आप उसे संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी नहीं मानते थे ? नहीं ! मैं उसे श्रेष्ठ धनुर्धारी ही मानता था. तो आपने एकलव्य का अँगूठा क्यों लिया ? अर्जुन को संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनाए रखने के लिए नहीं ? मुमकिन है यहाँ भी एकलव्य रुपी कई लोगों से कई द्रोणों ने कुर्बानियां मांगी  है. उनसे दलाली करवाई है और न जाने कैसे कैसे कुकर्म करवाए हैं. इसी तरह यदि पत्रकारों के निजी जीवन को खंगाला जाये तो कालिख उन सभी के चेहरों पर नज़र आएगी, जो अब तक नैतिकता का पाठ पढ़ते और पढ़ाते आ रहे हैं. उनमें खबर वही जो सच दिखाने वाले से लेकर डंके की चोट पर बात करने वाले भी शामिल हैं, क्योंकि यही भाई लोग नैतिकता की बात ज्यादा करते है और इन्होंने ही नैतिकता का ज्यादा कबाड़ा किया है.

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